इस बार 6 अक्टूबर को नवमी होगी, जिसमें दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध होगा। पं. केके पाण्डेय व पं. कृष्ण दत्त अवस्थी ने बताया कि पूर्वजांे की तृप्ति के लिए किए जाने वाले कार्य को श्राद्ध कहते हंै। विशेष बात यह है कि जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि श्राद्ध होना चाहिए।
उन्होंने बताया कि देव ऋषि और पितृ यह तीन प्रकार के ऋण बताए गए हैं। इनमें श्राद्ध बहुत जरूरी है। जिस व्यक्ति के पास जैसा सामथ्र्य है, उसे वैसा ही श्राद्ध करना चाहिए।
उन्हांेने बताया कि पितृ पक्ष पर इस बार प्रथम दिन पूर्णिमा और प्रतिपदा का श्राद्ध एक साथ किया जाएगा। पूर्वजों की कृपा पाने का पर्व पितृपक्ष भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होगा। 28 सितंबर को उदय तिथि में सुबह 8:38 बजे तक पूर्णिमा रहेगी। इसके बाद प्रतिपदा परेवा लग जाएगी। हालांकि प्रतिपदा तिथि की हानि रहेगी।
वर्ष 29 सितंबर को द्वितीय तिथि व 30 सितंबर को भरणी और तृतीया का श्राद्ध होगा। 1 अक्टूबर को चतुर्थी तिथि व 2 अक्टूबर को पंचमी तिथि का श्राद्व होगा। 3 अक्टूबर को षष्ठी तिथि और 4 को सप्तमी और 5 को अष्टमी का श्राद्ध होगा। 6 अक्टूबर को मात्र नवमी को दिवंगत हो चुकी महिलाओं का श्राद्ध होगा।
सात अक्टूबर को दशमी की तिथि, 8 अक्टूबर को एकादशी तिथि, 9 अक्टूबर को द्वादशी, 10 अक्टूबर को त्रयोदशी तिथि 11 को अक्टूबर चतुदर्शी है तथा 12 अक्टूबर को पितृ विसर्जन होगा।