रेल में आम आदमी के रूप में सफर करने वाला तो अब तक खूब लुटता, पिटता और जहरखुरानी का शिकार होता रहा लेकिन जब खास भी लुट जाए तो सुरक्षा की पोल को लेकर चीख पुकार खूब मचती है। मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया और उनकी पत्नी डॉ. सुधा मलैया का चलती रेल में चाकुओं की धार पर लुट जाना संसद में भी गूंजा। सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि आम आदमी कितना महफूज है?
रेल में आम आदमी के रूप में सफर करने वाला तो अब तक खूब लुटता, पिटता और जहरखुरानी का शिकार होता रहा लेकिन जब खास भी लुट जाए तो सुरक्षा की पोल को लेकर चीख पुकार खूब मचती है। मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया और उनकी पत्नी डॉ. सुधा मलैया का चलती रेल में चाकुओं की धार पर लुट जाना संसद में भी गूंजा। सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि आम आदमी कितना महफूज है?
चलती रेल में घटी इसी महीने की कुछ घटनाओं पर पहले नजर डाल ली जाए। 18-19 मार्च की दरम्यानी रात को जिस समय मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री सपत्नीक मथुरा के पास लूट का शिकार हुए और लुटेरों ने 20 हजार रुपयों से भरा पर्स, चेन और हाथ की अंगुली काट लेने की धमकी के बाद अंगूठी उतरवा ली, इसी ट्रेन में जबलपुर हाईकोर्ट के दो वकील ए.पी. ठाकुर और अभिजीत श्रोत्रिय को भी खंजर के दम पर लूट लिया गया।
इसी दिन और इसी इलाके में हैदराबाद जा रही दक्षिण एक्सप्रेस में रात 2 बजे एसी कोच में ग्वालियर के विमल से 10 हजार नकद, मोबाइल अटैची लूटने के बाद ट्रेन के टीसी की अटैची मोबाइल भी लूट लिया गया। फिर 18 मार्च को केरला एक्सप्रेस के भोपाल स्टेशन पहुंचने के थोड़ा पहले, उतरने को गेट के पास खड़ी डॉ. मनीषा श्रीवास्तव की अटैची लूटने की नीयत से एक युवक झपटा लेकिन किस्मत से अटैची का हैण्डल टूट गया और वे चलती ट्रेन से गिरने से बच गई।
मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में 19 मार्च की रात विशाखापट्टनम एक्सप्रेस में यात्रा कर रही एक महिला से लुटेरे ने बैग छीनकर उसे चलती ट्रेन से फेंक दिया।
16-17 मार्च की दरम्यानी रात जबलपुर-इंदौर ओवरनाइट के एस-9 कोच में परिवार के साथ सफर कर रही 10 साल की स्केटिंग की राष्ट्रीय स्तर की गोल्ड और सिल्वर मेडल विजेता खिलाड़ी के साथ शराब पिए 3 सहयात्रियों की छेड़खानी की शिकायत रनिंग स्टाफ से बार-बार की गई। बावजूद वह बाज नहीं आए तो मजबूर और भड़के यात्रियों ने इटारसी स्टेशन पर तीनों आरोपियों की धुनाई कर उन्हें जीआरपी के हवाले किया।
बीते साल के भी कुछ चर्चित और संवेदनशील मामलों की याद जरूरी है। 28 साल की रति त्रिपाठी का वाकया अब भी लोगों के जेहन में ताजा है। रति 18-19 नवंबर 2014 को मालवा एक्सप्रेस के एस-7 कोच की 8 नंबर बर्थ पर यानी दरवाजे के पास यात्रा कर रही थी। सुबह 5 बजे के आसपास बीना स्टेशन आने को था कि ललितपुर से उसमें सवार 3 लुटेरों ने उसका पर्स छीनने की कोशिश की और बचाव में रति ने उन्हें काटा और भरपूर विरोध किया, लेकिन अकेली जान कितना संघर्ष करती, करौंदा और आगासौद के बीच उसे ही चलती ट्रेन से फेंक दिया गया।
बहुत बाद आरोपी पकड़े गए इसमें एक रेलवे का गेंगमैन की नौकरी कर चुका था और एक होमगार्ड का सिपाही रह चुका था। इनका आपराधिक रिकॉर्ड भी था। गैंग बनाकर ये ऐसे कामों को अंजाम देते थे। यह मामला खूब उछाला तब जाकर गिरफ्तारी हो पाई थी। कई दिनों के बाद रति को होश आया और छीछालेदर के बाद 6 अपराधी लगभग डेढ़ महीने बाद 2 जनवरी 15 को पकड़े गए।
मामला रेलवे में लूटपाट का भर नहीं है। 2 मई 2013 को मुंबई के बांद्रा टर्मिनस की घटना बेहद झकझोरने वाली थी। नेवी में नर्स बनने दिल्ली से मुंबई की आ रही प्रीति पर ट्रेन से उतरते ही अज्ञात सिरफिरे द्वारा किए गए एसिड अटैक के बाद फस्र्ट एड के लिए भी घंटों मोहताज रही। होहल्ला मचने के बाद उसे अस्पताल पहुंचाया गया। एक महीने तक इलाज चला और अंतत: 1 जून 2013 को उसकी दर्दनाक मौत के बाद बहुत सारे सवाल रेलवे में सुरक्षा को लेकर उठे थे।
देश में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ है जब कोई मंत्री चाकू की नोक पर चलती रेल में बेबस होकर लुटता रहा। सवाल अब भी जहां का तहां खड़ा है। कागजों पर कोरम पूरा करती व्यवस्था ने सुरक्षा की पोल खोल दी है। इसी रेल बजट में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा था कि रेलवे को 20000 लोगों के सुझाव प्राप्त हुए हैं। व्यावहारिक सुझाव पर काम भी शुरू हो गया है।
बजट भाषण के 10 वें बिंदु के उपखंड (ग) में ‘रेलवे यात्रा को सुरक्षित बनाना’ कहा गया है। बिंदु 21 में सुरक्षा से संबंधित 24 गुणा 7 हेल्पलाइन 138, सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के महत्व को ध्यान में टोलफ्री नंबर 182 को निर्धारित करने का जिक्र है। हाल ही में रेलवे ने सुरक्षा संबंधी किसी भी घटना पर 182 नंबर सहित टोल फ्री नंबर 18002330044 का विकल्प रखा है। लेकिन ये नंबर यात्रियों की सुरक्षा के खतरे को देखते हुए लगता नहीं है कि कोई हल है।
निश्चित रूप से भारतीय रेल में खासकर रात में सफर कब कहर बन जाए नहीं पता। फिर सुरक्षा कैसे होगी? तकनीक के भरपूर उपयोग और वाई-फाई युक्त सवारी गाड़ियों का सपना देखने से पहले सुरक्षित सफर सबसे जरूरी है।
ट्रेनों में सामान्य डिब्बे तक में मोबाइल चार्जर प्वाइंट की बात समय की दरकार है। लेकिन क्या सभी डिब्बों में दोनों दरवाजों के बीच की गैलरी को कवर करते सीसीटीवी लगाना और सभी डिब्बों के कैमरों को गार्ड के डिब्बे या पैंट्री कार या कहीं सुविधाजनक जगह पर कनेक्ट कर सतत मॉनीटरिंग की व्यवस्था नहीं हो सकती? ऐसा कर सभी डिब्बों पर हर पल नजर रखी जा सके।
इतना ही नहीं, रेलवे का खुद अपना ओफसी रेल टेल का बड़ा नेटवर्क है। इसके जरिए सभी सवारी गाड़ियों के हर डिब्बे की लाइव मॉनीटरिंग की जोन स्तर या मंडल स्तर पर यहां तक रास्ते के सभी स्टेशनों वाई-फाई कनेक्टिविटी से व्यवस्था हो सकती है।
इस व्यवस्था से यदि रनिंग स्टाफ से कहीं चूक हो जाए तो सेंट्रलाइज सिस्टम तत्काल इस बारे में एलर्ट दे सके और खतरे में पड़े यात्री को तत्काल मदद दी जा सके। इससे यकीनन सुरक्षा तो होगी ही अनियंत्रित भीड़ पर नजर भी और रनिंग स्टाफ जिसमें टीसी से लेकर सुरक्षा बल पर भी निगरानी रखी जा सकेगी।
अब वह समय आ गया है, जब सुरक्षा के लिए मानवीय उपलब्धता के बजाय तकनीक सुविधा पर ज्यादा ध्यान देना होगा।
(ये लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)