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 रक्षाबंधन: रक्षा एक धर्म है | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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रक्षाबंधन: रक्षा एक धर्म है

30_04_2013-Rakshapभारतीय परंपरा में विश्वास का बंधन ही मूल है। रक्षाबंधन इसी विश्वास का बंधन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बांधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता, वरन प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बांधने का भी वचन देता है। पहले आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिए किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। सूत्र अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी व्यक्ति से, समाज से और अपने कर्तव्यों से जोड़ता है।

रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति का प्रमुख पर्व है। उत्तर भारत में आम तौर पर इसे भाई-बहन के स्नेह व उनके आपसी कर्तव्यों के लिए जाना जाता है। भाई द्वारा बहन की रक्षा और इसके लिए बहन द्वारा भाई की कलाई पर रक्षा-सूत्र या राखी बांधने का रिवाज ही रक्षाबंधन पर्व कहा जाता है। किंतु यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में देश और राष्ट्र की रक्षा, जीवों की रक्षा, समाज व परिवार की रक्षा और भाषा व संस्कृति की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है। वर्तमान में रक्षाबंधन के संकल्प को पर्यावरण की रक्षा के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है। कई लोग वृक्षों को राखी बांधकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता ला रहे हैं।

रक्षा का संकल्प व्यक्ति के भीतर आत्मविश्वास लाता है। रक्षा करने का भाव ही व्यक्ति को ऊर्जस्वित बना देता है और वह इस ऊर्जा के वशीभूत बड़े से बड़े काम कर जाता है। रक्षा का संकल्प लेने वाला व्यक्ति भले ही शारीरिक रूपरेखा में कमजोर हो, लेकिन वह अंतस की ऊर्जा से ओतप्रोत हो जाता है।

श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले रक्षाबंधन से संबंधित अनेक कहानियां हैं, जो रक्षा करने के भाव से जुड़ी हुई हैं-

हिंदू ग्रंथों व पुराणों में भगवान विष्णु के वामन अवतार लेने की कथा है। उसके अनुसार, दानवों के राजा बलि के 100 यज्ञ पूरे होने से देवराज इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। विष्णु जी वामन का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। उन्होंने बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली। वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखें? बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। यदि वह अपना वचन नहीं निभाता, तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन रूप भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही बलि रसातल लोक में पहुंच गया। बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। अब अंतत: लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षा-सूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार में अपने पति विष्णु को मांग लिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।

जैन धर्म में यह पर्व साधना में लीन सात सौ मुनिराजों की रक्षा के साथ जुड़ा है। इसकी कथा भी वामन अवतार की तरह ही है। इसमें मुनिराज विष्णु कुमार वामन का रूप धारण कर राजा बलि से मुनियों की रक्षा करते हैं। इस कथा के अनुसार, अकंपनाचार्य का सात सौ मुनियों का संघ विहार करते हुए हस्तिनापुर पहुंचा। जिस स्थान पर मुनि साधना कर रहे थे, उसके चारों तरफ राजा बलि ने आग लगवा दी। धुएं से मुनियों के गले अवरुद्ध हो गए, आंखें सूज गईं और तेज गर्मी से उन्हें कष्ट होने लगा, लेकिन मुनियों ने धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक यह कष्ट दूर नहीं होगा, तब तक अन्न-जल का त्याग करेंगे। वह श्रावण शुक्ल पूर्णिमा का ही दिन था। उस दिन मुनियों के संकट दूर करने के लिए मुनिराज विष्णु कुमार ने वामन का भेष धारण किया और बलि से भिक्षा में तीन पैर धरती मांगी। विष्णु कुमार ने अपने शरीर को बहुत अधिक बढ़ा लिया। उन्होंने अपना एक पैर सुमेरु पर्वत पर रखा, तो दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वत पर। तीसरा पैर रखने की जगह ही न थी। सर्वत्र हाहाकार मच गया। बलि ने जब क्षमा याचना की, तब जाकर वे पूर्ववत हुए। इस तरह सात सौ मुनियों की रक्षा हुई। सभी ने परस्पर रक्षा करने के लिए बंधन बांधा।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बांध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। महाभारत काल में द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण को तथा कुंती द्वारा अभिमन्यु को राखी बांधने के भी वृत्तांत मिलते हैं।

मुंबई के कई समुद्री इलाकों में इसे नारियल-पूर्णिमा या कोकोनट-फुलमून के नाम से भी जाना जाता है। श्रावण की पूर्णिमा को समुद्र में तूफान कम उठते हैं और नारियल इसीलिए समुद्र-देव (वरुण) को चढ़ाया जाता है कि वे व्यापारी जहाजों को सुरक्षा दे सकें।

रक्षाबंधन के त्योहार के साथ कुछ ऐतिहासिक प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। मुगल बादशाह हुमायूं चितौड़ पर आक्त्रमण करने बढ़ा, तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा का वचन लिया था। हुमायूं ने मदद करके राखी के वचन की लाज रखी थी। इसी प्रकार सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरुवास को राखी बांधकर अपना भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था, जिसे सिकंदर ने निभाया।

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