नई दिल्लीः हाल के दिनों में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की विभिन्न राज्यों की ऑडिट रिपोर्ट को उन राज्यों की विधानसभाओं में पेश किया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये राज्य गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल और ओडिशा हैं.
गुजरात
गुजरात विधानसभा में 31 मार्च को कैग की रिपोर्ट को पेश की गई. इस रिपोर्ट की मुख्य बातें इस प्रकार हैंः
1) कैग की रिपोर्ट में राज्य सरकार को लगातार बढ़ रहे कर्ज को लेकर चेताया गया और इससे बचने के लिए एक सुनियोजित उधार चुकाने की रणनीति पर काम करने की सलाह दी गई. रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य को अगले सात सालों में कुल कर्ज का 61 फीसदी भुगतान करना है, जिससे उसके संसाधनों पर दबाव पड़ सकता है.
2) कोविड-19 महामारी का उल्लेख किए बिना कैग रिपोर्ट में कहा गया कि 2020-2021 के दौरान गुजरात में 2011-2012 के बाद से पहली बार राजस्व घाटा हुआ. साथ ही यह भी कहा गया कि सरकार ने 10,997 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे को कम आंका था.
3) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत राज्य ने 2020-2021 में अपनी लक्षित सड़क लंबाई में एक-तिहाई का संशोधन किया और साल के अंत में 54 फीसदी धनराशि को खर्च नहीं किया गया.
4) कैग रिपोर्ट में कहा गया कि गुजरात की पीएसयू कंपनियों को 30,400 करोड़ रुपये का घाटा हुआ और सरकार ने उन कंपनियों में निवेश किया. गुजरात सड़क परिवहन निगम और गुजरात पेट्रोलियम निमग की संपत्ति समाप्त हो गई.
5) राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराई गई सब्सिडी पांच सालों में 2020-2021 के अंत में दोगुनी होकर 22,141 करोड़ रुपये हो गई.
बिहार
बिहार की 2002 की कैग रिपोर्ट 30 मार्च को राज्य विधानसभा में पेश की गई थी.
1) सैंपल में लिए गए पांच जिला अस्पतालों में से तीन में 52 फीसदी से 92 फीसदी बिस्तरों की कमी थी और इनमें से किसी भी अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर नहीं था जबकि सिर्फ एक अस्पताल में आईसीयू की सुविधा उपलब्ध थी. चार अस्पताल इंसेफेलाइटिस की आशंका वाले क्षेत्रों में हैं और इनमें जापानी इंसेफेलाइटिस की जांच की कोई सुविधा नहीं है.
2) नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत पटना में सीवेज ट्रीटमेंट के लिए पर्याप्त योजना नहीं है.
3) 31 मार्च 2020 तक राजस्व के प्रमुख स्रोत के तौर पर 4,584.73 करोड़ रुपये बकाया थे, जिसमें से 1,357.78 करोड़ रुपये की राशि पांच साल से अधिक समय से बकाया है.
महाराष्ट्र
1) महाराष्ट्र की कैग रिपोर्ट पिछले हफ्ते ही विधानसभा में पेश की गई है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (आरयूएसए) के महाराष्ट्र सरकार द्वारा क्रियान्वयन में देरी रही और इसकी मॉनिटरिंग अप्रभावी रही. इसे लेकर राज्य को मिलने वाला कुल अनुदान (ग्रांट) 376.97 करोड़ रुपये है, जिसमें से सरकार सिर्फ 283.07 करोड़ रुपये ही खर्च कर सकी जबकि 93.90 करोड़ रुपये की राशि खर्च ही नहीं हुई.
2) आवास आरक्षण योजना के तहत ग्रेटर मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम) द्वारा बाजार निर्माण के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र को या तो इस्तेमाल ही नहीं किया गया या यह खाली पड़ा रहा. एमसीजीएम फल, सब्जी और मीट की बिक्री के लिए सार्वजनिक बाजारों का निर्माण, उसका रखरखाव और उसे रेगुलेट करती है.
3) रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि मौजूदा जर्जर बाजारों का पुनर्विकास और दुकान मालिकों के पुनर्वास की हालत खस्ता रही.
4) प्रतिबंधित क्षेत्रों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण पर 3.25 करोड़ रुपये का फिजूल खर्च हुआ क्योंकि उसे बाद में नष्ट करना पड़ा.
5) एक अधूरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना के संशोधित प्रशासनिक अनुमति के लिए ग्रांट में देरी की वजह से छह सालों से अधिक समय के लिए फंड बाधित हुआ.
6) मुंबई स्लम इंप्रूवमेंट बोर्ड, मुंबई उपनगरीय जिले के कलेक्टर और एमसीजीएम के बीच समन्वय की कमी से मुंबई के घाटकोपर (पूर्व) के रमाबाई आंबेडकर नगर में 5.71 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित बहुउद्देश्यीय केंद्र पांच सालों से अधिक के लिए निष्क्रिय रहा.
7) कर योग्य आय का गलत अनुमान और एडवांस आयकर के कम भुगतान की वजह से वित्त वर्ष 2017-2018 के लिए 2.36 करोड़ रुपये के ब्याज का भुगतान करना पड़ा.
8) नहर के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण में असफलता से बांध के निर्माण पर 15.20 करोड़ रुपये का खर्च हुआ.
केरल
2020-2021 के लिए केरल की कैग रिपोर्ट को हाल ही में विधानसभा पटल पर रखा गया.
1) इसमें बताया गया कि केरल का राजकोषीय घाटा 2016-2017 में 26,448.35 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-2021 में 40,969.69 करोड़ रुपये हो गया.
2) 2020-2021के दौरान राजकोषीय घाटे में 17,132.22 करोड़ रुपये की वृद्धि मुख्य रूप से राजस्व घाटे (11,334.25 करोड़ रुपये) में बढ़ोतरी, गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियों (24.83 करोड़ रुपये) में कमी, पूंजीगत व्यय (4,434.85 करोड़ रुपये) में बढ़ोतरी और ऋणों के वितरण (1,338.29 करोड़ रुपये) में वृद्धि की वजह से हुई.
3) कुल राजस्व व्यय में से 60.94 फीसदी खर्च वेतन एवं मजदूरी (28767.46 करोड़ रुपये), ब्याज भुगतान (20975.36 करोड़ रुपये, पेंशन भुगतान (18942.85 करोड़ रुपये) और सब्सिडी (6547.48 करोड़ रुपये) में की गई.
4) 2020-2021 के अंत में राज्य का सार्वजनिक ऋण 2,05,447.73 करोड़ रुपये रहा, जिसमें आंतरिक ऋण (1,90,474.09 करोड़ रुपये) और केंद्र सरकार से ऋण और एडवांस (14,973.64 करोड़ रुपये) था.
ओडिशा
ओडिशा की कैग रिपोर्ट 31 मार्च को विधानसभा में पेश की गई.
1) राज्य की कैग रिपोर्ट से पता चलता है कि 1980 के दशक से ही राज्य में सिंचाई परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं और इनकी लगात में 182 फीसदी से 4,596 फीसदी की वृद्धि देखी गई है. ऑडिट की गई सात परियोजनाओं में से अब तक तीन परियोजनाएं ही पूरी हो पाई हैं. इनकी कुल शुरुआती लागत अनुमानित रूप से 955.73 करोड़ रुपये है.
हालांकि, संशोधित अनुमान 19,103.63 करोड़ रुपये है, जिसमें से अब तक 12,742.11 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं. अब तक सिंचाई के लिए प्रस्तावित 5,02,842 हेक्टेयर क्षेत्र में से 1,22,418 हेक्टेयर क्षेत्र ही कवर हो पाया है.
2) 2020-21 के दौरान ओडिशा सरकार की राजस्व प्राप्तियों (1,04,387 करोड़ रुपये) का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) (5,09,574 करोड़ रुपये) का 20.49% का योगदान था. 2020-21 के लिए राज्य का राजस्व व्यय (95,311 करोड़ रुपये) जीएसडीपी का 18.70% था, जो 2019-20 (99,137 करोड़ रुपये) की तुलना में 3,826 करोड़ रुपये (3.86 प्रतिशत) कम रहा.
3) 2020-21 में राज्य की कुल बचत 43,554.13 करोड़ रुपये थी, जिसमें से 32,556.37 करोड़ रुपये (74.75%) साल के आखिरी दिन यानी 31 मार्च, 2021 को सरेंडर किए गए थे. 2020-21 के दौरान 10,997.76 करोड़ रुपये की शेष बचत (25.25) %) को सरेंडर नहीं किया गया.
पश्चिम बंगाल
कैग रिपोर्ट 28 मार्च को राज्य विधानसभा में पेश की गई.
1) कैग रिपोर्ट में कहा गया कि मार्च 2020 और फरवरी 2021 में बंगाल सरकार ने 2019-2020 से 2024-2015 इन छह सालों की अवधि के लक्ष्य के संबंध में एफआरबीएम एक्ट में संशोधन किया था. 2016-21 के दौरान राज्य का राजकोषीय मानदंड, जैसा इसके राजस्व और राजकोषीय घाटे में दिखता है, नकारात्मक रहे. 2017-21 के दौरान राज्य को घाटा भी हुआ.
2) राज्य की देनदारियां साल दर साल बढ़ी हैं. 2020-2021 के दौरान बाजार उधारी का 58.84 फीसदी राज्य के राजस्व खाते को संतुलित करने में इस्तेमाल किया गया.
3) 2020-2021 के अंत में राज्य का बकाया सार्वजनिक ऋण 12.92 फीसदी बढ़ गया. आगामी तीन, पांच और सात सालों में कुल बकाया सार्वजनिक ऋण (4,24,247 करोड़ रुपये) की ऋण मैच्योरिटी 15.49, 26.60 और 41.42 फीसदी रहेगी.
4) रिपोर्ट बताती है कि 65 स्वायत्त निकाय (एबी), जिन्हें अपना वार्षिक लेखा कैग को प्रस्तुत करना था, में से दो जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों (डीएलएसए) ने 1998-99 में अपनी स्थापना के बाद से खाते जमा नहीं किए हैं. 30 सितंबर 2021 तक साल 2020-21 तक ऐसे निकायों के 288 सालाना खाते लंबित थे. रिपोर्ट कहती है कि ऐसा होना राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के ‘अपर्याप्त आंतरिक नियंत्रण’ और ‘निगरानी तंत्र की कमी’ को दिखाता है.