भोपाल, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव की तरीखें नजदीक आते ही बुंदेलखंड इलाके में मतदाता अपनी आवाज बुलंद करने लगे हैं। सूखा, पलायन और जल संकट से जूझते लोगों के बीच इन दिनों एक नारा बुलंद हो रहा है, ‘गांव-गांव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा।’ इस नारे को बुलंद करते हुए ग्रामीणों ने मिलकर ‘जल-जीवन संगठन’ गठित किया है।
भोपाल, 12 अप्रैल (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव की तरीखें नजदीक आते ही बुंदेलखंड इलाके में मतदाता अपनी आवाज बुलंद करने लगे हैं। सूखा, पलायन और जल संकट से जूझते लोगों के बीच इन दिनों एक नारा बुलंद हो रहा है, ‘गांव-गांव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा।’ इस नारे को बुलंद करते हुए ग्रामीणों ने मिलकर ‘जल-जीवन संगठन’ गठित किया है।
बुंदेलखंड कभी जल संरचनाओं के कारण देश और दुनिया में विशिष्ट पहचान रखता था। मगर वक्त गुजरने के साथ हालात बदले और अब यह इलाका जल संकट के कारण देश का दूसरा विदर्भ माना जाने लगा है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 14 जिलों को मिलाकर बुंदेलखंड बनता है। इस इलाके का लगभग हर गांव गर्मी के मौसम में पानी के संकट से जूझता है। चुनाव आते हैं और पानी उपलब्ध कराने के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं।
चुनाव आते ही मतदाताओं के दिल-ओ-दिमाग पर जल संकट का गुबार छा जाता है। वे हर चुनाव में यह आस लगा बैठते हैं कि उनकी समस्या का निदान हो ही जाएगा, मगर हर बार वे खाली हाथ रह जाते हैं। इसीलिए खजुराहो संसदीय क्षेत्र के पन्ना जिले के रैपुरा क्षेत्र के 10 गांवों के ग्रामीणों ने एक बैठक कर ‘जल जीवन संगठन’ का गठन किया। इस संगठन ने नारा दिया है, ‘गांव-गांव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा।’
पन्ना जिले में देहरादून का लोक विज्ञान संस्थान लोगों में जल संरक्षण के प्रति जागृति लाने के लिए अभियान चला रहा है। इसके तहत हर गांव में ग्राम स्वराज समितियां गठित की गई हैं। इन समितियों के सदस्य आमसभा के सदस्य होते हैं। इनमें से तीन ग्राम पंचायतों -फतेपुर, बिरमपुरा और बिलपुरा- की समितियों के प्रतिनिधियों ने पिछले दिनों बिलपुरा पंचायत के सिहारन गांव में एक बैठक की। इसी बैठक में राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों पर दबाव बनाने के लिए ‘गांव-गांव तालाब बनेगा, तभी हमारा वोट मिलेगा’ अभियान चलाने का फैसला हुआ।
ग्राम अलोनी की ग्राम स्वराज समिति के अध्यक्ष खिलावन सिंह बताते हैं, “बैठक में पानी के संकट पर चर्चा की गई। सभी ने तय किया कि चुनाव के दौरान जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाने के लिए अभियान चलाया जाए। इस अभियान के जरिए तालाबों के पुनर्जीवन और जल संकट की ओर राजनीतिक दलों का ध्यान खींचना चाहते हैं।”
बैठक में शामिल रहीं बिलपुरा की ग्राम स्वराज समिति की अध्यक्ष सुलोचना रानी बताती हैं, “जल जीवन संगठन क्षेत्र की पानी संबंधी समस्या को लेकर सभी राजनीतिक दलों को ज्ञापन सौंपेगा। आने वाले दिनों में इसी तरह का प्रस्ताव हर गांव में पारित किया जाएगा। साथ ही संबंधित क्षेत्र के उम्मीदवारों को अपना ज्ञापन सौंपा जाएगा।”
गांव के जल संकट का जिक्र करते हुए रोशनी महिला मंगलदल सोनमाउ कलां की अध्यक्ष तिलक रानी कहती हैं, “पानी की समस्या ने यहां की महिलाओं की जिंदगी को समस्या ग्रस्त बना दिया है। हालात यह है कि महिलाओं और किशोरियों का अधिकांश समय पानी के इंतजाम में ही गुजर जाता है। नेता चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं, आश्वासन देते हैं, मगर बात नहीं बनती।”
जल जीवन संगठन के गठन के साथ बैठक में मौजूद लोगों ने अपना संदेश क्षेत्र के बड़े हिस्से तक पहुंचाने का संकल्प लिया। मक्केपाला की ग्राम स्वराज समिति के सदस्य नित्तपाल सिंह का कहना है, “तमाम दलों के उम्मीदवारों पर इस चुनाव में इस बात का दवाब बनाया जाएगा कि वे यहां की जल समस्या के स्थाई निदान के लिए पहल करें। तालाब बनेंगे तो जल संरक्षण होगा, साथ में अन्य जल स्रोतों का जल स्तर भी बढ़ेगा और गर्मी में पानी की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकेगा।”
लोक विज्ञान संस्थान देहरादून की सीमा रवंदले बताती है, “यह इलाका जल संकट से जूझ रहा है। स्थानीय लोगों ने मिलकर अपने हक के लिए यह अभियान चलाने का संकल्प लिया है। जल (राज) नीति का यह अभियान गांव के लोगों को उनका हक दिलाने में मददगार साबित हो सकता है।”
सीमा बताती हैं, “लंबे अरसे से बुन्देलखंड में सूखे की स्थिति है। पिछले पांच साल के बुन्देलखंड के वर्षा के आंकड़ों से यह बात सामने आती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस क्षेत्र में अनियमित वर्षा, उच्च तीव्रता की जोरदार बारिश होने लगी है। मॉनसून वर्षा के दिन 50-60 से घटकर 20-25 हो गए हैं। ऐसी स्थिति में अगर सामान्य बारिश हो भी जाए, तो भी खेती का अकाल और पीने के पानी का संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में बुंदेलखंड में तालाबों का महत्व और बढ़ गया है। अफसोस इस बात का है कि बुंदेलखंड पैकेज के तहत आई राशि में से सिर्फ तीन प्रतिशत राशि ही तालाबों पर खर्च की गई।”
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, बुंदेलखंड में कभी 10,000 तालाब हुआ करते थे। मगर अब यह आंकड़ा 1,000 से 2,000 के बीच ही रह गया है। जल संकट गहराने का कारण ही तालाबों का खत्म होना माना जा रहा है। इसीलिए अब तालाबों की आवाज बुलंद हो चली है।
बुंदेलखंड क्षेत्र में मध्य प्रदेश के चार -टीकमगढ़, खजुराहो, सागर व दमेाह- और उत्तर प्रदेश के चार -झांसी, जालौन, हमीरपुर व बांदा- संसदीय क्षेत्र आते हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में जल संकट को मुद्दा बनाने के जमीनी स्तर पर प्रयास तेज हो चले हैं।