यह एक जंगली जड़ी-बूटी है, जो समुद्र तल से 700-3,300 मीटर की ऊंचाई पर उगती है और तिब्बत तथा दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत में पाई जाती है।
तिब्बत युनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर नी लिजुआन ने कहा कि बहुत सीमित जगह में ही पाए जाने के कारण ये लुप्तप्राय अवस्था में पहुंच गई है। इसका चिकित्सा में व्यापक तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। किडनी से संबंधित कई रोगों के इलाज के लिए यह बेहद प्रभावी दवाओं में से एक है।
तिब्बती भाषा में इस दवा को सोवा रिग्पा के नाम से भी जाना जाता है। यह कम से कम 2,300 साल पुरानी है।
पारंपरिक चीनी दवाओं की तरह और बायोमेडिसिन के विपरीत तिब्बती चिकित्सा में जड़ी-बूटी, खनिज और कभी-कभी कीट तथा जानवरों का इस्तेमाल किया जाता है।
लेकिन, तिब्बती चिकित्सा की गुणवत्ता मानक प्रणाली बहुत पीछे है।
नी ने कहा, “शोध के दौरान हमने घटक माप तथा इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी के विश्लेषण को मिलाकर एक मूल्यांकन पद्धति का विकास किया।” उन्होंने कहा कि दुर्लभ तिब्बती चिकित्सा जड़ी-बूटियों के बीच यह पहला गुणवत्ता नियंत्रण मानक है।
उन्होंने कहा कि यह मानक जड़ी-बूटी उगाने तथा पारंपरिक दवा की सुरक्षा और प्रभावशीलता में सुधार लाने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध कराने में मदद करेगा।