नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को देश में सशक्त और समर्थ न्यायपालिका का आह्वान किया और कहा कि न्याय प्रणाली की खामियों और समस्याओं को दूर करने के लिए एक गतिशील आंतरिक तंत्र विकसित करने की जरूरत है।
नई दिल्ली, 5 अप्रैल (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को देश में सशक्त और समर्थ न्यायपालिका का आह्वान किया और कहा कि न्याय प्रणाली की खामियों और समस्याओं को दूर करने के लिए एक गतिशील आंतरिक तंत्र विकसित करने की जरूरत है।
मोदी ने न्यायिक प्रणाली में आई शिथिलता को दूर करने के लिए एक गतिशील आंतरिक तंत्र का आह्वान किया और कहा, “यदि हम कोई गलती करते हैं, यद्यपि ऐसा करने का हमारे पास कोई अधिकार नहीं है, तो न्याय प्रणाली में इसे सुधारने की व्यवस्था है।”
उन्होंने मुख्यमंत्री और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कहा, “लेकिन यदि आप (न्यायिक प्रणाली) कोई गलती करते हैं तो कोई समाधान नहीं है। क्योंकि आपसे ऊपर कोई नहीं है। हमें लगातार आत्म मूल्यांकन करना है।”
यह सम्मेलन देश में न्यायिक प्रशासन से संबंधित समस्याओं को सुलझाने पर केंद्रित है। इस तरह का आखिरी सम्मेलन सात अप्रैल, 2013 में आयोजित किया गया था।
न्याय प्रणाली में गुणात्मक बदलाव का आह्वान करते हुए मोदी ने कहा, “न्याय प्रणाली को सशक्त के साथ-साथ सर्वोत्तम भी होना चाहिए।” उनका मानना है कि न्याय प्रणाली में गुणात्मक बदलावों को डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से ही हासिल किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि न्यायपालिका के लिए अच्छा बुनियादी ढांचा सरकार की प्राथमिकता है और 14वें वित्त आयोग के अंतर्गत न्यायपालिका को सशक्त बनाने के लिए 9749 करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की गई है।
उन्होंने कहा, “हम ताकतवर हो रहे हैं। ताकतवर होने में कुछ बुरा नहीं है लेकिन हमें इसके साथ ही सर्वोत्तम भी होना चाहिए।”
आत्म-सुधार के लिए आंतरिक तंत्र के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने सरकार में बैठे लोगों की गलतियों पर उनकी आलोचना की ओर इशारा करते हुए कहा कि न्यायाधीश भाग्यशाली हैं कि उन्हें ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। क्योंकि लोगों में उनके प्रति बहुत विश्वास है।
उन्होंने कहा, “जहां कार्यपालिका सार्वजनिक जीवन में सूचना का अधिकार अधिनियम और लोकपाल जैसे विभिन्न संस्थानों के माध्यम से निरंतर आकलन और जांच के दायरे में रहती है, वहीं न्यायपालिका को सामान्यत: ऐसी जांच का सामना नहीं करना पड़ता।”
मोदी ने कहा कि हर किसी पर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि न्याय प्रणाली पर लोगों के विश्वास में कमी न आ सके। क्योंकि इससे बहुत बड़ी क्षति हो सकती है।
“देश की न्यायिक प्रणाली में लोगों का बहुत विश्वास है। हमें आने वाले सालों में इस क्षेत्र में कदम रखने वाले मानव संसाधन को सक्षम बनाने की जरूरत है। हमें भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए यह सोचना पड़ेगा कि हम किस तरह से अच्छे कानूनी संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं।”
मोदी ने कहा, “देश की न्याय प्रणाली पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। वास्तव में, हम सभी अपने सामथ्र्य और क्षमताओं के मुताबिक जिम्मेदारियां निभा रहे एक ही तरह के लोग हैं। लेकिन न्यायप्रणाली में कार्यरत लोगों के साथ ऐसी स्थिति नहीं है। ये जो काम करते हैं वह पवित्र है। भगवान ने आपको इस ईश्वरीय जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए भेजा है।”
मोदी ने न्यायाधिकरणों की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरणों पर बहुत बड़ा बजट आवंटित किया गया है। लेकिन उनके यहां मामलों के निपटारे की दर चिताजनक है।
मोदी ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या ये न्यायाधिकरण वास्तव में प्रभावी हैं या इस व्यवस्था में मात्र एक अवरोध हैं। इनकी कार्यप्रणाली भी चिंता का विषय है।
कानूनों के सरलीकरण का आह्वान करते हुए मोदी ने कहा कि संविधान में निर्थक कानूनों को समाप्त करना होगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने समीक्षाधीन 700 पुराने कानूनों और अन्य 1,700 कानूनों को हटाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में प्रतिदिन एक कानून को हटाने की है।
फोरेंसिक विज्ञान में न्यायिक अधिकारियों के शिक्षण की बात करते हुए मोदी ने कहा कि कानून का मसौदा तैयार करने के लिए प्रशिक्षित कानूनी लोगों की जरूरत है।
लंबित मामलों के बारे में मोदी ने कहा, “हम सभी अदालतों में लंबित मामलों के बारे में बात करते हैं। लेकिन क्या हमने कभी न्यायपालिका द्वारा उन मामलों पर खर्च किए गए समय या इस दौरान आ रही समस्याओं के बारे में सोचा है।” उन्होंने कहा कि लोक अदालतें आम आदमी को इंसाफ दिलाने का प्रभावी तरीका है व इस व्यवस्था को और मजबूत बनाया जाना चाहिए। इसी तरह, उन्होंने ‘परिवार न्यायालयों’ के महत्व पर भी बल दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू ने कहा कि सरकार द्वारा अपना पूर्ण सहयोग और समर्थन दिए बिना सिर्फ न्याय प्रणाली के जरिए ही न्याय प्रशासन को हासिल नहीं किया जा सकता। केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री डी. वी. सदानंद गौड़ा भी इस अवसर पर उपस्थित थे।