पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि दाह संस्कार के कारण यूरोप में प्रदूषण बढ़ रहा है. ब्रसेल्स में पर्यावरणविदों ने मृत लोगों के दहन के कारण वातावरण में बढ़ती पारे की मात्रा पर चिंता जताई है.
जगह की कमी होने के कारण यूरोप में मृतकों को दफनाना महंगा होता जा रहा है. ऐसे में कई लोग अपने परिजनों का दाह संस्कार करने लगे हैं. हालांकि यह भारत की तरह खुले में नहीं, बल्कि बंद भट्टियों में किया जाता है. पर्यावरणविदों की शिकायत है कि हर दहन दो से छह ग्राम पारे को वातावरण में उत्सर्जित करता है. यह मुख्य रूप से दांत की फिलिंग से आता है.
यूरोपियन एनवायरनमेंट ब्यूरो (ईईबी) का कहना है कि इससे बचने के लिए एक विकल्प यह हो सकता है कि मृतक के शरीर का दहन करने से पहले फिलिंग या फिर फिलिंग किए हुए दांत निकाल लिए जाएं. हालांकि ईईबी ने माना है कि इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं. गैर सरकारी संगठनों के साथ मिल कर ईईबी इस समस्या का हल निकालने में लगा है.
यूरोपीय संघ के 28 देशों में से केवल जर्मनी में ही पारे के उत्सर्जन की सीमा तय है. हालांकि पारे के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्र हैं. लेकिन स्वीडन और डेनमार्क में दांतों में की जाने वाली फिलिंग में पारे के इस्तेमाल पर रोक है. वहीं ब्रिटेन की क्रिमेशन सोसायटी के आंकड़े बताते हैं कि यूरोप में सबसे ज्यादा दाह संस्कार स्विट्जरलैंड में किया जाता है. 2012 के डाटा के अनुसार दूसरे नंबर पर डेनमार्क और तीसरे पर ब्रिटेन है.
ईईबी 19 से 22 जनवरी के बीच यूरोपीय आयोग और उद्यमों के साथ इस पर चर्चा करेगा.
dw.de से