पटना, 2 अगस्त (आईएएनएस)। आज मिथिला की संस्कृति की पहचान ‘पाग’ एक बार फिर सदन से लेकर सड़क तक, यहां तक कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार तक पहुंच गया है। मिथिला में टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप ‘पाग’ का विशिष्ट महत्व है, लेकिन कलांतर में मिथिला की यह पहचान कई कारणों से हाशिये पर पहुंच गई थी। पाग को फिर से मिथिलावासियों के सिर का ताज बनाने के लिए ‘पाग बचाउ अभियान’ शुरू किया गया है।
पटना, 2 अगस्त (आईएएनएस)। आज मिथिला की संस्कृति की पहचान ‘पाग’ एक बार फिर सदन से लेकर सड़क तक, यहां तक कि बाबा बैद्यनाथ के दरबार तक पहुंच गया है। मिथिला में टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप ‘पाग’ का विशिष्ट महत्व है, लेकिन कलांतर में मिथिला की यह पहचान कई कारणों से हाशिये पर पहुंच गई थी। पाग को फिर से मिथिलावासियों के सिर का ताज बनाने के लिए ‘पाग बचाउ अभियान’ शुरू किया गया है।
सिर पर पाग पहनना मिथिला की सदियों पुरानी विरासत है, हालांकि हाल के दिनों में इसका प्रचलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, जिसे आज बचाने की जरूरत महसूस होने लगी है।
जानकार बताते हैं कि ‘पाग’ मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है। पूर्व में पाग पहनने की प्रथा सिर्फ ब्राह्मण और कायस्थ जातियों में थी। इन जातियों के भी ‘पाग’ की संरचना में एक खास किस्म की भिन्नता होती थी, जिसे बहुत आसानी से लोग नहीं देख पाते। पाग के अगले भाग में एक मोटी-सी पट्टी होती है, वहीं इसकी पहचान-भिन्नता छिपी रहती है।
कहा जाता है कि पूर्व में परिवार या समाज के सम्मानित व्यक्ति इसे अपने सिर पर धारण करते थे, जो उनके ज्ञान और सामाजिक सम्मान का सूचक था। उस समय ‘लाल पाग’ विशुद्ध रूप से इन दोनों जातियों के लिए वैवाहिक प्रतीक था। लोग केवल विवाह या विवाह से संबद्ध लोकाचारों में इसे पहनते रहे या संरचनात्मक असुविधा के कारण लोग इसे रस्मअदायगी के लिए धारण करते रहे।
वर्तमान समय में मिथिलालोक फाउंडेशन ने ‘पाग बचाउ अभियान’ की शुरुआत की है। फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ. बीरबल झा का कहना है कि ‘पाग’ मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है। इसे किसी खास जाति से जोड़कर कभी नहीं देखा जा सकता। उन्होंने कहा कि सभी धर्म के लोगों में सिर ढकने की प्रथा रही है।
उन्होंने कहा कि ‘पाग’ की चर्चा वेदों में भी की गई है। इसके अलावा 13वीं शताब्दी में आदि गद्यकार ज्योतिरीश्वर ठाकुर की लिखी पुस्तक ‘वर्ण रत्नाकर’ में भी पाग की चर्चा है।
डॉ. झा ने बताया कि मिथिला की सभ्यता और संस्कृति की शान ‘पाग’ मिथिलांचल के लोगों के सम्मान का प्रतीक है उस ‘पाग’ शब्द को पिछले दिनों ‘डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट अर्बन डिक्शनरी डॉट कॉम’ ने अपनी डिक्शनरी में शामिल किया है। बिहार के मिथिला क्षेत्र एवं नेपाल के तराई इलाके में रहने वाले मैथिलों के लिए पाग मात्र एक पहनावा का हिस्सा ही नहीं, बल्कि उनके सम्मान, आन-बान और शान का प्रतीक है।
पाग की व्याख्या करते हुए वेबसाइट ने लिखा है कि पाग बिहार के मिथिलांचल में रहने वाले लोगों के लिए सिर को ढकने का एक परिधान है तथा यह लोगों के सम्मान से भी जुड़ा है।
‘पाग बचाउ अभियान’ के ब्रांड एम्बेसडर व मैथिली के सुप्रसिद्ध गायक विकास झा कहते हैं, “यह संगठन मिथिलांचल के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास की कई योजनाओं पर काम कर रहा है, इस कारण मैं इससे जुड़ा और लोगों से पाग पहनने का आग्रह कर रहा हूं।”
इस अभियान के तहत आठ मई को बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय में पाग मार्च भी निकाला गया था, जिसमें सभी लोग पाग पहनकार शामिल हुए थे। इस मार्च में राजनीति से परे इस क्षेत्र के सभी विधायक और विधान पार्षदों ने हिस्सा लिया था।
पाग अब तक उच्च और कुलीन वर्गो का प्रतीक माना जाता रहा है, लेकिन अब इस अभियान के जरिए पाग को आत्मसम्मान की प्रतीक के साथ साथ पूरे मिथिला समाज को एकसाथ लाने का एक जरिया बना दिया गया है।
डॉ. झा के अनुसार, “मिथिला के सभी समुदाय को एक सूत्र में बांधकर क्षेत्र में सामाजिक, सांसक्ृतिक और आर्थिक उत्थान लाया जा सकता है। यह अभियान मिथिला को संपन्नता की ओर ले जाएगा।”
मिथिलालोक फाउंडेशन मानता है कि पाग मिथिला के सम्मान और एकता का प्रतीक है, जिसे बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। आज के समय में महिलाएं भी पुरुषों के समान ही सम्मान के हकदार है और यही कारण है कि अब महिलाओं को पाग पहनना चाहिए।
डॉ. झा ने कहा कि महाकवि विद्यापति, मंडन मिश्र, अयाची मिश्र, वाचस्पति, डॉ. अमरनाथ झा जैसे विद्वानों की धरती से प्रतिवर्ष लाखों छात्र अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए पलायन करते हैं।
उन्होंने कहा कि मिथिलांचल के आर्थिक विकास के लिए इसके प्राकृतिक स्रोतों की उपलब्धता के आधार पर योजना बनाकर बेरोजगारी से लड़ने का फैसला लिया गया है। इसी क्रम में फाउंडेशन ने पटना में ‘मैथिल उद्यमी सम्मेलन’ कराने की योजना बनाई है।
‘पाग बचाउ अभियान’ की औपचारिक शुरुआत मिथिलालोक संस्था की ओर से दिल्ली के आईटीओ स्थित राजेंद्र भवन में 28 फरवरी को हुई थी। इस मौके पर लगभग 500 प्रवासी मैथिलों ने सिर पर गुलाबी पाग पहनकर राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर मार्च किया था।
बिहार के विधायक रामलषण राम ‘रमण’ भी मानते हैं कि पाग मिथिला की पुरानी परंपरा है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को मिथिला के सभी विधायक विधानसभा में पाग पहनकर पहुंचेंगे।
संस्थापक डॉ़ झा ने बताया कि मिथिला से बाबा बैद्यनाथ धाम जाने वाले कांवड़िये भी इस वर्ष बाबा के दरबार में ‘पाग’ पहनकर पहुंच रहे हैं। ‘पाग कांवड़िया गीत’ की सीडी भी जारी की गई है।
उन्होंने बताया कि इस गीत के माध्यम से कांवड़िये भगवान शिव से यह विनती करेंगे कि जिस मिथिला में वे कभी महाकवि विद्यापति की भक्ति से प्रसन्न होकर उगना के रूप में उनकी सेवा करने आए थे, उस मिथिला की दिशा और दशा बदलने के लिए भोले बाबा अपनी कृपा²ष्टि एक बार फिर उस भूभाग पर डालें, जिससे सीता अवतरित हुई थीं।