धर्मपथ–नर्मदा माई को अटूट श्रध्दा, भक्ति और समर्पण के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदापुर, होशंगाबाद में नर्मदा जयन्ती बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है। सन् 1978 से यह नर्मदा उत्सव प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में यह छोटे पैमाने पर था। धीरे-धीरे आज यह नर्मदा महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सामूहिक रूप से नर्मदा जी के तट पर एकत्र होकर नर्मदापुर के निवासी एवं उसके आसपास के ग्रामवासी सामूहिक पूजन करते हैं। इस अवसर पर रात्रि को नर्मदा नदी में दीपदान के दृश्य का अत्यधिक दिव्य स्वरूप रहता है, क्योंकि भक्त अपनी श्रध्दानुसार दीप जलाकर नदी में प्रवाहित करते है। इस प्रकार नदी में असंख्य दीप रात्रि में प्रवाहित होते हैं। दीपों की ज्योति से पूरी नर्मदा जगमगा उठती हैं। बलखाती हुई लहरों में दीप का दृश्य अत्यन्त ही मनोहारी दिखाई देता है। नर्मदा जयन्ती समारोह में नर्मदा के भुक्ति-मुक्ति दायी स्वरूप पर विद्वानों के भाषण एवं महात्माओं के प्रवचन होते हैं। यह सब नर्मदा उत्सव की रात्रि में ही आयोजित होता है। दीपदान और नर्मदा अभिषेक इस उत्सव के मुख्य अंग हैं। होशंगाबाद की पूर्व दिशा में लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर तवा नदी नर्मदा से संगम करती है
युगों से हम सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, हम इसका सम्मान और पूजन करते हैं। ऐसे में कोई शक्ति अजर-अमर होकर लोकहित में अग्रसर रहे तो उनका जन्म कौन नहीं मनाएगा। माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया।
तब नर्मदाजी प्रार्थना करते हुए बोली- ‘भगवन्! संसार के पापों को मैं कैसे दूर कर सकूँगी?’
तब भगवान विष्णु ने आशीर्वाद रूप में वक्तव्य दिया- ‘नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव। त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः।’
अर्थात् तुम सभी पापों का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव-तुल्य पूजे जाएँगे।
तब नर्मदा ने शिवजी से वर माँगा। जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है, उसी प्रकार से दक्षिण गंगा के नाम से प्रसिद्ध होऊँ।
शिवजी ने नर्मदाजी को अजर-अमर वरदान और अस्थि-पंजर राखिया शिव रूप में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया। इसका प्रमाण मार्कण्डेय ऋषि ने दिया, जो कि अजर-अमर हैं। उन्होंने कई कल्प देखे हैं। इसका प्रमाण मार्कण्डेय पुराण में है।
नर्मदाजी का तट सुर्भीक्ष माना गया है। पूर्व में भी जब सूखा पड़ा था तब अनेक ऋषियों ने आकर प्रार्थनाएँ कीं कि भगवन् ऐसी अवस्था में हमें क्या करना चाहिए और कहाँ जाना चाहिए? आप त्रिकालज्ञ हैं तथा दीर्घायु भी हैं। तब मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि कुरुक्षेत्र तथा उत्तरप्रदेश को त्याग कर दक्षिण गंगा तट पर निवास करें। नर्मदा किनारे अपनी तथा सभी के प्राणों की रक्षा करें।