धृतराष्ट्र कौन हैं? धृत का अर्थ है धारण करने वाला और राष्ट्र का यहां आशय है संरचना। इस कारण धृतराष्ट्र का आशय हुआ संरचना को धारण करने वाला यानी मन। अत: धृतराष्ट्र उवाच का अर्थ हुआ मन से उत्पन्न प्रश्न। धृतराष्ट्र नेत्रहीन थे। मन एक अंधी शक्ति है। उसे संजय अर्थात विवेक की सहायता चाहिए। अंध मन (धृतराष्ट्र) पूछता है कि हे विवेक यानी संजय तुम देख सकते हो, इसलिए बताओ, मेरे और पांडव पक्ष के लोगों ने धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र नामक स्थल में क्या किया? धर्मक्षेत्र क्या है? धर्म का यहां आशय है विशिष्टता और क्षेत्र का अर्थ है भूमि या मैदान जहां धर्म संबंधी कार्य संपन्न होते हैं। यह भौतिक शरीर ही धर्मक्षेत्र है। इस भौतिक देह के माध्यम से ही संपन्न होता है धर्म।
कुरुक्षेत्र से आशय है कुरु यानी करो, बैठे मत रहो। क्षेत्र यानी भूमि बार-बार कहती है कि कुछ करो, करते रहो, युद्धरत रहो। यह संसार ही कुरुक्षेत्र है। आप यहां कुछ करने के लिए आए हैं। यह संसार हुआ कुरुक्षेत्र और भौतिक देह हुई धर्मक्षेत्र। धृतराष्ट्र प्रश्न पूछते हैं -हे संजय, बताओ कि पांडु पक्ष और कौरव पक्ष क्या कर रहे हैं? संजय ने उत्तर दिया कि दोनों ही पक्ष युद्ध करने के लिए तैयार खड़े हैं। इस भौतिक संसार और भौतिक देह, दोनों में परस्पर दो संघर्षरत पक्ष समवेत हुए हैं-एक पांडु पक्ष और दूसरा कौरव पक्ष। कौरव और पांडव का यह संघर्ष है पाप और पुण्य के बीच, शुभ शक्ति और अशुभ शक्ति के बीच। यह संघर्ष चल रहा है प्रत्येक व्यक्ति और सभी भौतिक संरचनाओं में, सभी परिवारों में, सभी नगरों, गांवों, देशों और संपूर्ण भूमंडल में। धृतराष्ट्र का अंधा मन उचित ढंग से न तो देख सकता है और न समझ सकता है। उसे इस द्विपक्षीय संघर्ष का विवरण जानने के लिए संजय रूपी विवेक की सहायता लेनी होगी। यह विवेक ही जीवन में धर्म और अधर्म की पहचान में सहायक बनता है।