नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश सचिव एस.जयशंकर ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष ऐजाज चौधरी का वार्ता का आमंत्रण स्वीकार कर लिया है, लेकिन स्पष्ट किया है कि एजेंडे में केवल आतंकवाद का मुद्दा होना चाहिए। एक शीर्ष अधिकारी ने गुरुवार को यह जानकारी दी।
चौधरी का आमंत्रण स्वीकार करते हुए जयशंकर ने अपने जवाब में कहा कि वार्ता आतंकवाद के पांच पहलुओं पर केंद्रित होनी चाहिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने यहां अपने साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “16 अगस्त को लिखे एक पत्र में विदेश सचिव ने सबसे पहले रेखांकित किया है कि पत्र-व्यवहार में पाकिस्तान ने जो भी आरोप लगाए हैं, उसे भारत सरकार पूरी तरह खारिज करती है।”
उन्होंने कहा, “पाकिस्तान को जम्मू एवं कश्मीर के संदर्भ में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है, जो हमारे देश का अखंड हिस्सा है।”
स्वरूप के मुताबिक, जयशंकर ने अपने पत्र में इस बात से अवगत कराया है कि उन्होंने इस्लामाबाद आने के अपने समकक्ष के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया है, लेकिन स्पष्ट किया है कि चर्चा का केंद्र केवल जम्मू एवं कश्मीर के हालात के पहलुओं पर होना चाहिए।
इनमें जम्मू एवं कश्मीर को लक्षित कर सीमा पार से आतंकवाद को रोकना, जम्मू एवं कश्मीर में हिंसा को शह देना बंद करना, अंतर्राष्ट्रीय तौर पर घोषित आतंकवादियों को हिरासत में लेना और उन्हें सजा देना, पाकिस्तानी आतंकवादी शिविरों को बंद करना, भारत से भाग निकलकर पाकिस्तान पहुंचे आतंकवादियों को पनाह और समर्थन बंद करना शामिल है।
प्रवक्ता ने कहा, “विदेश सचिव ने यह भी कहा कि वह अपने समकक्ष से चर्चा करेंगे कि जितना जल्द हो सके वह जम्मू एवं कश्मीर में पाकिस्तान के अवैध कब्जे को खाली करे।”
उन्होंने कहा कि जयशंकर ने साल 2008 के मुंबई हमले तथा पठानकोट हमले के दोषियों को पाकिस्तान में न्याय के कठघरे में लाने को रेखांकित किया।
स्वरूप ने कहा, “उन्होंने कहा है कि उनके दौरे पर पाकिस्तान के विदेश सचिव को इस संबंध में प्रगति के बारे में बताना चाहिए।”
उन्होंने कहा है कि दुनिया इस बात से अवगत है कि पाकिस्तान का भारत के खिलाफ हिंसा व आतंकवाद का इतिहास रहा है।
स्वरूप ने कहा, “भारत का जम्मू एवं कश्मीर राज्य खासकर निशाने पर है। इस रिकॉर्ड की शुरुआत पाकिस्तान सरकार ने सन् 1947 में जम्मू एवं कश्मीर में सशस्त्र छापामार भेजकर और फिर सन् 1965 में इसे दोहराकर की।”
उन्होंने कहा, “इसके तीन दशक बाद इसी तरह का रवैया अपनाते हुए पाकिस्तानी सेना सन् 1999 में कारगिल में नियंत्रण रेखा में दाखिल हो गई।”
प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान सरकार इस बात से अवगत है कि भारत व पाकिस्तान के बीच बातचीत का ढांचा जुलाई 1972 में शिमला समझौते में निर्धारित हुआ था, जिसमें पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जेड.ए.भुट्टो ने सहमति जताई थी कि दोनों देशों को अपने मतभेद द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना चाहिए।
स्वरूप ने कहा, “पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ ने जनवरी 2004 में आश्वासन दिया था कि वे पाकिस्तानी नियंत्रण वाले किसी क्षेत्र में किसी भी तरीके से आतंकवाद को समर्थन की मंजूरी नहीं देंगे।”