नई दिल्ली, 17 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि वह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा के लिए दिए जाने वाले आवेदन में किन्नरों के लिए लिंग का अलग विकल्प देने से संबंधित नियम नहीं बना सकती, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी है।
केंद्र सरकार और लोक सेवा आयोग ने न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति पी.एस.तेजी की खंडपीठ को बताया कि किन्नर शब्द पर स्पष्टीकरण देने के लिए एक याचिका दायर की गई है।
केंद्र सरकार ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में किन्नरों की कोई परिभाषा स्पष्ट नहीं की है, इसलिए हमने उनकी परिभाषा को लेकर स्पष्टीकरण की मांग करने वाली याचिका दायर की है। स्पष्टीकरण के बाद नियम बनाए जा सकते हैं।”
न्यायालय एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिसमें सिविल सर्विस की प्राथमिक परीक्षा के आवेदन पत्र में उनके लिए विकल्प न रखे जाने संबंधी यूपीएससी की नोटिस को रद्द करने की मांग की गई है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार और यूपीएससी से पूछा था कि इसकी प्रारंभिक परीक्षा से संबंधित आवेदन में किन्नरों के लिए लिंग का अलग विकल्प क्यों नहीं है?
अप्रैल 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने किन्नर समुदाय को तीसरा लिंग का दर्जा दिया था और केंद्र सरकार से कहा था कि किन्नरों को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़ा माना जाए।
इससे पहले किन्नरों को अपने लिंग के आगे महिला या फिर पुरुष लिखना पड़ता था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किन्नरों को तीसरे लिंग से संबंध रखने के आधार पर शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिलेगा और नौकरी मिलेगी।
अपनी प्रतिक्रिया में केंद्र सरकार ने कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और आवेदन में बदलाव या स्पष्टीकरण अभी लंबित है। ‘केंद्र सरकार की तरफ से किन्नरों को तीसरा लिंग माने जाने को लेकर न कोई फैसला लिया गया है न ही आदेश दिया गया है।’
सरकार ने कहा, “यूपीएससी के आवेदन पत्र में किन्नरों को इस प्रकार से शामिल किए जाने का काम शुरू नहीं किया गया है।”
सरकार ने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने गे, लेस्बियन, बायसेक्सुअल लोगों को भी किन्नर माना है।
इसने कहा, “हालांकि, गे, लेस्बियन, बायसेक्सुअल को लेकर सरकार की राय उनकी यौन इच्छा पर आधारित है, जबकि किन्नर का मामला किसी की लैंगिक पहचान से जुड़ा है।”
सरकार ने कोई भी अंतरिम आदेश न जारी किए जाने की मांग करते हुए कहा, “सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से ऐसा लगता है कि सभी किन्नरों को तीसरा लिंग माना गया है। हालांकि, किन्नरों की परिभाषा अभी तक स्पष्ट नहीं है।”
वकील जमशेद अंसारी ने अपनी याचिका में यूपीएससी के आवेदन पत्र में किन्नरों के लिए भी लिंग का विकल्प रखने की मांग की है। उनका कहना है कि यह किन्नर समुदाय के लिए फायदेमंद रहेगा, जो रोजगार से वंचित हैं और सामाजिक पिछड़ापन झेल रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि तीसरे लिंग का विकल्प शामिल न किए जाने के कारण वे 23 अगस्त को होने वाली परीक्षा के लिए आवेदन नहीं दे पाए।