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 भारत में एन जी ओ संगठनों पर अब लगेगी लगाम? | dharmpath.com

Saturday , 19 April 2025

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भारत में एन जी ओ संगठनों पर अब लगेगी लगाम?

indexभारत में काम कर रहे एन० जी० ओ० संगठनों को विदेश से मिलने वाली वित्तीय सहायता के बारे में भारत के ख़ुफ़िया ब्यूरो की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि उनकी वज़ह से भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुक़सान हो रहा है।

इस रिपोर्ट के सामने आते ही एन० जी० ओ० संगठनों के बीच घबराहट फैल गई। ऐसा लग रहा है कि भारत सरकार ने यह तय कर लिया है कि वह उन एन० जी० ओ० संगठनों की नुक़सानदेह गतिविधियों पर रोक लगा देगी, जिन्हें विदेश से पैसा मिल रहा है।

इण्टेलीजेन्स ब्यूरो ने अपनी यह गुप्त रिपोर्ट क़रीब एक महीने पहले सरकार को सौंपी थी। हालाँकि रिपोर्ट गुप्त थी, फिर भी उसके कुछ हिस्से मीडिया में आ गए हैं। ख़ुफ़िया ब्यूरो के अनुसार, भारत में चलाई जा रही कुछ बड़ी विकास परियोजनाओं के विरोध में इन एन० जी० ओ० संगठनों द्वारा जिन प्रदर्शनों और कार्रवाइयों का आयोजन किया गया, उनसे सन् 2011 से 2013 के बीच भारत की विकास-दर 2 से 3 प्रतिशत तक गिर गई।

इस रिपोर्ट के आने के बाद ’ग्रीनपीस’ जैसे बड़े अन्तरराष्ट्रीय ग़ैरसरकारी संगठनों ने, जिनके ऊपर इस रिपोर्ट में विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है, भारतीय और विदेशी मीडिया में सक्रिय रूप से प्रचार अभियान शुरू कर दिया। हमेशा की तरह वे भारत सरकार पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने और लोकतन्त्र के प्रमुख सिद्धान्तों को छोड़ने का आरोप लगा रहे हैं। एक सख़्त राजनीतिज्ञ और व्यवस्था स्थापित करने के लिए कड़े क़दम उठाने के समर्थक के रूप में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की छवि इस प्रचार अभियान में उनके बहुत काम आ रही है। इस प्रचार अभियान में पत्रिका ’फ़ोर्ब्स तो यहाँ तक जा पहुँची है कि उसने आज के भारत की परिस्थिति की तुलना जार्ज ऑरवेल के उपन्यास ’1984’ से करनी शुरू कर दी है। फ़ोर्ब्स ने इस सिलसिले में जो लेख प्रकाशित किया है, उसे शीर्षक दिया है – बिग ब्रदर इज़ वाचिंग यू यानी बड़े भाई की नज़र तुम पर है। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की ने इस सिलसिले में बोलते हुए कहा :

आइए, ज़रा स्थिति का विश्लेषण करें। किसी भी नागरिक समाज की यह एक ज़रूरी शर्त होती है कि उसमें ग़ैरसरकारी संगठन सक्रिय हों क्योंकि ये गैरसरकारी संगठन ही उन नकारात्मक बातों और तथ्यों को खोलकर समाज के सामने रखते हैं, जिन्हें आम तौर पर सरकार और बहुत से अख़बार और मीडिया भी छुपाने की कोशिश करते हैं। इनमें भ्रष्टाचार के तथ्यों के अलावा, पर्यावरण-दूषण और अन्य सामाजिक विकार भी शामिल हैं। लेकिन बहुत से एन०जी०ओ० संगठनों की गतिविधियों में, ख़ासकर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय एन०जी०ओ० संगठनों की गतिविधियों में कुछ न कुछ ऐसा भी होता है, जिसे वे दूसरों की नज़रों से छिपाकर रखना चाहते हैं। आज सब इस बात को जानते हैं कि ’ग्रीनपीस’ जैसे अमीर संगठन ने पर्यावरण-दूषण की सुरक्षा के काम को अब अपना व्यवसाय बना लिया है और वह पर्यावरण-दूषण के नाम पर अपना ख़ज़ाना भरता रहता है। वह बड़ी-बड़ी कम्पनियों को सीधे-सीधे ब्लैकमेल करता है कि पैसा दो, नहीं तो हम तुम्हारा जीवन नर्क बना देंगे या फिर पैसा लेकर वह एक कम्पनी की तरफ़ से दूसरी कम्पनी के ख़िलाफ़ आन्दोलन खड़ा कर देता है। इसी तरह के और भी न जाने कितने तरीके हैं अपना खज़ाना भरने के। पिछले समय में एन०जी०ओ० संगठन अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में भी एक बड़ा राजनैतिक हथियार बन गए हैं।

उत्तरी अफ़्रीका से लेकर पूर्वी यूरोप तक के बड़े इलाके में अस्थिरता फैलाने में पश्चिमी देशों द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता से पोषित इन एन० जी० ओ० संगठनों ने बड़ी भूमिका निभाई है। भारत में भी ऐसा ही हो रहा है। सन् 2011 में ही भारत में सत्तारूढ़ काँग्रेस पार्टी ने यह संकेत किया था कि अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार-विरोधी आन्दोलन के पीछे भी विदेशी प्रायोजकों का ही हाथ है और अन्ना हज़ारे के इसी आन्दोलन से जन्म लेने वाली ’आम आदमी पार्टी’ तो इस तथ्य को छुपाती भी नहीं है कि उसे विदेश से धन मिलता है। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :

जहाँ तक ख़ुफ़िया ब्यूरो की रिपोर्ट में कही गई यह बात है कि एन० जी० ओ० संगठन अर्थव्यवस्था को सीधे-सीधे नुक़सान पहुँचाते हैं तो इसके बहुत से सबूत भी उपस्थित हैं। मनमोहन सिंह की पिछली सरकार ने कुडनकुलम बिजलीघर के ख़िलाफ़ एक एन० जी० ओ० संगठन द्वारा चलाए गए ’एटमी ऊर्जा के ख़िलाफ़ जन आन्दोलन’ को सीधे-सीधे अमरीका और पश्चिमी देशों की काली करतूत बताया था। उस एन० जी० ओ० को अमरीका और पश्चिमी देशों से इस आन्दोलन को चलाने के लिए बड़ी धनराशि मिली थी। ऐसा अचानक नहीं हुआ था कि यह आन्दोलन तभी शुरू किया गया था, जब भारत ने अमरीका के साथ ’परमाणु सौदा’ कर लिया था और इस परमाणु सौदे के फलस्वरूप भारत का एटमी ऊर्जा बाज़ार अमरीकी कम्पनियों के लिए भी पूरी तरह से खुल गया था। ’एटमी ऊर्जा के ख़िलाफ़ जन आन्दोलन’चलाने का उद्देश्य यह नहीं था कि कुडनकुलम एटमी बिजलीघर को बन्द कराया जाए, बल्कि उसका उद्देश्य तो भारत के एटमी ऊर्जा बाज़ार से रूसी कम्पनी ’रोसएटम’ को भगाना था।

इसलिए नरेन्द्र मोदी की सरकार ने एन० जी० ओ० संगठनों के ख़िलाफ़ मनमोहन सिंह की सरकार से भी कड़ा नज़रिया अपनाने का जो रूख अपनाया है, वह ठीक ही है। हाँ, यह नहीं सोचना चाहिए कि ये एन० जी० ओ० संगठन भारत में कोई बड़ा सरकार विरोधी जन आन्दोलन खड़ा कर लेंगे क्योंकि भारत में आज की सरकार को भारी जन-समर्थन प्राप्त है। लेकिन पश्चिमी मीडिया में सामने आने वाले लेखों को देखकर ऐसा लगता है कि भारत की घरेलू राजनीति में एन० जी० ओ० संगठन सीधा हस्तक्षेप करने की कोशिश करेंगे, इससे इन्कार भी नहीं किया जा सकता है।

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