भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने भगवान शिव का अपने पिता द्वारा अपमान किये जाने पर यज्ञ की अग्नि में कूद कर आत्मदाह कर लिया। इसके बाद भगवान शिव व्याकुल हो उठे और सती के शव को कंधे पर लेकर तीनों लोकों में बेसुध भटकने लगे। शिवजी का मोह भंग करने के लिए भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिये।
सती के अंग धरती पर जहां गिरे उस स्थान पर आदिशक्ति की उर्जा विराजमान हो गयी और वह स्थान शक्तिपीठ कहलाने लगा। माना जाता जाता है शक्तिपीठ में देवी सदैव विराजमान रहती हैं। जो भी इन स्थानों पर मॉ की पूजा अर्चना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। ऐसा ही एक शक्तिपीठ कनखल यानी वर्तमान हरिद्वार में स्थित है।
कनखल देवी सती की जन्मस्थली है और यहीं इन्होंने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह भी किया था। मान्यता है कि यहां पर देवी सती की नाभि गिरी थी। नाभि शरीर का मध्य भाग होता है, अत: धारणा है कि इस स्थल पर भूमिगत ऊर्जा मौजद है। जो भी भक्त यहां माता के दर्शनों के लिए आता है उसे मां की उर्जा की अनुभूति पहली बार में ही प्राप्त हो जाती है।
जहां जहां भी शक्तिपीठ है भगवान शिव ने इसकी रक्षा के लिए अपने एक भैरव को नियुक्त किया है। भगवती के इस स्वरूप की रक्षा भगवान आनंद भैरव करते हैं। नवरात्रों में शक्तिपीठ मायादेवी पर श्रद्धालुओं का तांता लग रहता है।
माया देवी शक्तिपीठ की एक विशेषता यह भी है कि, मनसा देवी और चंडी देवी को मिलाकर यह एक अद्भुत त्रिभुज का निर्माण करती है। मान्यता है इस अद्भुत त्रिभुज का दिव्य लाभ भी यहां आने वाले भक्तों को प्राप्त होता है।