बीजिंग, 4 जून (आईएएनएस)। भारतीय राष्ट्रपति भवन में विशेष कार्याधिकारी डॉ. राकेश दुबे लंबे समय से हिंदी के क्षेत्र से जुड़े हैं। हाल में उन्होंने सीआरआई के साथ विशेष इंटरव्यू में हिंदी के भविष्य और चुनौतियों को लेकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं को भी आगे बढ़ाने का है। चीन में हिंदी को लेकर बढ़ रही रुचि से भी राकेश दुबे उत्साहित दिखे।
बकौल राकेश, “देश की उन्नति के लिए भाषाओं की उन्नति जरूरी है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी बहुत सक्रियता से हिंदी के प्रति प्रेम रखते हैं, हिंदी की बात करते हैं। हिंदी भाषा में बोलकर उन्हें भी अच्छा लगता है। भारत सरकार हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य कर रही है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक बहुभाषीय देश है। इसलिए इस कार्य में हम जिस गति से आगे बढ़ रहे हैं, उसमें यह भी देखना होगा कि दूसरी भारतीय भाषाएं कहीं पिछड़ न जाएं। भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी को आगे बढ़ाने का हमारा उद्देश्य है। पूरी भारत सरकार इस बाबत काम कर रही है।”
राकेश कहते हैं कि वह चीन में हिंदी संगोष्ठी में शिरकत करने के लिए आए हैं। आपको यह दिखाई दे रहा है कि चीन में हिंदी के लिए जिस तरह का वातावरण बन रहा है, उससे यह लगता है कि भाषाओं के माध्यम से हम एक-दूसरे के और नजदीक आ रहे हैं।
राकेश दुबे के अनुसार, चीन के विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई को लेकर जिस तरह का माहौल दिख रहा है, वह आज के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले अध्यापकों के जरिए हमें पता चला। इसके अलावा उन्हें अपने विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्यापन में किस तरह की मुश्किलों से दो-चार होना पड़ रहा है, यह भी जानकारी मिली। साथ ही चीनी अध्यापकों को किस तरह का माहौल हिंदी पढ़ाने के लिए मिलता है, यह भी मालूम हुआ। भारत से उन्हें क्या-क्या अपेक्षाएं हैं, इस बारे में भी चर्चा की गई। चीन में हिंदी से जुड़े विद्वानों ने यह भी कहा कि हिंदी को आगे ले जाने के लिए दोनों देशों को लगातार प्रयास करने होंगे। यही एक रास्ता है, जिससे दोनों देशों के संबंधों में नजदीकियां आ सकती हैं।
राकेश दुबे के मुताबिक, विदेशी छात्रों को हिंदी के प्रति आकर्षित करने के लिए भारत सरकार कुछ कार्यक्रम भी चला रही है। जैसे केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा में हिंदी सीखने के इच्छुक विदेशी विद्यार्थियों के लिए 100 से अधिक सीटें हैं। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा आदि संस्थानों में भी हिंदी अध्यापन की व्यवस्था है। जहां पर विदेशी छात्र हिंदी की पढ़ाई कर सकते हैं।
सरकारी भाषा जटिल होती है, आम लोगों के बीच सरल शब्दों या शब्दावली को कैसे पहुंचाया जाएगा, इसके जवाब में राकेश दुबे कहते हैं कि “जब हम पढ़ाई-लिखाई की बात करते हैं, तो वह भाषा आम बोलचाल की भाषा से थोड़ी अलग होती है। अगर हम किताबी शब्दों को इस्तेमाल में लाएंगे तो हमें वे शब्द सरल लगने लगेंगे। और हां, बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल बोलचाल में अच्छा रहता है। लेकिन पाठ्यपुस्तकों और साहित्य में मानक हिंदी संबंधी शब्दों का प्रयोग करना होगा। शायद शुरुआत में ऐसा लग सकता है कि वह कठिन हिंदी है, लेकिन जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे, हम उन शब्दों से परिचित होते जाएंगे और सरलता आती जाएगी।”
विश्व की दूसरी भाषाओं के सामने हिंदी की मौजूदगी के प्रश्न पर उन्होंने बताया कि हिंदी संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है, भारत की राजभाषा है। विश्व में इस समय तीसरे नंबर पर बोली जाने वाली भाषा है। भारत की लगातार हो रही प्रगति और उत्थान के साथ ही भारतीय भाषाओं, खासकर राजभाषा हिंदी का महत्व भी बढ़ता जाएगा।
(साभार-चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पेइचिंग)