पुणे, 5 सितम्बर | भूमि ओजोन प्रदूषण के कारण भारत को 2005 में 1.29 अरब डॉलर मूल्य के 0.6 करोड़ मीट्रिक टन गेहूं, चावल, सोयाबीन और कपास जैसे अनाजों का नुकसान हुआ है। एक चौंकाने वाले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरोलॉजी (आईआईटीएम) के वायुमंडल वैज्ञानिक सचिन गुडे ने कहा कि इससे देश में गरीबों की कुल आबादी के एक तिहाई यानी 9.4 करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकता था।
उन्होंने कहा, “भारत में भूमि ओजोन प्रदूषण के कारण एक अरब डॉलर से अधिक के अनाज का नुकसान होता है। इतनी राशि में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता है।”
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं के हाथ चौंकाने वाले कई आंकड़े लगे।
उन्होंने 2005 में जमीन स्तर पर ओजोन प्रदूषण के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों के आंकड़ों पर गौर किया।
गेहूं – यह देश का महत्वपूर्ण खाद्यान्न स्रोत है। 2005 में भूमि ओजोन प्रदूषण के कारण 35 लाख मीट्रिक टन गेहूं का नुकसान हुआ।
चावल – देश में 21 करोड़ मीट्रिक टन चावल का नुकसान हुआ।
कपास – यह देश की प्रमुख व्यवसायिक फसल है। कपास के कुल 33 लाख मीट्रिक टन उत्पादन के पांच प्रतिशत से अधिक का नुकसान हुआ।
सैन डिगो स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में जलवायु व वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर और सहायक लेखक वीरभद्रन रामनाथन ने कहा, “गेहूं और चावल की मात्रा में हुए नुकसान से मैं हैरान हूं।”
गुडे ने कहा, “भूमि ओजोन प्रदूषण के प्रभाव से कृषि को बचाने के लिए फिलहाल में भारत में कोई मानक नहीं है।”
उल्लेखनीय है कि भूमि ओजोन, रसायनों जैसे-नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बनडाई ऑक्साइड और कार्बनिक यौगिकों के सूर्य की रोशनी के प्रतिक्रिया स्वरूप बनता है। ये रसायन वाहनों, उद्योगों या लकड़ी के जलने से निकलते हैं।