कोलकाता, 12 जून (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल विधानसभा ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से क्रूर भूमि अध्यादेश वापस लेने का आग्रह किया गया है।
सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस, विपक्षी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस ने प्रारंभ में तीन अलग-अलग प्रस्ताव पेश किए, जिनमें भूमि अधिग्रहण में निष्पक्ष मुआवजा एवं पारदर्शिता, पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन अधिकार (संशोधन) अध्यादेश, 2015 को वापस लेने की मांग की गई थी।
विपक्ष के नेता माकपा के सूर्यकांत मिश्र ने जहां तृणमूल और कांग्रेस द्वारा पेश प्रस्ताव का विरोध किया, वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि कोई एक प्रस्ताव पारित किया जाए क्योंकि यह मुद्दा आम जनता की भलाई से जुड़ा हुआ है।
मुख्यमंत्री के इस आग्रह पर संसदीय कार्य मंत्री पार्था चटर्जी ने बाद में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसे विधानसभा ने पारित कर दिया। सिर्फ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य ने इसका विरोध किया।
बनर्जी ने कहा, “कई ऐसे मुद्दे होते हैं, जहां देश और जनता के लिए समझौते किए जा सकते हैं। लेकिन यह कानून क्रूर है और यदि यह पारित हो गया तो पूरे देश को नष्ट कर देगा। इसके साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।”
ममता ने कहा, “अध्यादेश तीन बार जारी किया गया, लेकिन अभी तक यह पारित नहीं हो पाया है। केंद्र को यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए। लोकतंत्र में अंततोगत्वा जनता प्रमुख है और उन्हें चाहिए कि इस कानून को तत्काल वापस ले लें।”
बनर्जी ने कहा कि उद्योग और कृषि एकसाथ काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “विकल्प खुले हुए हैं। यह सरकार आसान विकल्प क्यों चुन रही है? यह सरकार उद्योगपतियों के लिए किसानों की जमीन क्यों छीनना चाहती है?”
ममता ने भाजपा के एक मात्र सदस्य सामिक भट्टाचार्य से भी प्रस्ताव के पक्ष में मतदान का आग्रह किया। लेकिन भट्टाचार्य ने प्रस्ताव का विरोध किया और प्रस्तावित कानून का यह कहते हुए बचाव किया कि यह भूमाफिया को समाप्त करने पर लक्षित है।
उन्होंने सवाल किया, “तृणमूल एक तरफ कहती है कि वह भूमि अधिग्रहण नहीं करेगी, दूसरी ओर यह कई स्मार्ट शहरों की योजना बनाती है। आप स्मार्ट शहरों के लिए जमीन किससे लेंगे, क्या कोई भू-माफिया है?”
भूमि अध्यादेश को किसान विरोधी बताते हुए मिश्रा ने अपनी पार्टी के प्रस्ताव को पारित न किए जाने पर नाखुशी जाहिर की।
उन्होंने कहा, “जब भी हम कोई प्रस्ताव या विषय पेश करते हैं, उसे स्वीकार नहीं किया जाता। लेकिन जब सत्ताधारी पार्टी ठीक उसी तरह का कोई प्रस्ताव अलग भाषा के साथ लाती है, तो उसे तत्काल स्वीकार कर लिया जाता है। यह दोहरा मापदंड मेरी समझ से परे है।”
कांग्रेस सदस्य मनास भूंया ने भी भूमि अध्यादेश को क्रूर बताया।
उन्होंने कहा, “सिर्फ अध्यादेश ही नहीं, बल्कि पूरा भूमि विधेयक क्रूर है। शिव सेना सहित पूरा देश इसका विरोध कर रहा है। हमें एक उदाहरण पेश करना चाहिए और तीन विभिन्न प्रस्तावों के स्थान पर कोई एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि हम इस क्रूर कानून के खिलाफ एकमत हैं।”