हमीरपुर- समाज में महिलाओं को अब भी पुरुषों से कमतर आंका जाता है। उसकी बात को अनसुना करना आम है और अगर बात बुंदेलखंड की हो तो यहां के बड़े हिस्से में महिलाएं आज भी समाज में दूसरे दर्जे पर ही हैं, पर हमीरपुर के धरऊपुर की महिलाओं ने गांव की तकदीर ही बदलने की मुहिम छेड़ रखी है। वे बालिका शिक्षा से लेकर पानी संरक्षण और स्वच्छता के नए मानक स्थापित करने की जुगत में हैं।
सरीला विकास खंड की जलालपुर ग्राम पंचायत की दलित बहुल इस बस्ती में कुल 45 मकान हैं और आबादी ढाई सौ के करीब है। इस गांव में भी पानी का संकट बुंदेलखंड के अन्य गांवों की तरह ही है, मगर यहां की महिलाएं अन्य गांव की तुलना में पानी खर्च करने के मामले मंे सजग और सतर्क कहीं ज्यादा हैं।
गांव की महिलाओं को पानी संरक्षण के लिए जागृत करने वाली जल सहेली ललिता देवी ने आईएएनएस से कहा कि जलस्रोतों से पानी मिलता रहे, इसके लिए महिलाएं हमेशा प्रयासरत रहती हैं।
तालाब की साफ -सफाई और तालाब की संग्रहण क्षमता को बढ़ाने का बीड़ा महिलाओं ने ही उठाया था, यह बात अलग है कि अब वह तालाब सूख चुका है। गांव के हैंडपम्प को ठीक करने का काम भी महिलाएं कर लेती हैं। वर्तमान में गांव के पांच में से चार हैंडपम्प पानी दे रहे हैं।
जल सहेली कमलेश बताती है कि घरों से निकलने वाले गंदे पानी का भी यहां भरपूर उपयोग किया जा रहा है, कई घरों के बाहर किचन गार्डन बना दिए गए हैं, जिससे जहां एक ओर गंदे पानी का उपयोग हो रहा है, वहीं घर की जरूरत की सब्जियां उगाई जा रही हैं। इसके अलावा पानी का जलस्तर बढ़ाने के लिए सोख पिट भी बना लिए हैं।
कमलेश आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी हैं। उनका कहना है कि गांव में बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक को साफ -सफाई से रहने से होने वाले फायदे से अवगत कराया जाता है, तालाब के आसपास के क्षेत्र के शौच के लिए उपयोग नहीं करने दिया जाता। इसके साथ ही पानी की बर्बादी की किसी को आजादी नहीं है।
गांव की पूनम पढ़कर शिक्षिका बनना चाहती हैं। वह बताती हैं कि इस गांव में प्राथमिक पाठशाला है, मगर लड़कियां आगे पढ़ाई करना चाहती हैं, यही कारण है कि यहां से बाहर पढ़ने जाने वाले छात्रों में लड़कियों की संख्या अधिक है। यहां की लड़कियां पढ़-लिखकर नौकरी करना चाहती हैं, तीन लड़कियां तो पुलिस भर्ती परीक्षा में शामिल होने की तैयारी कर रही हैं।
गांव की बुजुर्ग महिला लाडली बाई कहती हैं कि इस गांव की महिलाएं इस बात को जान गई हैं कि पानी पर पहली हकदारी महिलाओं की है। यही कारण है कि पानी के उपयोग पर महिलाओं की पैनी नजर रहती है। यहां के हर घर में कम से कम दो मवेशी हैं। पानी व भूसा के संकट के चलते कई परिवारों ने मवेशियों को बेच भी दिया है। यहां दूध को कोई बेचता नहीं है।
दलित बहुल बस्ती धरऊपुर की महिलाओं ने अपने गांव की तकदीर और तस्वीर बदलने की ठानी है, यही कारण है कि वे सरकार और शासन से शिकायत करने की बजाय अपने आपसी सहयोग से नए सोपान गढ़ने की तैयारी में हैं।