आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी ऋचा ने सीता स्वयंवर प्रसंग के विलक्षण तथ्यों को उजागर करते हुए बताया कि भगवान श्रीराम का व्यक्तित्व ऐसा है कि कोई भी कवि या रचनाकार उनके चरित्र की विशेषताओं को लिखे बिना नहीं रह सकता। ऋषि विश्वामित्र यज्ञ की रक्षा के लिए श्रीराम और लक्ष्मण को वन लेकर गए थे और आहिल्या का उद्धार हुआ। पुष्प वाटिका में श्रीराम और सीता का मिलन होता है और पुष्प वाटिका सत्संग का प्रतीक है। सत्संग का वास्तविक अर्थ सत्य से मिलन हो जाना है।
साध्वी ऋचा भारती दिव्य ज्ञान जागृति संस्थान की ओर से आयोजित पांच दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को प्रवचन कर रही थी। उन्होंने कहा कि सत्संग तब होगा, जब जीवन में किसी पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ गुरु का पर्दापण होगा। ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होने से प्रभु से साक्षात्कार होता है और मानव अपने अंतकरण दिव्य अनुभूतियों का अनुभव करता है। यही धर्म का शाश्वत स्वरूप है। परमात्मा का साक्षात्कार कर लेना ही धर्म है।
नारी की महिमा के व्याख्यान में उन्होंने कहा कि भारतीय नारी ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से विशिष्ट स्थान बनाए हुए है। वैदिक काल में भारतीय नारी का स्थान ऊंचा रहा है। विद्या का आदर्श सरस्वती में, धन का आदर्श लक्ष्मी, पराक्रम का दुर्गा में और पवित्रता का गंगा में पाया जाता है। लेकिन वर्तमान में नारी को अबला कहकर उससे जीने का अधिकार छीना जा रहा है। नारी अबला नहीं सबला है। उन्होंने अफसोस व्यक्त किया कि वर्तमान परिवेश में कन्याओं को जन्म लेने से पूर्व ही मार दिया जा रहा है। भारत के यह हालात विलक्षण हैं, यहां दुर्गा की पूजा की जाती है, उसकी ही भू्रण हत्या की जा रही है। उन्होंने समाज को अपनी बीमार मानसिकता को बदलने की दलील दी और कहा कि एक सुसंस्कृत समाज की कल्पना तभी की जा सकती है, जब उसका आधार सुशिक्षित नारी होगी। स्थानीय आयोजक प्रवीण राय ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि श्रीरामकथा में भाग लेकर यहां उद्धृत विचारों को आमजन तक पहुंचाकर एक स्वस्थ समाज के लिए आगे आएं।