पुलिस महकमा इसे विसरा बता रहा है लेकिन इनकी हालत देखकर लगता है कि इनका पुरसाहाल नहीं है। सुरक्षा के इंतजाम नदारद हैं।
शहर के पुलिस लाइन्स में एक कमरा ऐसा है। जहां नर कंकालों का जखीरा भरा पड़ा है। वर्षो पुराने ये नर कंकाल सड़ रहे हैं। कमरे की हालत ये बयां करती है कि इसे कभी कभार ही खोल कर उपयोग किया जाता है। इससे यह सवाल उठता है कि आखिर इन नरकंकालों के इस परिसर में रखने का जिम्मेदार कौन है।
सूत्रों की माने तो इन नरकंकालों की संख्या कई सौ में हो सकती है। चूंकि 12 बाई 12 के कमरे में नीचे से काफी ऊपर तक ये नरकंकाल पटे पड़े हैं। जिसमें इंसान की खोपड़ी सहित शरीर के सभी अंग मौजूद हैं। यही नहीं उसी कमरे से कुछ दूरी पर इंसानी विसरा भी हजारों की संख्या में रखा गया है। विसरा के सैकड़ों डिब्बे भी अस्त-व्यस्त पड़े हैं।
इनकी सुरक्षा को लेकर महकमा कितना संजीदा है, वह इस कमरे की हालत देख कर लगाया जा सकता है। दरवाजे की सिटकनी टूटी हुई है और खिड़कियां नदारद हैं। कभी कुत्ते तो कभी अन्य जानवर घुसकर मानव अवशेषों को तितर-बितर कर रहे हैं।
पुलिस अस्पताल के सूत्रों की मानें तो संबंधित व्यक्ति की मौत के बाद पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के निर्देश के तहत हार्ट, लिवर, ब्रेन, छोटी आंत, गुरदा को विशेष जार में रसायन में मिलाकर रखा जाता है। जबकि दुर्घटना, हत्या या मारपीट की स्थिति में क्षतिग्रस्त अंग की हड्डी को सुरक्षित रखने का प्रावधान है।
पुलिस अस्पताल में विसरा जिन कमरों में रखा जाता है, उनकी सुरक्षा कोषागार की तरह होनी चाहिए। पूर्णकालिक सुरक्षा कर्मी की तैनाती भी की जानी चाहिए। लेकिन पुलिस अस्पताल के ठीक पीछे आवासीय इलाके में बने इस कमरे में तो दरवाजे और खिड़कियां तक टूटी हैं।
पुलिस अस्पताल के मैनुअल के मुताबिक छह माह से एक साल में विसरा की जांच कराकर उसे नष्ट करवा देना चाहिए। इसके लिए संबंधित थाना क्षेत्र के थानाध्यक्ष को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय पर प्रार्थना पत्र देकर विसरा नष्ट कराने की अर्जी देनी चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
वर्ष 2000 में न्यायालय के आदेश पर जिले के विभिन्न थाना क्षेत्र के 400 व वर्ष 2012 में जीआरपी परिक्षेत्र के 13 विसरों को नष्ट करवाया गया। लेकिन, 1950 से रखे विसरों पर संबंधित थानाध्यक्षों की नजर नहीं गई।