नई दिल्ली, 26 फरवरी (आईएएनएस)। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस (एनबीएफसी-एमएफआइज) ने 43 फीसदी का वार्षिक विकास दर्ज किया है। माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क द्वारा सोमवार को जारी नवीनतम त्रैमासिक माइक्रोमीटर रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क एनबीएफसी-एमएफआइज के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियुक्त पहला सेल्फ-रेगुलेटरी ऑर्गेनाइजेशन (एसआरओ) और एक उद्योग संगठन है।
एमएफआइएन माइक्रोमीटर रिपोर्ट में बताया गया कि वित्त वर्ष 2017-18 की तीसरी तिमाही में माइक्रोफाइनेंस उद्योग का कुल कर्ज पोर्टफोलियो 1,23,343 करोड़ रुपये रहा। प्रमुख कर्जदाताओं में बैंक की हिस्सेदारी 37 फीसदी, एनबीएफसी-एमएफआइज की 32 फीसदी, एसएफबीज की 22 फीसदी, एनबीएफसी की 8 फीसदी, अैर गैर लाभकारी एमएफआइज की 1 फीसदी रही।
एनबीएफसी-एमएफआइज का समुचित सकल लोन पोर्टफोलियो (जीएलपी) 42,701 करोड़ रुपये दर्ज किया गया। इसमें बीसी पोर्टफोलियो भी शामिल है।
एनबीएफसी-एमएफआइज का सकल लोन पोर्टफोलियो वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही की 29,800 करोड़ रुपये की तुलना में इस साल तीसरी तिमाही में 42,701 करोड़ रुपये रहा। इसमें बीसी पोर्टफोलियो भी शामिल है। वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही में 1.98 करोड़ ग्राहकों की तुलना में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में ग्राहकों की कुल संख्या में भी 19 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में माइक्रोफाइनेंस उद्योग का कुल आकार 1,23,343 करोड़ रुपये रहा और एनबीएफसी-एमएफआइज ने कुल उद्योग पोर्टफोलियो में 33 फीसदी का योगदान दिया। इसमें बकाया लोन राशि की हिस्सेदारी (बीसी पोर्टफोलियो को छोड़कर) 39,916 रुपये रही। बैंकों की हिस्सेदारी 45,649 करोड़ रुपये की लोन राशि के साथ 37 फीसदी रही और 27,506 करोड़ रुपये के बकाया लोन के जरिये स्मॉल फाइनेंस बैंकों की हिस्सेदारी 22 फीसदी रही। कुल सूक्ष्म-ऋण यूनिवर्स में एनबीएफसी और गैर-लाभकारी माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस का हिस्सा क्रमश: 8 फीसदी और 1 फीसदी रहा।
एमएफआइएन के अध्यक्ष राकेश दुबे के अनुसार, “पिछली तिमाही में एनबीएफसी-एमएफआइ वर्ग में विकास काफी प्रोत्साहक रहा है। पिछले कुछ महीनों में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में इक्विटी निवेश बढ़ा है। कई एनबीएफसी-एमएफआइज ने घरेलू एवं विदेशी निवेशकों से सफलतापूर्वक उल्लेखनीय निवेश जुटाया है। यह इस सेक्टर के लिए अच्छा संकेत है और उद्योग के संभावित एवं भावी विकास में निवेशकों के भरोसे को दर्शाता है। विमुद्रीकरण के बाद थोड़ी सी परेशानी के बाद, उद्योग में विकास की गति ने जोर पकड़ा है।”