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बांग्लादेश : युद्ध अपराधी की याचिका पर रविवार को तारीख तय होगी (लीड-1)

ढाका, 5 मार्च (आईएएनएस)। बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी (जेआई) के नेता मोहम्मद कमरूज्जमां के वकील ने गुरुवार को बंग मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराध के लिए मौत की सजा बरकरार रखने वाले फैसले पर अर्जी दायर की है। सर्वोच्च न्यायालय रविवार को तारीख तय करेगा।

बीडीन्यूज24 डॉट कॉम के मुताबिक, वकील शिशिर मोनिर ने पुष्टि की कि पुनर्विचार याचिका दायर की गई है।

बीडीन्यूज24 डॉट कॉम के मुताबिक, अटार्नी जनरल महबूबी आलम ने बताया कि यह महसूस किया गया कि मामले पर सुनवाई की जरूरत है।

आलम ने कहा, “अदालत के न्यायाधीश चैंबर में सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष का कोई वकील नहीं था। हमने कहा कि इसकी सुनवाई की जरूरत है और अदालत ने हमें सूचित किया कि रविवार को वे जानकारी देंगे।”

मई 2013 में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी)-2 ने मृत्युदंड सुनाया था। उनके खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा लगाए गए सात में से पांच आरोप में न्यायाधिकरण ने उन्हें दोषी पाया।

सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय संभाग ने मृत्युदंड को बरकरार रखा था।

कमरूज्जमां 1971 के दौरान मैमनसिंह में इस्लामी छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष थे। बंग मुक्ति युद्ध के दौरान वह क्षेत्र में अल बद्र के ‘मुख्य संयोजक’ थे। वह इसी के आरोपी बनाए गए थे।

अदालत ने कहा कि बांग्लादेश मुक्ति संग्राम को खत्म करने में पाकिस्तान सेना की मदद करने के लिए निगरानी मिलीशिया अल बद्र का गठन किया गया था।

1971 के बंग मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराध करने वालों के खिलाफ मामले की सुनवाई करने के लिए आईसीटी विशेष रूप से गठित अदालत है।

कानून के मुताबिक, पूर्ण आदेश प्रकाशित होने के 15 दिनों के भीतर उसे पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार है।

अटार्नी जनरल ने कहा कि अर्जी से फांसी के वारंट के लागू होने पर रोक लग जाएगी।

कमरूज्जमां के मुख्य वकील खानदाकर महबूब हुसैन ने गुरुवार को मीडिया से कहा कि उन्होंने 44 दलीलों का उल्लेख करते हुए 45 पृष्ठों की पुनर्विचार याचिका दायर की है।

कमरूज्जमां को पत्रकार गुलाम मुस्तफा की हत्या और शेरपुर के नलिताबारी के शोहागपुर गांव में 25 जुलाई 1971 को 120 पुरुषों की हत्या और महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने संबंधी दो आरोपों के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी।

उसकी मौत की सजा को नवंबर 2014 में बरकरार रखा गया। लेकिन अदालत ने गुलाम मुस्तफा को बंधक रखने और प्रताड़ना के बाद उनकी हत्या के लिए मौत की सजा को घटा दिया और उम्रकैद में बदल दिया।

सर्वोच्च न्यायालय का पूर्ण आदेश जारी होने के बाद आईसीटी-2 के तीन न्यायाधीशों ने 19 फरवरी को कमरूज्जमां की फांसी के वारंट पर दस्तखत कर दिए। जेल में भेजे जाने के पहले कमरूज्जमां को फांसी का वारंट पढ़कर सुनाया गया था।

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