यरुशलम: इजरायल के अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि वह इजरायली पुलिस द्वारा कथित रूप से बिना अनुमति के फोन निगरानी तकनीक का इस्तेमाल किए जाने के मामले की जांच शुरू कर रहे हैं.
उन्होंने यह बात अनुचित तरीके से लोगों को निशाना बनाकर उनके फोन की निगरानी किए जाने संबंधी खबरें सामने आने के बाद कही है.
देश के अटॉर्नी जनरल ने पुलिस द्वारा अपने ही नागरिकों की जासूसी में पेगासस तकनीक के कथित दुरुपयोग की जांच के लिए एक टीम बनाने की घोषणा की है. पुलिस पर उन लोगों की जासूसी करने का आरोप है, जिन पर किसी भी प्रकार का अपराध करने का संदेह नहीं था.
अटॉर्नी जनरल एविके मेंडेलब्लिट ने चार पन्नों के पत्र में कहा कि उन्हें अब तक इजरायल के कारोबार संबंधी समाचार पत्र कैलकेलिस्ट में किए गए दावों की पुष्टि करने वाला कोई सबूत नहीं मिला.
उल्लेखनीय है कि कैलकेलिस्ट की खबर में दावा किया गया है कि पुलिस ने तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के खिलाफ आंदोलन में शामिल नेताओं, व इसके अलावा मेयरों और अन्य नागरिकों की बिना अनुमति के निगरानी की थी. निगरानी के लिए एनएसओ ग्रुप के पैगासस हैकिंग सॉफ्टवेयर और अन्य तकनीकों का इस्तेमाल किया था.
हालांकि, पुलिस ने इस खबर को गलत बताते हुए कहा कि वह कानून के अनुसार काम करती है. लेकिन, उक्त रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद सांसदों ने नाराजगी जताई थी.
वहीं, एनएसओ समूह ने भी इस पर सफाई देते हुए कहा था कि वह अपने मौजूदा या संभावित ग्राहकों पर टिप्पणी नहीं करता है. एनएसओ ग्रुप पहले कई बार कह चुका है कि वह अपने स्पायवेयर को केवल सरकारों को बेचता है.
कैलकेलिस्ट को दिए अपने बयान में कंपनी की ओर से कहा गया था कि कंपनी अपने ग्राहकों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे सिस्टम को संचालित नहीं करती है और न ही उन्हें एक्टिव करने में शामिल है.
हालांकि, एजी मेंडेलब्लिट ने कहा कि कई प्रश्नों के जवाब नहीं मिले हैं. उन्होंने कहा कि वह एक शीर्ष अधिकारी के नेतृत्व में जांच समिति का गठन कर रहे हैं.
हारेत्ज अखबार की खबर के मुताबिक, इज़राइल के अटॉर्नी जनरल (एजी) एविके मेंडेलब्लिट ने गुरुवार को पुलिस आयुक्त कोबी शबताई को सूचित किया कि वह जांच करने के लिए एक समिति का गठन करेंगे.
वहीं, कोबी शबताई ने कहा कि रिपोर्ट के प्रकाशन के तुरंत बाद पुलिस ने इस सबंध में उचित आंतरिक जांच शुरू कर दी थी, जिसमें अभी तक गैरकानूनी निगरानी का कोई उदाहरण नहीं मिला है.
उन्होंने कैलकेलिस्ट को इस मामले में ठोस विवरण पेश करने के लिए कहा है, ताकि पुलिस कथित घटनाओं की बेहतर जांच कर सके.
खबर के मुताबिक, जांच समिति की अध्यक्षता डिप्टी अटॉर्नी जनरल अमित हारारी द्वारा की जाएगी और इसमें दो और सदस्य होंगे.
हालांकि, एजी मेंडेलब्लिट ने शबताई को लिखे अपने पत्र में कहा है कि इस मामले की प्रारंभिक जांच में इजरायल पुलिस द्वारा अवैध तरीके से स्पायवेयर के इस्तेमाल का कोई आधार नहीं मिला और हम संतुष्ट हैं कि इजरायल पुलिस कानून के तहत अपनी शक्तियों के दायरे में कार्य कर रही है.
बहरहाल, अटॉर्नी जनरल ने पुलिस से वो सभी वॉरंट उनके कार्यालय को उपलब्ध कराने को कहे हैं, जिनके आधार पर बीते दो सालों के दौरान लोगों के संवाद को सुना गया.
इस बीच, सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री ओमर बार-लेव ने कहा कि अटॉर्नी जनरल ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पुलिस ने कानून के अनुसार काम किया.
बार-लेव ने कहा, ‘निजी घटनाओं के संदर्भ में कानूनी दिशानिर्देशों में कोई अंतर नहीं पाया गया. हालांकि, विशिष्ट अवैध घटनाएं हो सकती हैं और इसलिए अटॉर्नी जनरल ने एक जांच समिति बनाने का फैसला किया.’
इजरायली दैनिक ‘कैलकेलिस्ट’ ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक विस्तृत खबर में दावा किया था कि इजरायली नागरिकों पर प्रारंभिक चरण की जांच के लिए पुलिस खुफिया जानकारी एकत्र करने और उनके खिलाफ आरोप-पत्र बनाने के लिए सैन्य स्तर के जासूसी उपकरणों का उपयोग कर रही है, भले ही ऐसे लोग आपराधिक आरोपों का सामना न कर रहे हों.
मालूम हो कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर भी शामिल था, ने जुलाई 2021 में पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये दुनियाभर में नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.
इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.
इस पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
यह खुलासा सामने आने के बाद देश और दुनियाभर में इसे लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था.
बता दें कि एनएसओ ग्रुप का कहना है कि मिलिट्री ग्रेड के इस स्पायवेयर को वह सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.