भारत हिंद महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति को चीन के साथ अपने किसी टकराव के रूप में नहीं देखता है। इसी प्रकार, प्रशांत महासागर के क्षेत्र में भारत की उपस्थिति का विस्तार भी चीन के विरुद्ध नहीं है। यह बातें वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद के निदेशक श्री विजय सकूजा ने अपने एक विशेष साक्षात्कार में कही हैं। श्री विजय सकूजा ने बताया-
पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में चीन ने जो रणनीति अपनाई थी उसका उद्देश्य, मुख्य रूप से दक्षिण-एशियाई देशों को राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान करना था। इससे ऐसा लग रहा था कि चीन भारत की सामरिक घेराबंदी कर रहा है। चीन की इस रणनीति के साथ तथाकथित “मोतियों की लड़ी” की अवधारणा को भी जोड़ा गया था। इस अवधारणा को भारत के द्वारा नहीं बल्कि अमरीका में कुछ परामर्शदाताओं द्वारा प्रस्तुत किया गया था। अगर हम “मोतियों की लड़ी” की इस अवधारणा की चर्चा करें तो यही बात सामने आती है कि चीन को ग्वादर, हमबन्टोटा और म्यांमार में बंदरगाहों जैसी मूलभूत सुविधाओं का निर्माण करने की आवश्यकता है जहाँ से वह, यानी चीन हिंद महासागर में संकट की स्थिति में अपनी नौसेना की सहायता के लिए सहायता जुटा सकेगा। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंद महासागर में नौसेना को तैनात करने से पहले सेना को रसद की आपूर्ति करने के वास्ते कई आधुनिकतम सुविधाओं के निर्माण की आवश्यकता होगी।
वर्तमान में चीन के पास हिंद महासागर में अपनी नौसेना को तैनात करने की पर्याप्त क्षमता मौजूद नहीं है। उसके द्वारा ऐसी क्षमता पाने के लिए अभी कुछ समय लगेगा। इसके अलावा, वर्तमान में चीन प्रशांत महासागर में बढ़ रही अमरीकी उपस्थिति से अधिक चिंतित है। जहाँ तक भारत का संबंध है तो उसकी चिंता का मुख्य विषय यह है कि चीन दक्षिण-एशियाई देशों में आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। भारत इस समस्या के बारे में पूरी तरह से जागरूक है।
मालदीव, सेशल्स, मॉरीशस जैसे अन्य टापू-देशों में भी चीन अपना प्रभाव बढ़ाने के प्रयास कर रहा है। निःसंदेह यह हमारी चिंता का विषय है। लेकिन, इस संबंध में, भारत की रणनीति बहुत सीधी और सरल है। हम इन गतिविधियों पर पैनी नज़र रखे हुए हैं। लेकिन, मेरी राय में, हिंद महासागर में भारत और चीन के बीच टकराव जैसी कोई स्थिति उत्पन्न नहीं हो रही है। चीन को हिंद महासागर में पूरे पैमाने की अपनी सैन्य गतिविधियों के संचालन के लिए मूलभूत सुविधाओं के निर्माण के काम में अभी काफ़ी लंबा समय लग जाएगा। भारत भी इस इलाके के कुछ देशों के साथ सुरक्षा के क्षेत्र में अपने संबंधों का विस्तार कर रहा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारत इन देशों के साथ कोई सैन्य गठबंधन बना रहा है। वह वियतनाम, जापान, अमरीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ आपसी समझ-सूझ बढ़ा रहा है। लेकिन भारत के इन प्रयासों में कोई ऐसी बात नहीं है जिसे चीन-विरोधी समझा जा सकता हो।
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