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 विदर्भ के 8 किसानों ने आत्महत्या की : कार्यकर्ता | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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विदर्भ के 8 किसानों ने आत्महत्या की : कार्यकर्ता

नागपुर, 28 जनवरी (आईएएनएस)। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कर्ज में डूबे कम से कम आठ किसानों ने पिछले चार दिनों में अपनी जिंदगी खत्म कर ली। इनमें से चार ने बुधवार को आत्महत्या की है। यह जानकारी एक कार्यकर्ता ने दी।

नागपुर, 28 जनवरी (आईएएनएस)। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कर्ज में डूबे कम से कम आठ किसानों ने पिछले चार दिनों में अपनी जिंदगी खत्म कर ली। इनमें से चार ने बुधवार को आत्महत्या की है। यह जानकारी एक कार्यकर्ता ने दी।

विदर्भ जनांदोलन समिति (वीजेएएस) के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने आईएएनएस को बताया, “दो किसानों के शव आज (बुधवार) सुबह यवतमाल जिले के बोदादी और सोनेगांव गांवों से लाया गया। पोस्टमार्टम किए जाने से पहले वी. एन. सरकारी मेडिकल कॉलेज में दो और शव पहुंचे। यह सब एक घंटे के भीतर ही हुआ।”

वीजेएएस सचिव मोहन जाधव के मुताबिक, बुधवार को जान देने वाले किसानों की पहचान बोदादी के बंसी राठोडे सोनेगांव के देवराव भागवत, मोहदा के प्रकाश कुतारमारे और देवनाला के तुलसीराम राठोडे के रूप में की गइै।

तिवारी ने कहा कि चार किसानों ने इस सप्ताह के शुरू में आत्महत्या की थी। इनमें से दो ने 25 जनवरी को दो ने 27 जनवरी को आत्महत्या की। आत्महत्या की ये घटनाएं विदर्भ के अलग-अलग हिस्सों में हुई हैं।

तिवारी ने कहा, “गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) को किसी ने आत्महत्या की या नहीं इसके बारे में हमारे पास कोई सूचना नहीं है। इस दिन अवकाश था और सरकार उत्सवों में व्यस्त थी।”

उन्होंने आरोप लगाया कि आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि का कारण विदर्भ और महाराष्ट्र के खेतों में कपास और दालों के दाम आई अचानक गिरावट है।

यह दावा करते हुए कि एक जनवरी से 62 किसानों ने जान दी है, तिवारी ने कहा कि 2015 में 2013 के बाद नया रिकार्ड कायम होगा। 2013 में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो में महाराष्ट्र सर्वाधिक किसानों की आत्महत्या के कारण शीर्ष पर था। उस वर्ष 3,146 किसानों ने आत्महत्या की थी।

जाधव ने कहा कि उन्हें किसानों के रिश्तेदारों द्वारा सूचित किया गया कि परिवार के कर्ज में डूबे रहने से ‘अत्यधिक दबाव और निराशा के कारण’ आत्महत्या की गई है।

वीजेएस के नेताओं ने कहा कि आने वाले गर्मी के मौसम को लेकर उन्हें डर हो रहा है। गर्मियों में खेतिहर समुदाय एक तरफ भयंकर गर्मी में और दूसरी तरफ पानी के गंभीर संकट में फंसे होंगे।

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