नई दिल्ली, 10 अक्टूबर-सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य पर देश की पहली नीति शुक्रवार को घोषित की। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इस मौके पर कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित करना सरकार का विशेष लक्ष्य है। उन्होंने कहा कि इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य आश्वासन मिशन (एनएचएएम) में पर्याप्त महत्व दिया जाएगा।
देश की पहली मानसिक स्वास्थ्य नीति घोषित करने के बाद हर्षवर्धन ने कहा, “राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति को आरंभ करने की तैयारी के सिलसिले में इस सप्ताह मैंने आगरा के विख्यात मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं अस्पताल का दौरा किया। मैंने उसके आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए अतिरिक्त धन देने का वादा किया है। इसी प्रकार की निधियां, मनोविज्ञान और मनोरोग स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता वाले रोगियों का उपचार करने संबंधी विभाग खोलने हेतु देश के सभी अस्पतालों को प्रदान की जाएंगी।”
यह महत्वपूर्ण है कि सरकार द्वारा आयोजित पहले राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर मानसिक स्वास्थ्य नीति घोषित की गई है।
इस नीति का उद्देश्य सभी स्तरों पर मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समझ बढ़ाना तथा मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र में नेतृत्व को सुदृढ़ करके मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक व्यापक पहुंच प्रदान करना है। यह नीति गरीबों के अनुकूल होगी क्योंकि वर्तमान में भारत में सिर्फ समाज के उच्च वर्ग को ही मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच है।
मंत्री ने कहा, “हम संसद में मानसिक स्वास्थ्य विधेयक प्रस्तुत करेंगे क्योंकि पूर्व में वर्ष 1987 में किए गए प्रयास में अनेक खामियों के कारण सफलता नहीं मिली थी। इस बार एक नीति समूह ने अपनी सिफारिशें तैयार करने हेतु समर्पित रूप से कार्य किया है।”
उन्होंने बताया कि मानसिक रूप से बीमार लोगों की देखभाल के लिए बनाए गए पूर्व कानूनों (जैसे भारतीय पागलखाना अधिनियम, 1858 और भारतीय पागलपन अधिनियम, 1912) में मानवाधिकार पक्ष की उपेक्षा की गई थी और केवल पागलखाने में भर्ती मरीजों पर ही विचार किया गया था।
उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद देश में इस संबंध में पहला कानून बनाने में 31 वर्ष का समय लगा और उसके नौ वर्ष बाद मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 अस्तित्व में आया। परंतु इस अधिनियम में कई खामियां होने के कारण इसे कभी भी किसी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश में लागू नहीं किया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या किसी न किसी प्रकार की मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित होगी। देश में केवल 3500 मनोचिकित्सक है। अत: सरकार को अगले दशक में इस अंतराल को काफी हद तक कम करने की समस्या से जूझना होगा।
हर्षवर्धन ने कहा, ” ‘विश्व विकलांग रिपोर्ट, 2010’ सहित कई रिपोर्टों में मानसिक अस्वस्थता और गरीबी के बीच परस्पर संबंध स्पष्ट होता है, जिसके मुताबिक मानसिक रूप से अक्षम लोग सबसे निचले स्तर पर हैं। यह हमें चेतावनी देता है कि यह एक स्वास्थ्य संकट बन सकता है जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।”
देश की पहली मानसिक स्वास्थ्य नीति के शुभारंभ के अवसर पर हर्षवर्धन के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रतिनिधि नाता मेनाब्दे, स्वास्थ्य सचिव लव वर्मा, डीजीएचएस डॉ. जगदीश प्रसाद तथा मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।