कोलकाता, 27 मार्च (आईएएनएस)। अपनी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त फिल्म ‘चतुष्कोण’ को दिवंगत फिल्मकार रितुपर्णो घोष और अपनी फिल्म के निर्माण से जुड़ी टीम के सदस्यों को समर्पित करने वाले फिल्म निर्देशक सृजित मुखर्जी बांग्ला भाषा में बनने वाली फिल्मों और हिंदी फिल्मों के कथानक (विषय-वस्तु) में कोई फर्क नहीं मानते।
मुखर्जी को 2014 के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्दशक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई है। 62वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के निर्णायक मंडल ने मुखर्जी की फिल्म ‘चतुष्कोण’ को ‘सिनेमाई भाषा की बेहद सूझबूझ भरी अभिव्यक्ति’ प्रशंसा की।
मुखर्जी को उनकी इसी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ मौलिक पटकथा लेखक भी घोषित किया गया।
मुखर्जी ने आईएएनएस से कहा कि विषय-वस्तु दोनों भाषाओं की फिल्मों में मुख्य समानता है..मुझे नहीं लगता कि अब उसमें कोई अंतर रह गया है।
आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में मुखर्जी ने कहा, “अगर आप राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और लोकप्रियता की बात कर रहे हैं तो आपको यह देखना होगा कि कैसे बांग्ला सिनेमा राष्ट्रीय फलक से धीरे-धीरे ओझल हुआ, हालांकि यह अंतर या भेदभाव समय के साथ अब खत्म हो चुका है।”
विशाल भारद्वाज निर्देशित हिंदी फिल्म ‘हैदर’ को जहां पांच राष्ट्रीय पुरस्कार मिले और कंगना रानौत अभिनीत ‘क्वीन’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का पुरस्कार मिला और इसी फिल्म के लिए कंगना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री चुना गया। इन सबके बावजूद तमिल और बांग्ला फिल्में भी राष्ट्रीय पुरस्कारों में अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहीं।
किसी निर्देशक की पहली फिल्म को दिए जाने वाला पुरस्कार भी एक बांग्ला फिल्म को ही मिला। आदित्य विक्रम सेनगुप्ता को 2014 में उनकी पहली निर्देशित फिल्म ‘आशा जोर माझे’ के लिए यह पुरस्कार दिया गया, जबकि ‘छोतोदेर छोबि’ को सामाजिक मुद्दे पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला।
मुखर्जी कहते हैं, “चुर्नी गांगुली, सेनगुप्ता जैसे युवा बिल्कुल नए विचारों के साथ आ रहे हैं, जो बांग्ला सिनेमा के भविष्य के लिए अच्छा संकेत है।”
मुखर्जी ने 2010 में ‘ऑटोग्राफ’ के साथ निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा और उनकी पहली ही फिल्म न सिर्फ शानदार कारोबार करने में सफल रही, बल्कि फिल्म समालोचकों द्वारा उसे खूब सराहना भी मिली।
मुखर्जी अब तक ‘बाइसे स्राबोन’, ‘हेमलोक सोसायटी’, ‘मिशावर रहस्यो’, ‘जातिश्वरा’ और ‘चतुष्कोण’ जैसी उम्दा फिल्में निर्देशित कर चुके हैं।
उनकी फिल्म ‘जातिश्वरा’ को पिछले वर्ष चार राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे।
मुखर्जी कहते हैं, “मैं कुछ अलग करने की कोशिश नहीं करता..मेरी फिल्में अलग हो जाती हैं। इसीलिए मैं खुद को दोहराना पसंद नहीं करता। मैं कहानी कहने की विभिन्न कलाओं का दीवाना हूं और इसके अलावा सीधी प्रस्तुति का भी।”