अनिल सिंह(भोपाल)- भाजपा ने भोपाल लोकसभा की विवादित बना दी गयी सीट पर आलोक संजर को प्रत्याशी घोषित कर एक तीर से कई निशाने किये हैं .
आलोक निर्विवादित और कर्मठ छवि के नेता हैं
आलोक संजर कर्मठ और चतुर नेता हैं,समय का इंतजार और व्यक्तित्व की सरलता आलोक संजर के व्यक्तित्व का पहलू है लेकिन इसके पीछे राजनैतिक जोड़-तोड़ का लम्बा अनुभव भी इस राजनेता की धरोहर है,इन्ही शस्त्रों को लेकर आलोक इस घमासान में अव्वल आने में सफल रहे.
आलोक संजर लोकसभा टिकट की दौड़ में भले ही ना दिख रहे थे लेकिन इनकी अनुभवी आँखों ने कुछ देख लिया था और इस दौड़ में समानान्तर रिले धावक की तरह वे दौड़ रहे थे,समय के इंतजार में,उन्हे यह समझ आ गया था की बिल्लियों की लड़ाई में फायदा उठाया जा सकता है.
बड़े नेताओं को कोई परहेज नहीं था इस नाम से
आडवाणी,उमा भारती जैसे बड़े नेताओं को दूर रखने की कवायद में आलोक शर्मा और कृष्णा गौर ने इस सीट के लिये छीना-झपटी शुरू कर दी लेकिन राजनीति का यह चाणक्य अपने ही तरीके से चुपचाप मैदान में था और चलती हुई चालों पर नजर रखे हुए था.जब आडवाणी का मोह इस सीट से भंग हुआ और उमा के मंतव्यों को तोड़ दिया गया तब शिवराज के करीबी आलोक शर्मा का उत्साह बढ़ा उधर राजनीति के पुराने खिलाडी बाबूलाल गौर भी जागे और अपने तीर छोड़ने लगे.
मंथन में सामने आया नाम
जब मुख्यमंत्री निवास पर इन नामों पर चर्चा हुई तब आलोक शर्मा के नाम पर कैलाश जोशी ने असहमती व्यक्त की,अन्य नामों की चर्चा मे आलोक संजर का नाम सामने आते ही सभी मे जिसमे विधायक भी शामिल थे ने सहमति जता दी कैलाश जोशी के हाँ भरते ही आलोक संजर के नाम पर मुहर लग गयी.
आलोक संजर के चुनाव लड़ने से आम कार्यकर्ता उत्साहित है
संजर को टिकट देने से उन कार्यकर्ताओं में उत्साह है जो जमीनी तौर पर जुड़े हुए हैं क्योंकि मात्र यही एक सीट है जिस पर जमीन से उठे सामान्य और संवेदनशील कार्यकर्ता को टिकट दिया गया है.
लोकतांत्रिक मूल्यों पर दम तोड़ती भाजपा के लिये यह टिकट नयी दिशा होगा
भाजपा में टिकट वितरण प्रजातांत्रिक तरीके से देने का का वर्षों से जो ढोंग चल रहा था इस टिकट के देने के बाद एक नयी दिशा कार्यकर्ताओं को मिली है,अब जमीनी कार्यकर्ताओं में यह उम्मीद जागी है की उनका भी कुछ भविष्य हो सकता है.