तिरुवनंतपुरम/वेटिकन सिटी, 23 नवंबर- पोप फ्रांसिस द्वितीय ने रविवार को वेटिकन में एक विशेष प्रार्थना सभा में भारत के दो कैथोलिक ईसाई धर्म गुरुओं को संत घोषित किया, जिसके बाद भारतीय कैथोलिकों के स्थानीय संतों की संख्या तीन हो गई है। पोप फ्रांसिस द्वितीय ने रविवार को वेटिकन में भारत के दक्षिणी राज्य केरल के धर्म गुरु कुरिएकोस उर्फ चावरा और सिस्टर यूफ्रेसिआ उर्फ एवुप्रेसिम्मा को संत घोषित किया। इससे पहले अप्रैल में उन्होंने इन दोनों को संत घोषित किए जाने को मंजूरी दी थी। कुरिएकोस को चावरा अचेन के नाम से भी जाना जाता है।
इससे पहले वर्ष 2008 में सिस्टर अल्फोंसा को संत घोषित किया गया था। वह भी सायरो मालाबार कैथोलिक चर्च से ही संबद्ध थीं, जिससे दोनों नए संत संबद्ध रहे।
संत घोषित करने के लिए वेटिकन में आयोजित विशेष प्रार्थना सभा से पहले सायरो मालाबार कैथोलिक चर्च के कार्डिनल जॉर्ज अलेंचेरी ने वेटिकन से फोन पर मीडिया को बताया कि दो धर्म गुरुओं को एक ही दिन संत की उपाधि मिलना एक ऐतिहासिक वरदान है।
उन्होंने कहा, “मैं बहुत खुश हूं कि ईश्वर ने हमें ऐसी ऐतिहासिक घटना से नावाजा। हमारे पास दो संत हैं और यह एक ही दिन हुआ है, इसलिए आज का दिन विशेष है।”
विशेष प्रार्थना सभा के बाद अलेंचेरी ने एक संक्षित प्रार्थना सत्र की भी अगुवाई की।
वेटिकन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने वाले राज्यसभा के उप सभापति पी.जे. कुरियन ने विशेष प्रार्थना सभा से पहले वेटिकन से फोन पर संवाददाताओं से कहा कि वे सभी इस ऐतिहासिक अवसर का गवाह बनने जा रहे हैं और इसे लेकर उत्साहित हैं। उन्होंने कहा, “मैं केरल के प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठा हूं। हम सभी इसका गवाह बनने जा रहे हैं और इसे लेकर उत्साहित हैं।”
वेटिकल में केरल के प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करने वाले राज्य के जल संसाधन मंत्री पी.जे. जोसेफ ने कहा कि यह समारोह उन दो धर्म गुरुओं द्वारा किए गए कठिन एवं वास्तविक कार्य का निर्णायक चरण है, जिन्हें संत की उपाधि दी गई है।
वेटिकन में आयोजित विशेष प्रार्थना सभा के मद्देनजर केरल में भी विभिन्न कैथोलिक गिरजाघरों में विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन किया गया।
केरल की 3.3 करोड़ की आबादी में 23 फीसदी लोग ईसाई हैं और उनमें से 50 फीसद कैथोलिक हैं।
कुरिएकोस चावरा का जन्म 10 फरवरी, 1805 को अलप्पुझा के करीब हुआ था। उनके पिता का नाम आइको कुरिएकोस चावरा तथा माता का नाम मरियम थोप्पिल था। वह 13 साल की उम्र में ही घर छोड़कर पादरी बनने का प्रशिक्षण लेने चले गए थे।
उन्हें 29 नवंबर, 1829 को विधिवत रूप से पादरी घोषित किया गया था। चावरा एक समाज सुधारक भी थे और महिलाओं का बौद्धिक विकास एवं उनके शिक्षित होने को संपूर्ण सामाजिक कल्याण की पहली सीढ़ी मानते थे। उन्होंने ही पहली बार प्रत्येक चर्च के साथ स्कूल की व्यवस्था बनाई, जिससे सभी के लिए नि:शुल्क शिक्षा संभव हो पाई। चावरा का 65 वर्ष की उम्र में तीन जनवरी, 1871 को देहावसान हो गया।
वहीं, सिस्टर यूफ्रेसिआ का जन्म सात अक्टूबर, 1877 को त्रिशूर जिले के एदाथरुथी (ओल्लुर) में हुआ था। उन्हें तब रोजा इलुवाथिंगल नाम दिया गया था। वह ‘मदर ऑफ कार्मेल’ नाम की धार्मिक सभा से जुड़ गईं, जिसके बाद वर्ष 1900 में उन्हें नन की उपाधि दी गई।
यूफ्रेसिआ का देहावसान 29 अगस्त, 1952 को हुआ था। उन्हें वर्ष 1987 में ‘सर्वेट ऑफ गॉड’ घोषित किया गया था और तीन दिसंबर, 2006 को वह धन्य घोषित की गई थीं।