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 भोले की कांवड़ का भाव गौण ,नेता जी पूजनीय :सनातन धर्म का बेडा गर्क करते नेता | dharmpath.com

Saturday , 23 November 2024

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भोले की कांवड़ का भाव गौण ,नेता जी पूजनीय :सनातन धर्म का बेडा गर्क करते नेता

kanvad 8kanvad 6kanvad 5kanvad 3धर्म क्या है ? सनातन धर्म की व्यवस्था वह है जो सहज सरल हो,इस भरत की भूमि ने कई अत्याचार सहे हैं,राक्षसी प्रवृत्ति वालों का,मुगलों ,यवनों ,अंग्रेजों जैसे व्यापारिक आततायियों का भी,लेकिन सभी आने वालों को यह धरती आत्मसात करती गयी,उन्हें भी जीने का मौका देती गयी,फलने-फूलने का भी क्योंकि यह सनातन धर्म है जो सहज है सरल है जिसे हिंदुत्व के नाम से जाना जाता है।
कुछ स्वार्थी हिन्दू ही इस हिंदुत्व की अस्मिता के लिए खतरनाक हैं
समयकाल से हमेशा समाज के अगुआ,बुद्धिजीवी,विचारक,सुधारक समाज को दिशा देते आयें है,यह युग भौतिक युग है इस युग में अर्थ की प्रधानता है अतः अर्थ उपार्जक जीव अपने हित के लिए सभी प्रकार के जोड़ -तोड़ करते रहते हैं इसमें ये नहीं देखते की उनकी सभ्यता,जिस सामाजिक व्यवस्था में उनके पुरखे जिस अस्मिता को बचा कर उसे उज्जवल कर जिए हैं उसकी आबरू को मात्र अपने हित के लिए आज वे तार-तार कर दे रहे हैं।
आज के समय कांवड़ यात्रा के महत्व का मजाक उड़ा रहे राजनीतिकनेता
भोले नाथ की उपासना का महत्वपूर्ण समय सावन है,आदिकाल से इन अजन्मे,निराकार,भूतभावन,अशरीरी जो विषपान करके भी मानव-कल्याण में रत रहते हैं,क्या उनकी उपासना का यह तरीका है,क्या हमारे आराध्य अपनी उपासना इस डी जे के कान-फोडू आवाज के मोहताज हैं,क्या पैसे दे कर भीड़ इकट्ठी कर हम अपने इष्ट का सौदा नहीं कर रहे,क्या मानव में स्थित उस ईश्वर के अंश से धोखे बाजी,उन भाव के भूखे भोलेनाथ से छल नहीं कर रहे हमारे नेता।
मध्यप्रदेश में भाजपा के दो नेताओं की कांवड़ यात्रा के ज्यादा चर्चे हैं ,भोपाल में रामेश्वर शर्मा की कर्म श्री संस्था के अंतर्गत कांवड़ यात्रा और इंदौर में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र की कांवड़ यात्रा की चर्चा
रामेश्वर शर्मा वे नेता हैं जो आज चुनावी समय में विधायक की उम्मीदवारी प्रस्तुत कर रहे हैं,इन्होने जो कांवड़ यात्रा निकाली उसके प्रचार-प्रसार में जम कर पैसा खर्च किया गया,राजनैतिक लाभ उठाने हेतु उसे सामजिक मान्यता हेतु जगह-जगह स्वागत भी करवाया गया,खूब भीड़ भी जुटी लेकिन इन सब के पीछे भाव क्या वाही राजनैतिक लाभ।इससे फायदा क्या होगा यह भी गुणा-भाग किया जाय तो ज्यादा फायदा नेताजी का होगा,उन्हें पद प्राप्त होगा,उनकी राजनैतिक स्थिति मजबूत करने में यह शक्ति प्रदर्शन काम आएगा।आम जन को क्या मिला वहीँ के वहीँ रोजी-रोटी के चक्कर में फंसे रह गया नेताजी और ज्यादा मजबूत हो कर आगे बढ़ गए,उस कांवड़ यात्रा में कितने लोग कौन-कौन लोग शामिल रहे नेताजी को याद भी नहीं रहेगा आखिर समाज के कौन लोग इस यात्रा में शामिल थे और उनके पुरसाने हाल क्या हैं अब।आपको बता दें की रामेश्वर शर्मा की राजनीतिक यात्रा और पैसा कमाई हिंदुत्व का चोला ओढ़ कर ही हुई है ,कई हिन्दू लड़के इनकी राजनीति की भेंट चढ़ चुके हैं और अपना,परिवार का और समाज का जीवन खराब कर चुके हैं।कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र भी विधायकी की दावेदारी करने वाले हैं कांवड़ यात्रा में पांच हजार की शिरकत की दावेदारी उन्होंने की है।
कांवड़ यात्रा है क्या?
यह यात्रा शुरू जब हुई तब यातायात के साधन नहीं थे,सावन में श्रद्धालू समूहों में द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर जल चढाने ,अपनी श्रद्धा निरूपित करने जाते थे,साधू-संत अपनी टोलियों के साथ यात्रा पर जाते थे एवं समाज के धनी लोग उनकी यात्रा के लिए रास्ते में भोजन-पानी की व्यवस्था करते थे।कोई राजनैतिक लाभ के लेने के लिए इस आध्यात्म की संस्कारित यात्रा का कभी उपयोग नहीं हुआ।अपने इष्ट के प्रति अपनी भावना को प्रदर्शित करने का पर्व था और रहेगा।
धर्म का पतन तब होता है जब उस पवित्र भाव का राजनैतिक फायदे हेतु उपयोग किया जाता है
धर्म तब तब प्रताड़ित हुआ जब जब उसका राजनैतिक उपयोग हुआ,राजनीति तब राम-राज्य के रूप में सामने आयी जब धर्म का उस पर आशीर्वाद रहा।लेकिन धर्म का भाव इतना पवित्र है की कई झंझावात भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके.
पेड विज्ञापन द्वारा कांवड़ यात्रा में शामिल होने की अपील
विज्ञापन दे कर अधिक से लोगों को इसमें शामिल होने के लिए कहा जाता है ,जब हमने लोगों से पड़ताल की तो कई उसमें भीड़ बढ़ाने के लिए किराए पर लाये गए लोग थे,जिन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं था की धर्म क्या होता है,कांवड़ क्या होती है।पहले अपने धर्माचार्यों,संतों के निर्देश पर समाज को निर्देशित किया जाता था,मानव जीवन को सहज,संयमित रखने हेतु यह निर्देशन आवश्यक था लेकिन आज संतों,ब्रह्मचारियों का स्थान राजनैतिक नेताओं ने ले लिया है यह भीड़ नेताओं के उद्देश्य पूर्ती हेतु ठीक है लेकिन समाज का क्या ,धर्म का क्या होगा? हम निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु जिस तरह पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे हैं वैसे ही धर्म को भी दूषित कर रहे हैं।(anil singh)

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