हैदराबाद, 23 फरवरी (आईएएनएस)। अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए सर्वोच्च न्यायालय में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका दायर होने के एक दिन बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने मंगलवार को कहा कि यह राजनैतिक मुद्दा है जिसे हर चुनाव से पहले उठाया जाता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना सज्जाद नोमानी से संवाददाताओं ने स्वामी की याचिका पर उनकी प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होंने कहा,”जब मामला अदालत में लंबित है तो सबको अंतिम फैसला का इंतजार करना चाहिए। उससे पहले बिना सिर-पैर के मुद्दे पर हम लोग भड़कना नहीं चाहेंगे।”
भारतीय मुसलमानों की शीर्ष संस्था के सदस्य ने कहा कि महंगाई, आर्थिक मंदी और युवाओं के लिए नौकरियों की कमी जैसे वास्तविक मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
स्वामी ने राम मंदिर निर्माण के लिए सोमवार को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की। अदालत ने कहा कि यह मामला उस पीठ में सूचीबद्ध होगा जो राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित अन्य मामलों की पहले से ही सुनवाई कर रही है।
स्वामी ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली लंबित याचिका की भी शीघ्र सुनवाई की जाए।
सर्वोच्च न्यायालय ने 9 मई, 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के फैसले को ‘विचित्र और चौंकाने वाला’ बताते हुए इस पर रोक लगा दी थी। फैसले में लखनऊ पीठ ने निर्देश दिया था कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवादित स्थल को दावा करने वाले तीनों दावेदार पक्षों के बीच विभाजित कर दिया जाए।
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मचे हंगामे पर नोमानी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि देश की असली समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए यह सब हो रहा है।
उन्होंने कहा, “हम लोगों को यह पता लगाना चाहिए कि देश के युवक क्यों खुश नहीं हैं? हम लोगों को उनके साथ वार्ता करनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि धार्मिक विद्वान महसूस करते हैं कि अदालत में युवक की पिटाई लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा कि इससे युवक और भी अलग-थलग हो जाएंगे।
जी न्यूज के प्रोडयूसर के इस्तीफे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इससे सिद्ध हो गया है कि जेएनयू में कोई राष्ट्र विरोधी नारे नहीं लगाए गए। जब एक संवाददाता ने जोर डाला कि देश विरोधी नारे लगे थे तो नोमानी ने कहा, “जब यह साबित हो जाएगा कि ऐसे नारे लगे तो हम इन्हें गलत कहेंगे।”
आरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह धर्म आधारित है। उन्होंने कहा, “1950 के प्रेसीडेंशियल आर्डर में कहा गया कि जब तक अनुसूचित जाति और जनजाति हिन्दू हैं, तब तक उन्हें आरक्षण का लाभ मिलेगा। जैसे ही वे अन्य धर्म स्वीकार करेंगे, यह लाभ नहीं मिलेगा। इससे स्पष्ट है कि धर्म के आधार पर भेदभाव किया गया है। ”
उनसे जब आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों की आरक्षण की मांग के बारे में पूछा गया तो नोमानी कहा, “जब तक संविधान में सुधार नहीं होगा तब तक कोई हमारी मांग नहीं सुनेगा।”
उन्होंने कहा कि आरक्षण के मामले में सभी राजनैतिक दलों और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक स्वर में संविधान में सुधार की मांग करनी चाहिए।