भोपाल-मप्र सरकार ने आज विधानसभा में कानून ”मप्र तंगकरनेवाली मुकदमेबाजी निवारण विधेयक 2015 ”को पारित करवा लिया। इस कानून की मदद से भ्रस्ट मप्र सरकार को उसके गैरकानूनी और शोषण के मामलो को कोर्ट में नागरिको के ले जाने से रोकने में सफल होगी।
इस कानून को बनाने की अनुशंसा मप्र हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश की आज्ञा से रजिस्ट्रार जनरल की तरफ से 12 अगस्त 2014 को मप्र सरकार के विधि विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव श्री सिरपुरकर को प्रशासनिक पत्र माध्यम से की गयी थी। ये वही समय था जब मप्र हाई कोर्ट के समय महाघोटाले व्यापम और पी एस एस घोटाले की जाँच हेतु प्रस्तुत जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी। जब अप्रैल 2015 में मप्र के विधि विभाग से RTI से मप्र हाई कोर्ट के इस पत्र की प्रति और नस्ती चाही थी तो उन्होंने बहानेबाजी कर जानकारी उपलब्ध नहीं करायी। नेता प्रतिपक्ष श्री कटारे के लिखित अनुरोध के बावजूद भी आज तक जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई गयी, न ही इस विधेयक को ऑनलाइन कर जनता से सुझाव मांगे।
भारत के संविधान के अनुसार कानून बनाने का अधिकार केवल विधायिका को है और न्यायलय संविधान और नागरिको के अधिकारों की संरक्षक है लेकिन इस प्रकरण में जो देखने में आया वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और असहनीय है । न्यायलय गुण दोष पर मुक़दमे का निर्णय करने में सक्षम है इसलिए ये कानून कोर्ट के अधिकारों पर आक्रमण है और जनहित याचिकाओं को कुचलने का तरीका है।
शिवराज सरकार ने इस विधेयक को आज विधानसभा में बिना बहस के पारित करवा लिया। जब शिवराज सरकार ने इस विधेयक को 24 मार्च को विधानसभा में प्रस्तुत करने की कोशिश की थी तब विरोधस्वरूप इस की प्रति जलायी थी।
कुछ संगठन इस विधेयक के विरोध में राष्ट्रपति,प्रधानमन्त्री एवं संघ प्रमुख को शिकायत करने का मन बना रहे हैं.