इंफाल – एक स्थानीय अखबार पोकनाफाम को बंद किए जाने की धमकी मिलने के बाद विरोध के तौर पर मणिपुर के मीडिया संस्थानों ने शुक्रवार से 48 घंटे तक काम न करने का फैसला किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दो हफ्ते पहले पोकनाफाम पर ही अज्ञात हमलावरों ने ग्रेनेड से हमला कर दिया था.
मणिपुर एडिटर्स गिल्ड (ईजीएम) के अध्यक्ष खोगेंद्र खोमद्रम ने कहा कि हड़ताल पर जाने का निर्णय गुरुवार देर शाम को ईजीएम और ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन (एएमडब्ल्यूजेयू) की एक आपातकालीन बैठक में लिया गया.
खोमेंद्रम ने कहा कि पोकनाफाम को छह महीने के लिए बंद करने की धमकी उसके ब्यूरो चीफ के वॉट्सऐप के माध्यम से दी गई. उन्होंने कहा कि अज्ञात व्यक्ति ने मनमाने आदेश को टालने पर स्टाफ को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी.
ईजीएम अध्यक्ष ने आगे कहा, ‘हमने अखबार को धमकी की कड़ी निंदा की और जिम्मेदार लोगों से 48 घंटे के भीतर हमले का मकसद स्पष्ट करने के लिए कहा.’
पत्रकारों ने मणिपुर प्रेस क्लब में इकट्ठा होकर एक विरोध प्रदर्शन किया. मालूम हो कि बीते 13 फरवरी की शाम इंफाल पश्चिम जिले के कीशामपाट थियाम लीकाई में पोकनाफाम अखबार के कार्यालय पर हथगोला फेंका गया था. हालांकि, ग्रेनेड फटा नहीं था.
तब पोकनाफाम के संपादक अरिबम रॉबिन्द्रो शर्मा ने कहा था कि अखबार को किसी से कोई धमकी नहीं मिली थी. पुलिस ने घटना के संबंध में मामला दर्ज कर लिया था और क्षेत्र के सभी मीडिया संस्थानों के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
हमले की निंदा करते हुए राज्य में मीडिया घरानों ने कई दिनों के लिए समाचार प्रसारण और प्रकाशन रोक दिया था. पत्रकारों ने धरना-प्रदर्शन भी किया था और बाद में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को एक ज्ञापन सौंपाते हुए उनसे यह सुनिश्चित करने की अपील की गई थी कि राज्य में प्रेस स्वतंत्र रूप से काम कर पाए.
यह विरोध प्रदर्शन तब समाप्त हुआ था जब राज्य के सबसे बड़े उग्रवादी समूह ने सफाई दी थी कि वे हमले में शामिल नहीं थे.
साजिशकर्ता की गिरफ्तारी से संबंधित सूचना देने के लिए 50 हजार रुपये का इनाम घोषित करने साथ ही मणिपुर सरकार ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) टीम का गठन किया है.
बता दें कि पिछले साल नवंबर महीने में मणिपुर में मीडिया समूहों ने एक उग्रवादी समूह से संबंधित खबरें प्रकाशित करने को लेकर उसके द्वारा दबाव डालने का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया था.
इसके अलावा दैनिक अखबारों और स्थानीय चैनलों ने भी मीडिया को धमकाने के विरोध में अपना काम रोक दिया था.