अनिल सिंह (भोपाल)– मप्र का अन्नदाता आत्महत्या कर रहा है सोयाबीन सहित दलहन,तिलहन और अन्य फसलों की लागत भी नहीं निकली लेकिन समस्या की जड़ तक पहुँचने की जगह चन्द गुनाहगारों को बचाने के लिए अल्प -वर्षा को शासन के मत्थे मढ़ दिया गया.राजनैतिक दलों ने आंसू बहाना शुरू कर दिया.हित साधने में माहिर अगुआ जानते हुए भी इस सच्चाई से अनजान बने रहे और पैसा ना होते हुए भी अन्नदाता को आश्वासन देने का कर्जदार खेल शुरू किया गया.
शासकीय अधिकारीयों का भारी-भरकम खर्चीला अमला मीटिंग करता रहा,बिसलरी की बोतलें गटकता रहा सिर्फ असली गुनाहगारों का सफेदपोश चेहरा सामने नहीं आने देने के लिए.
कम बारिश नहीं रही कारण फसल बर्बाद होने की
एक सियार के हुआ-हुआ करते ही सभी एक स्वर में आलाप करते हैं ,उसी तर्ज पर मौसम पर यह ठीकरा फोड़ा गया और जलवायु परिवर्तन को इसका गुनाहगार बताया गया,हमारी टीम ने गहन तफ्शीश के बाद यह जानकारियां जुटायीं,वैज्ञानिकों,किसानों से चर्चा की तब सच्चाई सामने आई जिसकी यदि निष्पक्षता और ईमानदारी से जांच कराई जाय तो आने वाले समय में अन्नदाता आत्महत्या नहीं करेगा.
अमानक कीटनाशक रहे इस बर्बादी का कारण
“पीला मोजेक” नामक रोग सोयाबीन की फसल में फैलने और इसके विषाणु हवा में संवहन की वजह से यह रोग तेजी से फसलों में फैला.इसका उपचार किसानों के पास था और उन्होंने वेकीटनाशक छिडके भी लेकिन अमानक,पुराने और गुणवत्ता रहित कीटनाशक इस रोग के विषाणुओं को रोकने में असफल रहे नतीज फसल में उत्पादन पर पड़ा और किसान बर्बाद होता गया.
कीटनाशक माफिया के भय से कृषि वैज्ञानिक नाम बताने को नहीं तैयार
जब विशेषज्ञों से चर्चा की गयी तब उन्होंने जानकारी तो दी लेकिन नाम ना बताने की शर्त पर.उन्होंने बताया की इस कीटनाशक माफिया का इतना बड़ा नेटवर्क है की वह कुछ भी कर सकता है.इस नेटवर्क में सत्ता-पक्ष से जुड़े लोग अधिक हैं.इस माफिया के तार सत्ता में बैठे बड़े आकाओं से जुड़े हुए हैं उनके माध्यम से ही बाजार में दवा प्रदायकों ने नकली और गुणवत्ता रहित कीटनाशक प्रदाय किये.
700 करोड़ का है यह बाजार कीटनाशकों का व्यापार एक फसल के मौसम में 700 करोड़ के लगभग मप्र में है पूरे वर्ष का यदि जोड़ा जाय तो यह 1500 करोड़ के ऊपर चला जाता है.इसकी बंदरबांट में सत्ता,अधिकारी और व्यापारी मिला हुआ है इस गठबंधन ने हजारों करोड़ का मप्र पर कर्ज और उससे कई गुना बर्बादी एवं आत्महत्याएं अपने सर पर ढो ली हैं.इतना बड़ा तंत्र होते हुए भी किसी का इस और ध्यान न जाना संदेहों को जन्म देता है.कृषि को फायदे का धन्धा बनाने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो तीन-तीन कृषि कर्मण पुरस्कार के धनी हैं के संरक्षण में जांचें इस तरह मोड़ी जायेंगीं तब तो अन्नदाता को कोई नहीं बचा सकता असमय मृत्यु से.