रियो डी जनेरियो, 17 अगस्त (आईएएनएस)। ब्राजील में जारी 31वें ओलम्पिक खेलों में भारत के पदक जीतने के आसार कम नजर आ रहे हैं। इस प्रतियोगिता में केवल बैडमिंटन खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद नजर आ रही है।
रियो डी जनेरियो, 17 अगस्त (आईएएनएस)। ब्राजील में जारी 31वें ओलम्पिक खेलों में भारत के पदक जीतने के आसार कम नजर आ रहे हैं। इस प्रतियोगिता में केवल बैडमिंटन खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद नजर आ रही है।
हालांकि, इन खेलों में एक बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि क्या खिलाड़ियों के बुरे प्रदर्शन के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने वाले कोच जिम्मेदार हैं?
रियो ओलम्पिक में हार का सामना कर बाहर हो चुकी भारतीय पुरुष हॉकी टीम के मुख्य कोच रोलेंट ओल्टमैंस ने कहा, “मुझे इस हार की जिम्मेदारी लेने में कोई हर्ज नहीं है और मुझे अपने पद की भी चिंता नहीं। अंत में केवल एक चीज मायने रखती है और वो है टीम।”
ओल्टमैंस ने आईएएनएस को बताया, “खिलाड़ियों को पहल और ऊर्जा को दर्शाने की जरूरत है। इसके बिना टीम का संतुलन खराब हो जाता है, जैसे रियो में देखा गया।”
भारतीय पुरुष हॉकी टीम को रियो ओलम्पिक में हॉकी के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में बेल्जियम से 1-3 से हार का सामना कर बाहर होना पड़ा।
लंदन ओलम्पिक में भारत ने कुल छह पदक जीते थे, जिसमें दो रजत और एक कांस्य पदक शामिल था। रियो में अभी तक बिना कोई पदक जीते भारत केवल उम्मीद लगाए बैठा है, क्योंकि कई एथलीट खाली हाथ लौट रहे हैं।
सामान्य तौर पर एथलीटों के प्रदर्शन में अधिकतर छवि कोच के किरदार की नजर आती है।
मुक्केबाजी के मुख्य कोच गुरुबक्ष सिंह संधू ने कहा, “मैंने भी मुक्केबाजों पर गुस्सा करता हूं लेकिन यह व्यक्ति पर निर्भर है। मेरे गुस्से को कुछ गंभीर रूप से लेते हैं और अन्य सामान्य तौर पर। इसलिए, मुझे अलग-अलग मुक्केबाजों के लिए अलग रणनीति अपनानी पड़ती है।”
संधू ने आईएएनएस को बताया, “रिंग में प्रशिक्षण के पहले दिन से ही एक कोच का किरदार काफी महत्वपूर्ण होता है। मुकाबले के बीच में मिलने वाले ब्रेक में मैं खिलाड़ियों को केवल उनकी की हुई गलतियों का एहसास दिलाता हूं और साथ ही यह भी बताता हूं कि वह फायदा कैसे उठा सकते हैं?”
मुक्केबाजी के मुख्य कोच संधू ने कहा कि यह बात महत्वपूर्ण है कि अगर एथलीट बुरा प्रदर्शन करते हैं, तो इसका प्रभाव कोच पर भी पड़ता है। सभी कोच हार के लिए स्वयं को जिम्मेदार महसूस करते हैं।
कई एथलीटों ने अपनी सफलता का सबसे अधिक श्रेय अपने कोचों को दिया। इसमें रियो ओलम्पिक में हिस्सा लेने वाली भारत की पहली महिला जिमनास्ट दीपा करमाकर का नाम भी शामिल है।
दीपा ने कहा, “भारतीय कोचों को महत्व मिलना चाहिए। कोई ये नहीं कह सकता कि वह कुछ नहीं कर रहे हैं। रियो में आए दल में कई विदेशी कोच शामिल हैं, लेकिन उनकी टीम फाइनल में नहीं पहुंची। हमने किया। जिमनास्टिक के लिए यह काफी बड़ी उपलब्धि है।”
भारतीय एथलीटों और कोचों से मीडिया को काफी उम्मीदें हैं। अभिनव बिद्रा के कोच हेंज रेनकीमेर ने कहा, “यह मीडिया की परेशानी है। उन्हें प्रदर्शन में कोई रुचि नहीं है। वे सिर्फ इतना पूछते हैं कि स्वर्ण पदक क्यों नहीं जीता? आप देश से ऐसे एथलीटों भेज रहे हैं, जिनके पास प्रशिक्षण की सुविधा नहीं है और आपको स्वर्ण पदक चाहिए।”
हेंज ने कहा कि अच्छा प्रशिक्षण मिलना मायने रखता है और लोगों को यह बात समझनी चाहिए।
भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) के अध्यक्ष रनिंदर सिंह ने कहा, “उन्हें हतोत्साहित करने का कोई मतलब नहीं है। निशानेबाजी में मैं स्वयं को जिम्मेदार मानता हूं। मैं इसे खिलाड़ियों पर नहीं डालना चाहता, क्योंकि उन्हें विश्व चैम्पियनशिप और अन्य प्रतियोगिताओं में जाना होता है।”
रनिंदर ने आईएएनएस को बताया, “मुझे लगता है कि हमें एथलीटों के मानसिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मुझे लगता है कि उन पर वैश्विक प्रतियोगिताओं का काफी प्रभाव पड़ रहा है।”