बांदा, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड की इकलौती बांदा कताई मिल (यार्न कंपनी) पिछले 28 सालों से बंद है। इस कताई मिल में 1,800 मजदूरों को रोजगार मिला हुआ था। कंपनी प्रबंधन ने 1992 में इसे बीमार (घाटा) बताकर बंद कर दिया। ताला बंदी के बाद से ही बेरोजगार मिल मजदूर इसे पुन: चालू कराने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकारें बेखबर रही हैं। राजनीतिक दलों ने इसे चुनावी मुद्दा तक नहीं बनाया है, जबकि छह आम चुनाव बीत चुके हैं।
बांदा, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड की इकलौती बांदा कताई मिल (यार्न कंपनी) पिछले 28 सालों से बंद है। इस कताई मिल में 1,800 मजदूरों को रोजगार मिला हुआ था। कंपनी प्रबंधन ने 1992 में इसे बीमार (घाटा) बताकर बंद कर दिया। ताला बंदी के बाद से ही बेरोजगार मिल मजदूर इसे पुन: चालू कराने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकारें बेखबर रही हैं। राजनीतिक दलों ने इसे चुनावी मुद्दा तक नहीं बनाया है, जबकि छह आम चुनाव बीत चुके हैं।
अकाल का दंश झेलने वाले बुंदेलखंड में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है। रोजगार की तलाश में सैकड़ों युवा महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं। इस इलाके से बेरोजगारी दूर करने की गरज से ही तत्कालीन मुख्यमंत्री वी.पी. सिंह ने 1981 में बांदा जिला मुख्यालय से सटे मवई गांव के पास करोड़ों रुपये की लागत वाली कताई मिल (यार्न कंपनी) का शिलान्यास किया था और यह 1983 में चालू भी हो गई।
मिल में काम कर चुके श्रमिकों के अनुसार, इस मिल का धागा देश में ही नहीं, विदेशों में भी निर्यात होता था। उस समय इस मिल में 1800 मजदूर काम किया करते थे, लेकिन 1992 में मिल प्रबंधन ने इसे बीमार (घाटा) बता कर बंद कर दिया और सभी मजदूरों को निकाल बाहर कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश स्टेट यार्न कंपनी लिमिटेड द्वारा संचालित इस मिल के मजदूर तभी से अपने नेता राम प्रवेश यादव (निवासी पूर्वांचल) की अगुआई में कताई मिल मजदूर मोर्चा के बैनर तले मिल को फिर से चालू कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मिल मजदूरों और कर्मचारियों ने मिल बंदी के खिलाफ उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया। अदालत ने 14 फरवरी, 2006 को एक आदेश पारित कर मजदूरों को निकाले जाने को अवैध घोषित कर दिया, फिर भी उनकी बहाली नहीं हुई।
कताई मिल मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष रामप्रवेश यादव कहते हैं, “बेहतर भविष्य के लिए पूर्वांचल से बुंदेलखंड आया था। 28 सालों से मिल में ताला बंद है, जिससे 1,800 मजदूरों के परिवार फुटपाथ पर एक-एक रोटी को तरस रहे हैं। मिल बंद होने के बाद से छह आम चुनाव हो चुके हैं, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाकर मजदूरों के साथ खड़ा होने की जरूरत नहीं समझी है।”
सामाजिक संगठन पब्लिक एक्शन कमेटी (पीएसी) की प्रमुख श्वेता मिश्रा कहती हैं, “दैवीय आपदाओं का दंश झेल रहे बुंदेलखंड में बेरोजगारी दूर करने के लिए बांदा की कताई मिल और बरगढ़ की ग्लास फैक्ट्री ही दो मात्र विकल्प थे, जिन्हें सरकार ने बंद कर दिया है। इससे यहां युवाओं और किसानों का पलायन बढ़ा है। सभी राजनीतिक दलों को अपने घोषणा-पत्र में इसे शामिल कर बेरोजगारी दूर करने में सहायक बनना चाहिए।”
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन मंत्री साकेत बिहारी मिश्र कहते हैं, “बांदा की कताई मिल कांग्रेस की देन रही है। हम कोशिश करेंगे कि इस लोकसभा चुनाव में कताई मिल का मुद्दा कांग्रेस के एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया जाए।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बांदा सदर विधायक प्रकाश द्विवेदी का कहना है, “कताई मिल की शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी और कांग्रेस ने ही उसे बंद भी कराया है। लोकसभा चुनाव के बाद इस मुद्दे को विधानसभा में जोर-शोर से उठाएंगे।”
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि घोषणा-पत्र राष्ट्रीय स्तर पर बनता है, लिहाजा इसे उसमें शामिल करवाना मुमकिन नहीं है।