इस्लामाबाद, 20 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पाकिस्तान के लिए उसे जगाने वाली, होशियार और खबरदार करने वाली होनी चाहिए। पाकिस्तान को समझ में आना चाहिए कि भारत इस क्षेत्र में पहलकदमी कर रहा है।
इस्लामाबाद, 20 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पाकिस्तान के लिए उसे जगाने वाली, होशियार और खबरदार करने वाली होनी चाहिए। पाकिस्तान को समझ में आना चाहिए कि भारत इस क्षेत्र में पहलकदमी कर रहा है।
ये बातें पाकिस्तान के अखबार डॉन ने गुरुवार को अपने संपादकीय में लिखीं। अखबार ने लिखा है कि मोदी की 16-17 अगस्त की यूएई की यात्रा और इसके बाद जारी हुए संयुक्त बयान को पाकिस्तान के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं समझा जाना चाहिए।
अखबार ने अपने संपादकीय में भारत के आधारभूत क्षेत्र में यूएई के 75 अरब डालर के निवेश का जिक्र किया है। अखबार ने लिखा है कि संयुक्त बयान में आतंकवाद के हर रूप की निंदा करते हुए इसका समर्थन करने वालों और इसे दूसरे देश के खिलाफ इस्तेमाल करने वालों की निंदा की गई है। अखबार ने लिखा है, “इस भाषा की व्याख्या इसी तरह की गई है कि इसका इशारा पाकिस्तान की तरफ है।”
अखबार ने लिखा है कि भारत और यूएई के बीच बढ़ती नजदीकी ‘चेताने वाला’ से कुछ अधिक माना जा सकता है।
अखबार ने लिखा है, “क्षेत्र में हो रही राजनयिक सक्रियता के तौर तरीकों से यह खास तौर से दिख रहा है कि विदेश नीति के कार्यकलाप किस हद तक अब बदल चुके हैं।”
संपादकीय में लिखा गया है, “भारत क्षेत्र में सक्रिय रूप से पहलकदमी कर रहा है। अलग-अलग मिजाज के देशों यूएई, ईरान, चीन और अमेरिका के साथ मिल कर मध्य पूर्व से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक संपर्क का एक जाल बुन रहा है। “
अखबार ने लिखा है कि ये तमाम बातें पाकिस्तान की विदेश नीति से जुड़े लोगों को जगाने के लिए काफी हैं। उन्हें समझना होगा कि उनका खेल अब बुनियादी रूप से बदल चुका है।
अखबार ने लिखा है, “क्षेत्रीय विवाद अब विदेश नीति के उत्प्रेरक का काम नहीं कर सकते। बजाए इसके अब पहले के मुकाबले कहीं अधिक देशों का ध्यान अपने हित को आर्थिक चश्मे से देखने का हो गया है। किसी एक मामले में दो देश एक दूसरे के खिलाफ होते हैं और वही दोनों देश किसी अन्य मामले में एक दूसरे के सहयोगी।”
अखबार ने लिखा है कि वक्त आ गया है कि पाकिस्तान अपनी पुरानी शीत युद्ध के समय वाली विदेश नीति को बदले। यह नीति अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए बड़े भाई या मालिक की तलाश करती थी और बदले में उन्हें भू-राजनैतिक लाभ देती थी। लेकिन अब यह नीति किसी काम की नहीं रह गई है।