बीड़-महाराष्ट्र के बीड़ जिले में पिछले 3 साल में गन्ने के खेतों में मजदूरी करने वाली 4605 औरतों के गर्भाशय निकाले गये! वजह ये बतायी जा रही है ताकि ये महिलायें अबाध रूप से 5-6 महीने गन्ने की छिलाई कर सकें, माहवारी के नाम पर छुट्टी न ले लें, लैंगिक शोषण से बचाव हो सके! ताकि वो माहवारी के नाम पर छुट्टी लेने पर ठेकेदारों द्वारा जुर्माने से बच सकें! ठेकेदार बिना गर्भाशय वाली जवान महिलाओं को काम पर रखने में प्राथमिकता देते हैं! गर्भाशय निकलवाने के लिए कुछ ठेकेदार एडवांस पैसा भी उधार देते हैं जिसे बाद में उनकी मजदूरी से काट लिया जाता है! एक दिन की छुट्टी लेने पर 300-500 रूपये का जुर्माना लगता है! मजदूरों को खेतों में ही या मिल के आस-पास टेंट में रहना पड़ता है जहाँ न ढंग इ टॉयलेट की सुविधा होती है और न ही साफ़ पानी की! माहवारी में महिलाओं को तो ऐसे में और अधिक परेशानी होती है! ज़रा सा पेट दर्द हो तो कुछ प्राइवेट डॉक्टर्स गर्भाशय निकलवाने की सलाह डे देते हैं! वहाँ एक गाँव है वंजरवाड़ी जहाँ सर्वे करने पर पता चला कि गाँव की आधी महिलाओं के पास गर्भाशय नहीं है!
इन महिलाओं के साथ ठेकेदार और उनके लड़कों द्वारा लैंगिक शोषण भी किया जाता है! ऊपर से देखने पर लगता है कि महिलायें स्वेच्छा से ऐसा कर रही हैं जबकि सच तो ये है कि ग़रीबी की मार और ठेकेदारों द्वारा डाले जा रहे दबाव ने गर्भाशय निकाले जाने को वहाँ एक चलन जैसा बना दिया है!
ये तो सिर्फ़ एक जिले की रिपोर्ट है जिसे वहां स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में बताया! शोलापुर, सतारा, सांगली, कोल्हापुर को भी जोड़ लें तो ये आँकड़ा भयावहता की सीमा पार कर जायेगा! ये तो अंग्रेजों के ज़माने की गिरमिटिया प्रथा जैसी भयंकर लग रही है.
प्रमोद सिंह की फेसबुक वाल से