मुंबई- देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा शुक्रवार को उठाए गए कदमों से डॉलर के मुकाबले देसी करेंसी रुपये में रिकवरी आई और अल्पावधि में रुपये में और सुधार देखने को मिल सकता है, लेकिन वैश्विक अनिश्चिता के माहौल में लंबी अवधि में गिरावट की संभावना बनी हुई है। अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत मिलने और अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से रुपये पर दबाव बना रह सकता है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों और घरेलू निवेशकों को बढ़े हुए सरचार्ज से मुक्त रखने के फैसले से घरेलू शेयर बाजार लगातार तीन दिनों की गिरावट पर ब्रेक लगा और प्रमुख शेयर संवेदी सूचकांक मजबूती के साथ बंद हुए। रुपया भी इस साल के सबसे निचले स्तर 72.04 रुपये प्रति डॉलर तक लुढ़कने के बाद संभला और पिछले सत्र के मुकाबले 15 पैसे की मजबूती के साथ 71.66 डॉलर पर बंद हुआ।
बाजार विश्लेषकों की माने तो मौजूदा घरेलू और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए लंबी अवधि में रुपये में कमजोरी आने की संभावना है और देसी करेंसी 74 रुपये प्रति डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़ सकता है।
इस साल की शुरुआत में घरेलू इक्विटी और डेब्ट बाजार में डॉलर की आमद बढ़ने के कारण रुपये में जबरदस्त मजबूती रही, लेकिन अब विपरीत स्थिति पैदा हो गई है। इसके अलावा, कच्चे तेल के दाम में नरमी रहने से भी रुपये को सपोर्ट मिला क्योंकि तेल का दाम बढ़ने से आयात के लिए ज्यादा डॉल की जरूरत होती है।
कार्वी कॉमट्रेड लिमिटेड के सीईओ रमेश वरखेडकर ने आईएएनएस को बताया कि साल के आरंभ में दुनिया में भारत को सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थवस्था के रूप में देखे जाने निवेशकों का सकारात्मक रुझान बना हुआ था। देश में स्थिर और मजबूत सरकार बनने पर विदेशी निवेशकों को भारतीय बाजार में और संभावना दिखने लगी। मगर बजट में की गई घोषणाओं के बाद परिस्थितियां बदल गईं और विदेशी निवेशक अपने पैसे निकालने लगे।
इस साल जून में व्यापार घाटा पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले घटकर 15.28 अरब डॉलर रहा। पिछले साल जून में देश का व्यापार घाटा 16.60 अरब डॉलर था।
मगर निर्यात और आयात दोनों में गिरावट आने से देशी अर्थव्यस्था की सेहत को लेकर आशंका जताई जाने लगी और नीति निमार्ता भी मानने लगे हैें कि अर्थव्यवस्था से सेहत खराब है।
रमेश ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव तकरीबन सपाट रहने के बावजूद अगस्त में रुपये में चार फीसदी की गिरावट आई क्योंकि जुलाई से लेकर अगस्त में अब तक विदेशी पोर्टपोलियो निवेशकों ने 13,000 करोड़ रुपये की निकासी की है। उन्होंने कहा कि वित्तमंत्री द्वारा किए गए सुधार सुधार के उपायों से रुपये में अल्पकालिक सुधार दिखेगा मगर दिसंबर तक देसी करेंसी 74 रुपये प्रति डॉलर के उपर जा सकती है।
एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट ( इनर्जी व करेंसी रिसर्च) अनुज गुप्ता भी रुपये में और कमजोरी बढ़ने की संभावना जता रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि चालू वित्त वर्ष की चैथी तिमाही में रुपया 74 के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़ सकता है।
पिछले साल अक्टूबर मे देसी करेंसी 74.47 रुपये प्रति डॉलर के उंचे स्तर पर चला गया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मई 2014 में रुपया का निचला स्तर 58.33 रुपये प्रति डॉलर था।
गुप्ता ने कहा कि अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वार से वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कारण एशियाई करेंसी में लगातार गिरावट देखी जा रही है जबकि अमेरिकी डॉलर में मजबूती आने से डॉलर इंडेक्स उंचा उठा है। डॉलर इंडेक्स दुनिया की छह प्रमुख देशों की मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत का सूचक है।