जयपुर, 21 मार्च (आईएएनएस)। राज्य विधानसभा ने शनिवार को राजस्थान (झील संरक्षण और विकास) प्राधिकरण विधेयक, 2015 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। यह विधेयक न केवल राजस्थान की विरासत एवं पर्यटन बल्कि यहां के पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
नगर विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने विधेयक को सदन में पेश किया।
उन्होंने इस विधेयक को लाए जाने के उद्देश्य एवं कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा यह विधेयक आने वाली पीढ़ियों के व्यापक हित में है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में जल संरचनाएं (वाटर बॉडीज) धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं, समय की आवश्यकता है कि इनकी चिंता करते हुए संरक्षण एवं सौंदर्यीकरण पर ध्यान दिया जाए।
नगर विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री ने कहा, “हमने लंबे समय तक मानव निर्मित एवं प्राकृतिक जल संरचनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। पानी और घास पर लोगों का अधिकार तब ही सुरक्षित रहेगा, जब झीलें बची रहेंगी।”
उन्होंने कहा कि पानी राष्ट्रीय धरोहर है, ऐसे में झीलों के संरक्षण की दिशा में ऐसी पहल के बारे में सभी को एकमत होना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विधेयक के कारण हमारी धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।
सिंह ने कहा, “इस विधेयक का उद्देश्य केवल झीलों को बचाने व संरक्षित करने तक ही सीमित नहीं है, हम इसके माध्यम से झीलों को उनके पुराने स्वरूप में लौटाने की ओर बढ़ना चाहते हैं।” उन्होंने कहा कि देश की आजादी के समय झीलों का जो स्वरूप था, हमारा लक्ष्य उन्हें उसी स्वरूप में लाकर उनका सौंदर्यीकरण करने का है।
उन्होंने चिंता जताई कि हमारी बहुमूल्य जैविक एवं भौगोलिक वनस्पतियां और प्रजातियां तेजी से समाप्त हो रही हैं। वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं को बचाने की जिम्मेदारी मानव सभ्यता की है, जो झील संरक्षण के बिना नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद पूरे इको सिस्टम का इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट संभव हो सकेगा।
शेखावत ने बताया कि झीलों के संरक्षण की काफी समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी। यूनेस्को द्वारा एक अध्ययन में बताया गया था कि राजस्थान में 50 प्रतिशत से ज्यादा वाटर बॉडीज समाप्त हो रही हैं, या उनका जलक्षेत्र संकुचित होता जा रहा है। यह हमारे प्रदेश की पारिस्थितिकी के लिए गंभीर चुनौती है।
उन्होंने बताया कि उदयपुर की झीलों के संरक्षण के लिए अनेक जनहित याचिकाएं भी लगाई गई, जिसमें झीलों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई। वर्ष 2007 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में झीलों के संरक्षण के लिए तत्कालीन सरकार को प्राधिकरण बनाने के आदेश दिए थे।