नई दिल्ली, 18 फरवरी (आईएएनएस)। उद्योग मंडल एसोचैम ने हीरा व्यापारी नीरव मोदी से जुड़े पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के 11,300 करोड़ रुपये के घोटाले का हवाला देते हुए रविवार को कहा कि सरकार को सरकारी बैंकों में अपनी अधिकतम हिस्सेदारी बेच देनी चाहिए ताकि ये बैंक निजी तौर पर काम कर सकें।
पीएनबी ने इस सप्ताह खुलासा किया था कि बैंक की मुंबई की एक शाखा में 1,77.169 करोड़ डॉलर की धोखाधड़ी हुई है। यह राशि बैंक की शुद्ध आय लगभग 1,320 करोड़ रुपये के आठ गुना के बराबर है।
एसोचैम ने जारी बयान में कहा, “पीएनबी का 11,300 करोड़ रुपये का घोटाला सरकार के लिए एक खतरे की घंटी है कि वह बैंकों में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 50 फीसदी से कम कर दे ताकि ये बैंक निजी बैंकों की तरह काम कर सकें। इस स्थिति में अपने हितधारकों और ग्राहकों के हितों की रक्षा की पूर्ण जिम्मेदारी बैंकों की होगी।”
बयान में कहा गया, “सरकारी बैंक एक के बाद एक संकट से गुजर रहे हैं और सरकार द्वारा करदाताओं के पैसे से इनको राहत पैकेज देने की भी एक सीमा है।”
उद्योग मंडल ने कहा कि सरकारी बैंकों का वरिष्ठ प्रबंधन अपना अधिकतर समय नौकरशाहों के निर्देशों का पालन करने में लगा देता है।
उन्होंने कहा, “इस प्रक्रिया में सभी जोखिमों को कम करने और प्रबंधन सहित सभी मुख्य बैंकिंग कामकाज बैंकों की प्राथमिकता से हट गए हैं। यह समस्या और गंभीर हो गई है क्योंकि बैंक नई प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो वरदान या अभिशाप कुछ भी सिद्ध हो सकते हैं।”
इस संबंध में मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने शनिवार को तीन आरोपियों की तीन मार्च तक पुलिस हिरासत की मांग की है।
इन तीन आरोपियों में पीएनबी के सेवानिवृत्त उपप्रबंधक गोकुलनाथ शेट्टी, सिंगल विंडो ऑपरेटर मनोज खराट और मुख्य आरोपी नीरव मोदी की कंपनियों के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता शामिल हैं।
इसके अलावा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इस घोटाले में 10 अन्य निदेशकों और अधिकारियों को नामित किया है।
एसोचैम का कहना है, “सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 50 फीसदी से कम होने पर वरिष्ठ प्रबंधन को जवाबदेही और जिम्मेदारी के साथ अधिक स्वायतत्ता भी मिल जाएगी।”
एसोचैम के महासचिव डी.एस.रावत ने जारी बयान में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से पूरे वित्तीय क्षेत्र में कारोबार में पारदर्शिता बहाल करने के तरीकों में शामिल होने का आग्रह किया है फिर चाहे वह निजी बैंक हो या सरकारी बैंक या गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां।
इस संदर्भ में मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्यम ने सरकारी क्षेत्र के बैंकों में निजी भागीदारी को और बढ़ाने की वकालत की।