भोपाल- मध्य प्रदेश खूनी व्यापमं घोटाले के बाद एक बार फिर देशभर में चर्चा में है। पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के बिलासपुर नसबंदी कांड की याद ताजा कराते मप्र के बड़वानी कांड ने 53 लोगों की आंखों की रोशनी छीन ली है। ऐसे में पीड़ितों और इनका हाल देखकर अन्य लोगों की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से भरोसा क्यों न उठे?
बड़वानी के चतर सिंह के परिवार की रोजी-रोटी मजदूरी से चलती है, इसमें उनकी पत्नी साया बाई भी हाथ बंटाया करती थी, मगर अब साया उनका साथ नहीं दे पाएगी, क्योंकि उसकी एक आंख की दृष्टि चली गई है। चतर सिंह इससे इतने आहत हैं कि उनका सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से ही भरेासा उठ गया है और उन्होंने तो कसम तक खा ली है कि वे अब कभी भी इलाज के लिए सरकारी अस्पताल नहीं जाएंगे।
नवंबर माह में बड़वानी के जिला अस्पताल में नेत्र शिविर लगा था, जिसमें कुल 86 लोगों की आंखों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था। इनमें से 60 मरीजों की आंखों में को संक्रमण हो गया। इन्हें उपचार के लिए इंदौर ले जाया गया, जहां ऑपरेशन हुई आंख का कई बार ऑपरेशन किया गया, जिस कारण 53 मरीजों की आंखों की रोशनी चली गई। कई मरीजों का अब भी इंदौर के एमवाइएच व अरविंदो अस्पताल में इलाज चल रहा है।
इन मरीजों की आंखों का परीक्षण करने दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से आए नेत्र विशेषज्ञों के दल ने माना कि ऑपरेशन के दौरान आंख धोने के लिए उपयोग में लाए गए दूषित तरल पदार्थ के कारण संक्रमण फैला। दल ने यहां तक कहा था कि अधिकांश मरीजों की आंखों की रोशनी लौटना संभव नहीं है।
ऑपरेशन के बाद आंख गंवाने वालों में से एक चतर सिंह की पत्नी साया बाई भी है। चतर सिंह पेशे से मजदूर है, उनकी पत्नी साया बाई ने बड़वानी में लगे मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर में एक आंख का ऑपरेशन कराया था, जिसमें उसकी आंख की रही-सही दृष्टि ही चली गई। पांच बच्चों के पिता चतर सिंह उस घड़ी को कोस रहे हैं, जब वे पत्नी की आंख की रोशनी पाने के लिए सरकारी अस्पताल पहुंचे थे।
चतर सिंह ने भोपाल में आईएएनएस से चर्चा करते हुए बताया कि बड़वानी में ऑपरेशन से पहले साया को धुंधला दिखता था, ऑपरेशन के बाद उसे संक्रमण हुआ और जब उसे इंदौर ले जाया गया, तब भी धुंधला ही दिखता था, मगर वहां उसकी आंख के दो और ऑपरेशन कर दिए गए, जिससे उसे अब बिल्कुल नहीं दिखाई दे रहा है।
राज्य सरकार ने दृष्टि गंवाने वालों को एक तरफ जहां आर्थिक मदद और पांच हजार रुपये मासिक पेंशन देने का ऐलान किया है, वहीं दूसरी आंख का ऑपरेशन सरकारी खर्च पर कराने का भरोसा दिलाया है, इस पर चतर सिंह का कहना है कि उसकी पत्नी की एक आंख की तो रोशनी चली गई, दूसरी से कुछ दिखता है। लिहाजा, वह उस आंख की रोशनी को दांव पर नहीं लगाना चाहते, वे अब कभी भी सरकारी अस्पताल नहीं जाएंगे।
इसी तरह ऑपरेशन के बाद आंख की रोशनी गंवाने वाले रशीद खान की पत्नी सन्नोर बाई अपने पति के हाल के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराती है। उनका कहना है कि सरकारी अस्पताल में हुए ऑपरेशन में घटिया स्तर की दवाइयों का इस्तेमाल किया गया और इसी के चलते उनके पति की आंख खराब हुई है। अब वे इस जीवन में कभी भी सरकारी अस्पताल नहीं जाएंगी।
वहीं पीड़ित मरीजों के बीच में जाकर वास्तविकता जानकर लौटे सामाजिक संगठन जन स्वास्थ्य अभियान के अमूल्य निधि का कहना है कि बड़वानी में आंख गंवाने वाले मरीजों पर इंदौर में प्रयोग किया गया। उनके एक से ज्यादा बार ऑपरेशन हुए, मगर रोशनी नहीं लौटी।
अमूल्य निधि का आरोप है कि राज्य सरकार उपचार के नाम पर एक निजी अस्पताल के हितों की पूर्ति कर रही है, जब एमवाइएच अस्पताल में योग्य चिकित्सक थे, तो मरीजों को अरविंदो अस्पताल क्यों भेजा गया और उसे अग्रिम तौर पर 37 लाख रुपये क्यों दिए गए?
उन्होंने कहा, “ये ऐसे सवाल हैं, जिनका सरकार को जवाब देना चाहिए। इसके अलावा मरीजों के उपचार में उपयोग की गई दवाओं का ब्योरा जारी किया जाए और इन दवाओं की जांच हो।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समाधान दिया है कि अब नेत्र शिविर लगाया ही न जाए। यानी न शिविर लगेगा, न बदनामी का मौका आएगा। गरीबों का आसरा सरकारी शिविरों से जुड़ा था, मगर अब वह भी नसीब नहीं होगा। शिविर अगर लगे भी तो कौन गरीब आंख गंवाने जाएगा!