अत्यधिक खर्च के लिए जर्मनी में लिम्बुर्ग के बिशप फ्रांस पेटर टेबार्त्स फान एल्स्ट की भारी आलोचना हो रही है. आज जर्मन बिशप कांफ्रेंस के प्रमुख रोबर्ट सोलिच की वैटिकन में पोप से मुलाकात में उनके भविष्य का फैसला हो सकता है.
बच्चों के यौन शोषण कांड से जूझ रहे जर्मन कैथोलिक चर्च के सदस्य लगातार चर्च छोड़ रहे हैं. अब बिशप एल्स्ट के खुले खर्चे पर आम लोगों के गुस्से के बीच चर्च को और सदस्य खोने की चिंता सता रही है. पिछले हफ्ते बिशप के नए निवास पर 3.1 करोड़ यूरो की फिजूलखर्ची की रिपोर्ट आने के बाद से बिशप एल्स्ट ने नकारात्मक सुर्खियां बटोरी हैं. 53 वर्षीय बिशप को वैटिकन बुलाया गया है और आज उनकी पोप फ्रांसिस के साथ मुलाकात की संभावना है. सादगी की तरफदारी करने वाले पोप ने चर्च को गरीबों का चर्च बताया है.
बिशप के खर्चीले महल और 15,000 यूरो के बाथटब पर जर्मन चर्च के बहुत से सदस्यों के खुले विद्रोह के बाद सदस्यों के चर्च से निकलने के मामलों में तेजी आई है. प्रेक्षकों का कहना है कि यदि लिम्बुर्ग के प्राचीन शहर में सदस्यों के चर्च छोड़ने का अनुपात राष्ट्रीय स्तर पर दिखता है, तो कैथोलिक गिरजे पर बुरा असर होगा. खासकर इसलिए कि जर्मनी में धर्मावलम्बी चर्च को हर महीने भारी टैक्स भी देते हैं.लिम्बुर्ग के चर्च में पंजीकरण के प्रभारी रुडिगर एशओफेन कहते हैं, “मैंने लोगों के धर्म छोड़ने की ऐसी लहर कभी नहीं देखी है.”
जर्मनी में धार्मिक टैक्स का प्रावधान है. करदाताओं को बताना जरूरी है कि वे कैथोलिक हैं, प्रोटेस्टेंट हैं या किसी धर्म को नहीं मानते या फिर किसी और धर्म के हैं. इसके आधार पर चर्च टैक्स देना पड़ता है, जिसे संबंधित चर्च को सौंप दिया जाता है. लोगों को चर्च छोड़ने और चर्च टैक्स रोक देने की अनुमति है. एशओफेन के अनुसार पिछले साल लिम्बुर्ग में 295 लोगों ने चर्च छोड़ा था, लेकिन पिछले दिनों में गुरुवार को 20 लोगों ने, शुक्रवार को 18 और सोमवार को 29 लोगों ने चर्च छोड़ा.
जर्मनी में करीब 2.3 करोड़ कैथोलिक धर्माबलंबी हैं और उन्होंने 2012 में 5.2 अरब यूरो का चर्च टैक्स दिया, जो कैथोलिक गिरजे की आमदनी का मुख्य स्रोत है. लोगों को आयकर का 8 से 10 प्रतिशत धार्मिक टैक्स देना पड़ता है. इस आय का इस्तेमाल चर्च धर्माधिकारियों का वेतन देने के अलावा अस्पताल, किंडरगार्टन और लोक कल्याण संस्थाएं चलाने के लिए करता है.
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड और अमेरिका की तरह जर्मनी का कैथोलिक चर्च भी बच्चों के यौन शोषण के कांड से प्रभावित रहा है. ये मामले 2010 से 2012 के बीच सामने आए, जिसके बाद बहुत सारे लोगों ने चर्च की सदस्यता छोड़ दी. 2010 में करीब 180,000 लोगों ने चर्च की सदस्यता छोड़ी. 2012 में यह संख्या कम हो कर 118,000 रह गई.
धार्मिक मुद्दों पर काम करने वाले समाजशास्त्री डेटलेफ पोलाक ताजा मामले को कैथोलिक गिरजे के लिए असली खतरा बताते हैं. मीडिया ने टेबार्त्स फान एल्स्ट को भड़कीला बिशप नाम दे दिया है. उन पर यह भी आरोप है कि झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीबों से मिलने भारत जाते समय उन्होंने हवाई जहाज में फर्स्ट क्लास में यात्रा की लेकिन इसके बारे में झूठ बताया. पोलाक का कहना है कि बहुत से लोग चर्च को इसलिए पैसा नहीं देना चाहते कि इससे बिशप अपनी विलासिता की भूख मिटाए. जर्मनी के कई धार्मिक जिलों ने लोगों का संदेह मिटाने के लिए अपनी संपति का ब्यौरा देना शुरू कर दिया है.
वित्तीय जोखिम से ज्यादा चर्च को लोगों का भरोसा खोने का डर है. चर्च अभी भी जर्मनी के बहुत से इलाकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लोग बिशप एल्स्ट के इस्तीफे की माग कर रहे हैं, लेकिन यह आसान नहीं होगा. कंजरवेटिव दैनिक डी वेल्ट का कहना है, “कैथोलिक बिशप न तो मैनेजर हैं और न ही राजनीतिज्ञ. वे अपनी आध्यात्मिक और लौकिक सत्ता बोर्ड या मतदाताओं से नहीं बल्कि देवता से पाते हैं.” सही या सही समझी जा रही गलतियों पर इस्तीफा उद्यमों या राजनीति में होता है. चर्च के लिए यह एक बिल्कुल नई बात होगी.from dw.de