सिक्खों का लंबा इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस किसी ने भी इस समुदाय को अपमानित करने का प्रयास किया है उसे कभी बख्शा नहीं गया है। इस बात का एक बड़ा सबूत भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या थी। इंदिरा गांधी के सिक्ख अंगरक्षकों ने ही प्रधानमंत्री की हत्या कर दी थी। इससे यह सिद्ध होता है कि सिक्ख चरमपंथियों को कोई नहीं रोक सकता है। इंदिरा गांधी की हत्या “स्वर्ण मंदिर” पर किए गए एक हमले का बदला लेने के मकसद से की गई थी। इस दुःखद घटना को 30 साल होने जा रहे हैं। इस समय, एक बार फिर सिक्खों के गुस्से को भड़काया गया है। इस बार सिक्खों का गुस्सा भड़काने का काम अंग्रेज़ों ने किया है।
बात यह है कि ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि इंदिरा गांधी को अमृतसर स्थित सिक्खों के प्रमुख तीर्थ स्थल “स्वर्ण मंदिर”, जिसे श्री हरमंदिर साहिब और श्री दरबार साहिब भी कहा जाता है, पर हमला करने की सलाह ब्रिटेन की सरकार ने दी थी। लेकिन यह अकेला काण्ड ही सिक्खों का गुस्सा भड़काने का मुख्य कारण नहीं है। इतिहास साक्षी है कि किसी समय सिक्खों का अपना एक देश होता था जिस पर अंग्रेज़ों ने कब्ज़ा कर लिया था और उसे हिन्दुस्तान का एक हिस्सा बना दिया था। इसलिए सिक्खों के गुस्से का कारण बहुत गहरा और ऐतिहासिक है।
उस समय से ही सिक्खों के एक स्वतंत्र राज्य, ख़ालिस्तान की स्थापना करने की मांग समय-समय पर उठाई जाती है। उग्रवादी सिक्ख तो पंजाब को भारत से अलग करने की मांग भी करते रहते हैं। इसी पंजाब में वे अपना ख़ालिस्तान भी बनाना चाहते हैं। पिछले कुछ दशकों से उग्रवादी सिक्ख चुप करके बैठे हुए थे लेकिन ब्रिटिश सरकार के इस खुलासे से कि “ब्लू स्टार ओपरेशन” करने की सलाह ब्रिटेन ने दी थी, इन लोगों को फिर अपना सिर उठाने का मौका मिल गया है। इस खुलासे पर आम सिक्ख समुदाय द्वारा भी काफ़ी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। इस सिलसिले में “रेडियो रूस” के समीक्षक सेर्गेई तोमिन ने कहा-
क्या कोई स्वतंत्र समीक्षक इस बात पर विश्वास कर सकता है कि सन् 1984 में एक सम्प्रभु देश, भारत की सरकार अपने “औपनिवेशिक स्वामियों” की सलाह पर “स्वर्ण मंदिर” में सैन्य कार्रवाई कर सकती थी? क्या एक या एक से अधिक ब्रिटिश सलाहकारों द्वारा भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को दी गई सलाह इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती थी?इस सवाल का यही एकमात्र जवाब हो सकता है कि निश्चित रूप से नहीं निभा सकती थी।
इस खुलासे को शायद भुला दिया जाता, लेकिन पंजाब के अंदर की घटनाएँ ऐसा नहीं होने दे रही हैं। वहाँ सिक्ख उग्रवादी फिरसे अपना सिर उठाने के प्रयास कर रहे हैं। इस तथ्य के बावजूद कि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद एक पक्के और सच्चे सिक्ख हैं, कट्टरपंथी सिक्खों के सिरों पर ख़ालिस्तान बनाने का जुनून चढ़ा हुआ है।
पिछले साल जून में, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई सैन्य कार्रवाई की 29-वीं बरसी के अवसर पर, “सिक्ख नरसंहार” की स्मृति में एक बड़ा जुलूस निकाला गया था। इस जुलूस का आयोजन एक कट्टरपंथी सिक्ख संगठन, “दल ख़ालसा” द्वारा किया गया था। इसके नेता हरचरनजीत सिंह धामी ने सरकार से मांग की थी कि “ब्लू स्टार ऑपरेशन” के दौरान मारे गए सभी लोगों के नामों की सूची प्रकाशित की जाए।
इस बीच, कुछ महीने पहले पंजाब सरकार ने आतंकवाद विरोधी एक राष्ट्रीय केंद्र स्थापित करने की केंद्रीय सरकार की योजना से अपनी असहमति जताई थी। पंजाब के उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि ऐसे केंद्र की स्थापना से भारत की संघीय व्यवस्था के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा। इस संबंध में सेर्गेई तोमिन ने कहा-
मेरी राय में, भारतीय सिक्खों को “स्वर्ण मंदिर” के परिसर में घटी खूनी घटनाओं के लिए मार्गरेट थैचर को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। पंजाब के सिक्खों की समस्या भारत का एक अंदरूनी मामला है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कट्टरपंथी सिक्ख नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए इस नए खुलासे को हवा दे रहे हैं। वे अपने आंदोलन को तेज़ करने के लिए इसी प्रकार के खुलासों की तलाश कर रहे हैं। इन मायनों में “ब्रिटेन की सलाह का मामला” इन लोगों के लिए एक बड़ा तोहफ़ा सिद्ध हुआ है जिसके लिए उन्हें डेविड कैमरून की सरकार के आभारी होना चाहिए। यह तोहफ़ा दम तोड़ रहे ख़ालिस्तानी आंदोलन में एक बार फिर जान फूँक सकता है।