नई दिल्ली, 5 सितम्बर | ‘शिक्षक दिवस’ पर बच्चों के साथ संवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण का मूल पाठ यहां दिया जा रहा है। मेरे लिए एक सौभाग्य की घड़ी है कि मुझे भारत के भावी सपने जिनकी आंखों में सवार हैं, उन बालकों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है। आज शिक्षक दिवस है। धीरे-धीरे इस प्रेरक प्रसंग की अहमियत कम होती जा रही है। शायद, बहुत सारे स्कूल होंगे, जहां पांच सितंबर को इस रूप में याद भी नहीं किया जाता होगा।
शिक्षकों को अवार्ड मिलना, उनका समारोह होना, वहां तक ही ज्यादातर ये सीमित हो गया है। आवश्यकता है कि हम इस बात को उजागर करें कि समाज जीवन में शिक्षक का महात्म्य क्या है और जब तक हम उस महात्म्य को स्वीकार नहीं करेंगे, न उस शिक्षक के प्रति गौरव पैदा होगा, न शिक्षिक के माध्यम से, नई पीढ़ी में परिवर्तन में कोई ज्यादा सफलता प्राप्त होगी।
इसलिए इस एक महान परंपरा को समयानुकूल परिवर्तन कर के अधिक प्राणवान कैसे बनाया जाए, अधिक तेजस्वी कैसे बनाया जाए और इस पर एक चिंतन बहस होने की आवश्यकता है। क्या कारण है कि बहुत ही सामर्थवान विद्यार्थी, टीचर बनना पसंद क्यों नहीं करते? इस सवाल का जवाब हम सबको खोजना होगा।
एक वैश्विक परिवेश में ऐसा माना जाता है कि सारी दुनिया में, अच्छे टीचरों की बहुत बड़ी मांग है, अच्छे टीचर मिल नहीं रहे हैं। भारत एक युवा देश है। क्या भारत यह सपना नहीं देख सकता कि हमारे देश से उत्तम प्रकार के टीचर्स एक्सपोर्ट करेंगे और आज भी बालक हैं, उनके मन में हम इच्छा नहीं जगा सकते कि मैं भी एक अच्छा टीचर बन के देश और समाज के लिए काम आऊंगा, ये भाव कैसे जगे?
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने एक उत्तम सेवा इस देश की, की। वह अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। वह शिक्षक का जन्म दिन मनाने का आग्रह करते थे। ये शिक्षक दिवस की कल्पना ऐसे पैदा हुई है, खैर अब तो दुनिया के कई देशों में इस परंपरा को जन्म मिला है।
दुनिया में किसी भी बड़े व्यक्ति से पूछिए, उनके जीवन में सफलता के बारे में वह दो बातें अवश्य बताएगा। एक कहेगा, मेरी मां का योगदान है। दूसरा, मेरे शिक्षक का योगदान है। करीब-करीब सभी महापुरुषों के जीवन में ये बात हमें सुनने को मिलती है, लेकिन यही बात हम जहां हैं, वहां सजगतापूर्वक उसको जीने का प्रयास करते हैं क्या?
एक जमाना था शिक्षक के प्रति ऐसा भाव था, यानी, छोटा-सा गांव हो तो पूरे गांव में सबसे आदरणीय कोई व्यक्ति हुआ करता था, तो शिक्षक हुआ करता था। नहीं मास्टर जी ने बता दिया है, मास्टर जी ने कह दिया है, ऐसा एक भाव था। धीरे-धीरे स्थिति काफी बदल गई है। उस स्थिति को पुन: प्रतिस्थापित कर सकते हैं।
एक बालक के नाते आपके मन में काफी सवाल होंगे। आप में से कई बालक होंगे जिनको छुट्टी के दिन परेशानी होती होगी कि सोमवार कैसे आए और संडे को क्या-क्या किया जाकर के टीचर को बता दूं। जो अपनी मां को नहीं बता सकता, अपने भाई-बहन को नहीं बता सकता वो बात अपने टीचर को बताने के लिए इतना लालायित रहता है। इतना आपनापन हो जाता है, उसको और वही उसके जीवन को बदलता है, फिर उसका शब्द उसके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव लाता है।
मैंने कई ऐसे विद्यार्थी देखे हैं जो बाल भी ऐसे बनाएंगे जैसे उसका टीचर बनाता है, कपड़े भी ऐसे पहनेंगे जैसे उसका टीचर पहनता है, वो उनका हीरो होता है। ये जो अवस्था है, उस अवस्था को जितना हम प्राणवान बनाएं, उतनी हमारी नई पीढ़ी तैयार होगी।
चीन में एक कहावत है जो लोग साल का सोचते हैं, वो अनाज बोते हैं, जो दस साल का सोचते हैं, वो फलों के वृक्ष बोते हैं, लेकिन जो पीढ़ियों को सोचते हैं वो इंसान बोते हैं। मतलब उसको शिक्षित करना, संस्कारित करना उसके जीवन को तैयार करना। हमारी शिक्षा प्रणाली को जीवन निर्माण के साथ कैसे हम जीवन्त बनाएं।
मैंने 15 अगस्त को एक बात कही थी कि हमारे देश में इस वर्ष मेरी इच्छा है कि जितने स्कूल हैं, उनमें कोई स्कूल ऐसा न हो जिसमें बालिकाओं के लिए अलग टायलेट न हो। आज कई स्कूल ऐसे हैं जहां बालिकाओं के लिए अलग टायलेट नहीं हैं। कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां बालक के लिए भी नहीं, बालिका के लिए भी नहीं हैं।
अब यूं तो लगेगा कि ये ऐसा कोई काम है कि जो प्रधानमंत्री के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन जब मैं डिटेल में गया तो मुझे लगा कि बड़ा महत्वपूर्ण काम है, करने जैसा काम है, लेकिन मुझे उसमें, जो देशभर के टीचर मुझे सुन रहे हैं, मुझे हर स्कूल से मदद चाहिए, एक माहौल बनना चाहिए।
अभी मैं दो दिन पहले जापान गया था, एक भारतीय परिवार मुझे मिला लेकिन उनकी पत्नी जापानी है। पतिदेव इंडियन हैं वो मेरे पास आकर बोले कि एक बात करनी है। मैंने कहा- बताओ। बोले कि आपका 15 अगस्त का भाषण भी सुना था आप जो सफाई पर बड़ा आग्रह कर रहे हैं, हमारे यहां नियम है जापान में, हम सभी टीचर और स्टूडेंट मिलकर के स्कूल में सफाई करते हैं। टायलेट वगैरह सब मिलकर सफाई करते हैं और ये हमारे स्कूल में चरित्र निर्माण का एक हिस्सा है। आप हिन्दुस्तान में ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं।
मैंने कहा, मुझे जाकर मीडिया वालों से पूछना पड़ेगा, वरना ये 24 घंटे चल पड़ता है। मैंने क्योंकि एक दिन देखा था कि जब मैं गुजरात में था तो कार्यक्रम आ रहा था। कार्यक्रम ये था कि बच्चे स्कूल में सफाई करते हैं, और क्या तूफान खड़ा कर दिया था, ये कैसा स्कूल है, ये कैसा मैनेजमेंट है, कैसे टीचर हैं, बच्चों पर दमन करते हैं, सब कुछ मैंने देखा था एक दिन। खैर, मैंने उनसे तो मजाक कर लिया, लेकिन हम इसको एक राष्ट्रीय चरित्र कैसे बनाएं और ये बन सकता और इसे बनाया जा सकता है।
दूसरा मैं देश के गणमान्य लोगों से भी आग्रह करना चाहता हूं। आप डॉक्टर बने होंगे, वकील बने होंगे, इंजीनियर बने होंगे, आईएएस अफसर बने होंगे, आईपीएस अफसर बने होंगे, बहुत कुछ होंगे। क्या आप अपने निकट के कोई स्कूल पसंद करके सप्ताह में ज्यादा नहीं, एक पीरियड, उन बच्चों को पढ़ाने का काम कर सकते हैं? विषय तय करें स्कूल के साथ बैठ कर के। आप मुझे बताइए? अगर हिंदुस्तान में पढ़े-लिखे लोग सप्ताह में, अगर एक पीरियड, कितने ही बड़े अफसर क्यों न बने हों, वह जाकर के बच्चों के साथ बिताएं। उनको कुछ सिखाएं।
आप मुझे बताइए मान लीजिए कहीं शिकायत है कि शिक्षा में अच्छे टीचर नहीं हैं, ये फलना नहीं है, ढिकना नहीं है, इसको ठीक किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता है? हम राष्ट्र निर्माण को एक जनांदोलन में परिवर्तित करें। हर किसी की शक्ति को जोड़े, हम ऐसा देश नहीं हैं कि जिसको इतना पीछे रहने की जरूरत है। हम बहुत आगे जा सकते हैं और इसलिए हमारा राष्ट्रीय चरित्र कैसे बने, इस पर हम लोगों का कोई इम्फैसिस होना चाहिए, प्रयास होना चाहिए। और हम सब मिलकर के करेंगे। इसको किया जा सकता है।
एक विद्यार्थी के नाते आपके भी बहुत सारे सपने होंगे। मैं नहीं मानता हूं, जिंदगी में परिस्थितियां किसी को भी रोक पाती हैं, नहीं रोकती हैं। अगर आगे बढ़ने वालों के इरादों में दम हो और मैं मानता हूं, इस देश के नौजवानों में, बालकों में वो सामथ्र्य है। उस सामथ्र्य को लेकर के वो आगे बढ़ सकते हैं।
टेक्नोलोजी का महात्म्य बहुत बढ़ रहा है। मैं सभी शिक्षकों से आग्रह करता हूं। कुछ अगर सीखना पड़े तो सीखें। भले हमारी आयु 40-45-50 पर पहुंचे हो, मगर हम सीखें। और हम जिन बालकों के साथ जी रहे हैं, जो कि आज टेकनोलोजी के युग में पल रहा है, बढ़ रहा है, उसे उससे वंचित न रखें। अगर हम उसे वंचित रखेंगे तो यह बहुत बड़ा क्राइम होगा, इट्स ए सोशल क्राइम। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि आधुनिक विज्ञान, टेक्नोलोजी से हमारे बालक जुड़ें। विश्व को उस रूप में जानने के लिए उसको अवसर मिलना चाहिए। यह हमारी कोशिश रहनी चाहिए। मैं कभी-कभी बालकों से पूछता हूं।
आपसे भी एक सवाल पूछना चाहता हूं, जवाब देंगे आप लोग? देंगे ? अच्छा, आप में से कितने बालक हैं, जिनको दिन में चार बार भरपूर पसीना निकलता है शरीर से? कितने हैं? नहीं है न? देखिए जीवन में खेल कूद नहीं है तो जीवन खिलता नहीं है। ये उमर ऐसी है, इतना दौड़ना चाहिए, इतनी मस्ती करनी चाहिए, इतना समय निकालना चाहिए, शरीर में कम से कम चार बार पसीना निकलना चाहिए। वरना क्या बन जाएगी जिंदगी आपकी।
करोगे, पक्का? क्योंकि देखिए आप तो किताब, टीवी और कंप्यूटर, इस दायरे में जिंदगी नहीं दबनी चाहिए। इससे भी बहुत बड़ी दुनिया है और इसलिए ये मस्ती हमारे जीवन में होनी चाहिए। आप लोगों में से कितने हैं, जिनको पाठ्यक्रम के सिवाय किताबें पढ़ने का शौक है? चलिये बहुत अच्छी संख्या में हैं।
ज्यादातर जीवन चरित्र पढ़ने का शौक है, ऐसे लोग कितने हैं? वो संख्या बहुत कम है। मेरा विद्यार्थियों से आग्रह है, जिसकी जीवनी आपको पसंद हो, जीवन चरित्र आपको पढ़ना चाहिए। जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के बहुत निकट जाते हैं। क्योंकि उस व्यक्ति के बारे में जो भी लिखा जाता है, उसके नजदीक के इतिहास को हम भलीभांति जानते हैं।
कोई जरूरी नहीं है कि एक ही प्रकार के जीवन को पढ़ें, खेल-कूद में कोई आदमी आगे बढ़ा है तो उसका जीवन चरित्र है, तो वो पढ़ना चाहिए। सिने जगत में किसी ने प्रगति की है, उसका जीवन पढ़ने को मिलता है तो वो पढ़ना चाहिए। व्यापार जगत में किसी ने प्रगति की है, उसका जीवन चरित्र मिलता है तो इसको पढ़ना चाहिए। साइंटिस्ट के रूप में किसी ने काम किया है तो उसका जीवन पढ़ना चाहिए, लेकिन जीवन चरित्र पढ़ने से हम इतिहास के काफी निकट और बाई एण्ड लार्ज सत्य को समझने की भी सुविधा पड़ती है।
इसलिए हमारी कोशिश रहनी चाहिए, वरना आजकल तो, आप लोगों को वो आदत है, पता नहीं, हर काम गूगल गुरु करता है। कोई भी सवाल है, गूगल गुरु के पास चले जाओ। इंफोर्मेशन तो मिल जाती है, ज्ञान नहीं मिलता है, जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए हम सब उस दिशा में प्रयास करें।
मुझे बताया गया है कि कुछ विद्यार्थियों के मन में कुछ सवाल भी हैं। तो मुझे अच्छा लगेगा, उनसे गप्पें-गोष्ठी करना। बहुत हल्का-फुल्का माहौल बना दीजिए, गंभीर रहने की जरूरत नहीं है। आपके शिक्षक लोगों ने कहा होगा, हाय ऐसा मत करो, यूं मत करो, ऐसे सब कहा होगा ना, हां। तो आपको शिक्षक ने जो कहा है, यहां से जाने के बाद उसका पालन कीजिए। अभी हंसते-खेलते आराम से बैठिए फिर हम बातें करेंगे।
फिर एक बार आप सबको मेरी बहुत शुभकामनाएं। ‘टीचर्स डे’ पर देश के सभी शिक्षकों को मैं प्रणाम करता हूं। शुभकामनाएं देता हूं और हम जैसे अनेकों के जीवन को बनाने में शिक्षकों का बड़ा रोल है। सबका ऋण स्वीकार करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।