उज्जैन-शाही स्नान कि अव्यवस्था को लेकर स्थानीय मीडिया एवं सोशल मिडिया में आयी क्रिया प्रतिक्रियाओं से पूरा प्रशासन हरकत में आया।
डीजीपी सुरेन्द्र सिंह यादव जी सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने स्वीकारा गलती हुई
गलती स्वीकार करना अच्छी बात है , उससे कोई छोटा नही हो जाता , प्रभारी मंत्री भी ट्रैफिक प्लान कि चूक से चिंतित नजर आये अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष मंहत नरेन्द्र गिरी महाराज ने भी कम भीड़ को लेकर रोष प्रकट किया इसके अलावा अनेकानेक व्यापारिक संस्थाओं से लगातार सामाजिक संस्थाओं ने अपनी प्रतिक्रिया में नाराजगी जाहिर की।
क्या करना होगा प्रशासन को
अब प्रशासन को चाहिये दुसरे पर्व स्नान के दौरान कम से कम श्रद्दालुओं को पैदल चलना पडे़ ऐसी व्यवस्था हो ,जहां पर उन्हें रोका जा रहा है , उसके आगे जाने के लिए आटो , ई रिक्क्षा ,मैजिक सुविधाएं वहां तक जाने के लिए हो , जहां अव्यवस्था ना हो , और वाहन आसानी से जा सके शहर के क्षीर सागर , सामाजिक न्याय परिसर , नजर अली मिल कि खाली जमीन सहित इंदौर टेक्सटाईल्स मिल एवं हीरा मिल कि खाली जमीन का भी उपयोग हो सकताहै , इन स्थानों पर 30 से 50 हजार के बीच निजी चौपहिया वाहन खडे हो सकते है.
स्थानीय जनप्रतिनिधियों को साथ लेना होगा
स्थानीय जन प्रतिनिधियों एवं वार्ड के जन प्रतिनिधि के साथयोजना को मूर्त रूप देना होगा , ये लोग चुनाव के दौरान ये गली गली धूमें है ,इन्हें पता है कौन सी जगह पर सुविधा जनक पार्किग हो सकती है , दौ पहियों वाहनों पर से प्रतिबंध हटे , इन्हें एक निश्चित जगह तक जहां पैदल जा रहे श्रद्दालुओ को असुविधा नही हो जाने दिया जावे , विभिन्न त्यौहार पर स्थानीय पुलिस माकुल व्यवस्था करती है , उन्हें आगे करे बाहर से आये जवान उनकी गाईड लाईन के अनुसार चले , बेहतर से बेहतर व्यवस्था दुसरे स्नान में देखने को मिलेगी , धर्म और अध्यात्म कि नगरी में आतिथ्य देव भवों कि परंपरा का निर्वाह होता आया है , आगे भी होगा सभी के सहयोग से क्योंकि धर्म प्रधान है , वही हमें सही मार्ग दिखाता है , भक्ति भावना से पूर्ण आनंद उत्साह से परिपूर्ण सत् मार्ग दिखाने का और उस रास्ते से भवसागर पार जाने का यही तो धर्म है अध्यात्म है संस्कृति है सनातन धर्म कि जिसके नाम से करोड़ों श्रद्दालु दौडे़ चले आते है भक्ति भावना से पूर्ण निःस्वार्थ भावना से प्रभू कि कृपा प्राप्त करने के लिए क्योंकि मोक्ष कि सीढ़ी का पहला पायदान यही से शुरु होता है।
प्रभारी मंत्री प्रोटोकाल से बाहर नहीं निकल पाये
हम प्रभारी मंत्री भूपेन्द्र सिंह के दिन भर के कार्यक्रम पर दो दिनों तक अपनी नजर बनाए रहे.मंत्री जी का प्रोटोकाल उनकी म्हणत पर पानी फेरने में सहायक हुआ.सुबह मंत्री जी किसी बड़े संत से मिलने पहुँच जाते थे वहां उन्हें कम से कम 1 से 2 घंटे संतों और मंत्रियों की प्रोटोकाल व्यवस्था में निकल जाते थे.इस दौरान वरिष्ठ अधिकारीयों का पूरा काफिला मंत्री जी के पीछे होता था.वहां से मंत्री जी विभिन्न स्थानों पर मुलाक़ात करते एवं शिकवा-शिकायत सुनते दोपहर भोजन पर बड़े होटल रुद्राक्ष की और रुख करते थे.बड़े अधिकारी भी दोपहर भोज के लिए अपने स्थानों पर पहुँच जाते थे.दोपहर बाद फिर व्ही सिलसिला जो शाम को किसी अखाड़े के उदघाटन आदि में समाप्त होता था.रात 9 बजे के आस पास विश्राम भवन में अधिकारीयों और मंत्री जी की मीटिंग के बाद दुसरे दिन फिर यही सिलसिला शुरू होता था.इन सभी कारणों के चलते कार्यों की निगरानी अधिकारीयों की नजर से बाहर हो गयी.फलस्वरूप कार्यों के पूर्ण होने की गति पिछडती गयी और नाराजी का पहाड़ खड़ा हो गया.यह सत्य है की प्रभारी मंत्री होली का त्यौहार मनाने भी अपने घर नहीं गए लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ सामने है.
सुरक्षा व्यवस्था का अधिक प्रचार भी मेले पर भारी पड़ा
प्रचार-प्रसार इस मेले का करने में प्रशासन इतना ज्यादा मशगूल रहा की उसे पता ही नहीं चला की यहाँ की अनुपम सुरक्षा व्यवस्था के कसीदे भी साथ में पढ़े जा रहे हैं.इस गर्मी में आम जनों को स्नान के लिए वह दर्दनाक व्यवस्था की गयी जिसमें बुजुर्ग और बच्चे,महिलायें अपनी हिम्मत तोड़ गए.यह भी कहा गया की जिसे मेला घूमना हो वह 10 किलोमीटर पैदल घूमे.मेले की अव्यवस्थाओं की ख़बरें जब बाहर आयीं तो दूर-दराज के लोगों ने वहां जाना उचित नहीं समझा.
क्षिप्रा जल की जगह नर्मदा जल भी कारक बना
भले ही मुख्यमन्त्री ने क्षिप्रा नदी को पुनर्जीवन देने के लिए नर्मदा जल मिला दिया लेकिन जनता भी यह जानती है की आचमन एवं स्नान की प्रक्रिया एवं महत्त्व क्या है.क्षिप्रा जल का वैज्ञानिक महत्त्व अलग है एवं नर्मदा जल का अलग.सिंहस्थ कई भौगोलिक ,ज्योतिषीय कारणों की वजह से यहाँ मनाया जाता है.भले ही साधुओं की टोली को राजनैतिक समीकरणों से “मैनेज” कर लिया गया हो लेकिन महाकाल को भ्रम में डालना संभव नहीं है.इसका परिणाम सामने आएगा ही और वह निश्चित है.