गया (बिहार), 10 सितंबर – पितरों को पिंडदान करने से जहां उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है, वहीं कर्ता को भी पितृदोष से मुक्ति मिलती है। ये बातें धार्मिक पुस्तकों में लिखित हैं।
गया में प्रेतशिला वेदी पर पूर्वजों की आत्मा की शांति के साथ-साथ उनकी मोक्ष की राह आसान करने में पालकी एक माध्यम बनी हुई है। पालकी पर सवार होकर शारीरिक रूप से असहाय पिंडदानी 873 फुट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर पर पहुंच रहे हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।
आत्मा और परमात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि प्रेतशिला में पिंडदान के बाद ही पितरों को प्रेतात्मा योनि से मुक्ति मिलती है। ऐसे में लोगों के लिए 676 सीढ़ियां ऊपर चढ़ाने में पालकी एक सहारा बनी हुई है।
उत्तर प्रदेश के बलिया से पिंडदान करने आए पिंडदानी रामेश्वर प्रसाद कहते हैं, “प्रेतशिला पर पिंडदान करने के लिए पालकी ही एकमात्र सहारा है। पूर्वजों के मोक्ष के लिए जहां पिंडदानी अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं, वहीं ये पालकी ढोने वाले भी इसमें अपनी हिस्सेदारी निभा रहे हैं।”
गया में पुराने समय में 365 पिंडवेदियां थीं, लेकिन मौजूदा समय में लोग 45 पिंडवेदियों पर पिंडदान कर पूर्वजों के लिए मोक्ष का रास्ता तैयार कर रहे हैं। गया शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर पश्चिमोत्तर में स्थित प्रेतशिला तक पहुंचने के लिए 873 फुट उंचे प्रेतशिला पहाड़ी के शिखर जाना पड़ता है।
पिंडदान करने वाले सभी श्रद्घालु प्रेतशिला पहुंचते हैं, लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए वेदी के इतनी उंचाई पर होने के कारण वहां तक पहुंचना मुश्किल होता है। उस वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था है, जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं।
गया के एक पंडा अभिमन्यु ने आईएएएनस को बताया कि प्रेतशिला वेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार के सदस्य तक पिंड सीधेोहुंचता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
उन्होंने बताया कि सभी पिंडस्थलों पर तिल, गुड़, जौ आदि से पिंड दिया जाता है, परंतु इस पिंडवेदी के पास तिल मिश्रित सत्तू उड़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि जो पूर्वज मृत्यु के बाद प्रेतयोनि में प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने ही घरों में लोगों को तंग करने लगते हैं, उनका यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर जाते हैं।
कहा जाता है कि प्रेतशिला का नाम प्रेमपर्वत हुआ करता था, परंतु भगवान राम के यहां आकर पिंडदान करने के बाद इस स्थान का नाम प्रेतशिला रखा गया। प्रेतशिला में पिंडदान के पूर्व ब्रह्म कुंड में स्नान और तर्पण करना अनिवार्य होता है।