बांदा, 4 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तो सक्रिय हैं ही, सामाजिक संगठन भी पीछे नहीं हैं। एक संगठन ‘पब्लिक एक्शन कमेटी’ (पीएसी) ने सर्वेक्षण कर दावा किया है कि बुंदेलखंड में दलित वर्ग में शामिल कई जातियां बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पक्ष में मतदान न करने का मन बनाया है।
पीएसी की प्रमुख श्वेता ने सर्वे रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, “यह सर्वे बुंदेलखंड की उन्नीस विधानसभा सीटों में अहम भूमिका निभाने वाली दलित वर्ग में शामिल कोरी, कुछबंधिया, खटिक, भाट, मेहतर, बसोर, सहरिया, धोबी व पासी जैसी जातियों पर आधारित है।”
उन्होंने बताया कि हर विधानसभा क्षेत्र में इन जातियों से ताल्लुक रखने वाले पचास महिला और पचास पुरुषों से राजनीतिक और सामाजिक चर्चा के बाद तैयार की गई सर्वे रिपोर्ट के आधार पर दावा किया जा सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में वह बसपा के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे।
श्वेता ने बताया कि ज्यादातर लोगों का मत था कि सूबे में बसपा सरकार बनने पर दलित वर्ग की एक विशेष कौम को तवज्जो दी जाती है, बसपा अब कांशीराम के नारे ‘जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ को दफन कर चुकी है।
बकौल श्वेता, “दलित वर्ग की ये कौमें सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) से भी दूरियां बनाए हुए है और भाजपा या फिर कांग्रेस की ओर रुख कर सकती हैं।”
पीएसी प्रमुख का कहना है कि सर्वे के दौरान दलित वर्ग के ज्यादातर लोग राजनीतिक हिस्सेदारी न मिलने पर बसपा से नाराज दिखे, कई लोगों का मानना था कि जिला पंचायत व विधानसभा की सुरक्षित सीटों पर भी बसपा प्रमुख मायावती ‘स्वजातीय’ को ही मौका देती हैं।
उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड बसपा का गढ़ रहा है और अपवाद स्वरूप पिछड़े वर्ग के यादव और सामान्य वर्ग के ठाकुर व ब्राह्मण को छोड़ दिया जाए तो वामपंथी आंदोलन की समाप्ति के बाद यहां दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाता बसपा का ही वोट बैंक माना जाता रहा है। समूचे बुंदेलखंड में करीब सात लाख ऐसे दलित मतदाता हैं, जो राजनीतिक उपेक्षा के शिकार हैं। अगर पीएसी के सर्वे रिपोर्ट में जरा भी सच्चाई होगी तो बसपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।