मनोज पाठक
रांची, 1 मई (आईएएनएस)। झारखंड के पर्यावरण संरक्षक सिमोन उरांव को केंद्र सरकार ने उनके परिश्रम और लगन को पद्मश्री सम्मान से नवाजा है। सिमोन ने जल संचयन के लिए अकेले छह गांवों में तालाब खुदवाए और पेड़ लगाकर एक अनोखी मिसाल पेश की। अब इन गांवों में साल में तीन फसलें उपजाई जा रही हैं।
झारखंड की राजधानी रांची से 35 किलोमीटर की दूर बेड़ो प्रखंड के खस्सी टोला में जामटोली पहाड़ी की तलहटी के निचले हिस्सों में सिमोन सात दशकों से प्रकृति की प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते रहे हैं। अपने अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प, जीवन के प्रति असीम आस्था तथा प्रकृति से मिले व्यावहारिक ज्ञान के बल पर बंजर जमीन को खेती के लायक बनाया।
अनपढ़ होने के बावजूद अपनी ग्रामीण तकनीक से ‘जल प्रबंधन’ और ‘वन संरक्षण’ को नया आयाम दिया। किसी पर्यावरणविद् तथा कृषि वैज्ञानिक जैसी गहरी सोच रखनेवाले सिमोन आज इस क्षेत्र के प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
पूरे क्षेत्र में ‘सिमोन बाबा’ के नाम से विख्यात सिमोन बताते हैं कि झारखंड अक्सर सूखे की चपेट में रहता आया है, लेकिन इस क्षेत्र के खेत अब पानी से लबालब रहते हैं।
15 मई, 1932 को खस्सी टोला निवासी पाहन एवं पड़हा राजा बेड़ा उरांव की धर्मपत्नी बंधनी उरांव की कोख से जन्म लेनेवाले सिमोन उरांव होश संभालते ही खुद को गंभीर आर्थिक कठिनाइयों से घिरा पाया।
सिमोन कहते हैं कि सात वर्ष की अवस्था में हरहंजी गांव के प्राथमिक विद्यालय से आठवीं तक की पढ़ाई करने के बाद आर्थिक तंगी के कारण उन्हें विद्यालय छोड़ना पड़ा। पिता के कहने पर सात वर्ष की उम्र में ही उन्होंने खेतों में हल चलाना सीखा। 10 वर्ष की अवस्था में अपनी बंजर जमीन में सबसे पहले शकरकंद की खेती की। बाद में टमाटर और बैगन लगाए। बाजार में अपने द्वारा उत्पादित शकरकंद, बैगन और टमाटर बेचकर जब चंद पैसे मिले तो उत्साह बढ़ा।
प्रारंभ में सिमोन ने लगभग 70 एकड़ जमीन खेती के लायक बनाई।
गांव के गुना भगत बताते हैं कि सिमोन उरांव से प्रेरित होकर गांववाले एकजुट हुए और 1961 में झरियानाला के गायघाट के पास एक बांध का निर्माण कार्य शुरू किया। लगभग नौ वर्षो में गायघाट बांध का निर्माण काफी अथक प्रयास के बाद पूरा हुआ। तीन गांव के तीन सौ ग्रामीणों ने इस बांध के निर्माण के काम में श्रमदान किया।
इसके बाद सिमोन ने खस्सी टोला के निकट छोटा झरिया नाला में 1975 में दूसरे नए बांध का निर्माण किया। झरिया नाला बांध 27 फीट ऊंचा बांधा गया। सिमोन के प्रयास से ग्रामीणों ने झरिया नाला बांध में एकजुट होकर श्रमदान किया।
ग्रामीण कहते हैं कि सिमोन सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित कराने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। वे सरकार और ग्रामीणों के बीच सेतु का काम करते रहे हैं। उनके प्रयास से ही 80 के दशक में हरिहरपुर जामटोली के निकट गायघाट बांध के ऊपरी इलाके में देशवाली बांध का निर्माण हुआ।
गांव के बुन्नू उरांव बताते हैं कि गायघाट गांव में ग्रामीणों ने श्रमदान कर साढ़े पांच हजार फीट लंबी कच्ची नहर निकाली गई और खेतों में पानी पहुंचाया गया। मुड़ा परचा, चितो परचा तथा चुंजकाफाड़ा जंगल के बीच से नहर निकालकर नहर को बोदा एवं भसनंदा गांव की सीमा तक पहुंचाया।
बुन्नू कहते हैं कि सिमोन न केवल सिंचाई के साधन उपलब्ध कराए, बल्कि 15 एकड़ में लगे सभी जंगलों को भी सिंचने का काम किया। सिमोन के द्वारा किया गया यह अनूठा प्रयोग है जो झारखंड में और कहीं देखने को नहीं मिलता।
बकौल सिमोन, “गायघाट बांघ से चेगरेचाल नाला, जारा नाला, बरगीचौरा नाला, वरगीटांड नाला, भेड़ी कुदर नाला, हाथी होवर नाला नामक कच्ची नहरों का निर्माण किया गया। झरिया नाला बांध से ग्रामीणों की मदद से 8000 फीट कच्ची नहर निकाली गई। यहां बांधधरा नाला, डोकाटांड़ नाला, ढोयाबर नाला हरिणडूबा नाला, मोहराजारा नाला खस्सी चौरा नाला से नहर निकालकर उसे खेतों तक पहुंचाकर आसपास की भूमि की उपयोगिता बढ़ा दी।”
हरियाली तथा जंगलों से बहुत गहरा लगाव रखने वाले सिमोन ने ‘जंगल बचाओ अभियान’ की शुरुआत की तथा कृषि वन विकास समिति का निर्माण कर 258 एकड़ जंगल की वैज्ञानिक तरीके से रक्षा की। उन्होंने खरवागढ़ तथा रूगड़ीटांड में सरई की बीज डालकर जंगल लगाया और ग्रामीणों ने रक्षा की।
ग्रामीणों ने उनकी पहल पर 25 सदस्यीय जंगल रक्षा समिति बनाई तथा जंगल की रक्षा का संकल्प लिया। ग्रामीण बताते हैं कि आज हर जरूरतमंद ग्रामीणों को लकड़ी दी जाती है।
वन रक्षा समिति द्वारा प्रतिवर्ष फरवरी माह में लकड़ी की कटाई की जाती है, जिससे ग्रामीणों की जरूरतें पूरी होती हैं। इसमें यह ध्यान रखा जाता है कि पेड़ों का समूल विनाश न हो।
सिमोन जंगल के बीच बहते हुए नालों से मिट्टी के कटाव को रोका जिससे वन को क्षति पहुंच रही थी। उन्होंने नाले के मुहाने को बंद करवाए, जिससे मिट्टी के कटाव में कमी आई। सिमोन उरांव के जंगल रक्षा अभियान तथा प्रति प्रेम से प्रभावित होकर बारीडीह, बोदा, महरू, भसनंदा, हुटार, हरहंजी, खुरहटोली, बेड़ो सहित कई गांवों के ग्रामीणों ने जंगल की रक्षा अभियान चलाया और जंगल बचाने का प्रयास किया।
सिमोन वर्तमान समय में सब्जी उत्पादन को लेकर व्यस्त हैं। उन्होंने मधुमक्खी पालन सब्जी उत्पादन के नए तौर तरीकों के साथ युवाओं के स्वरोजगार के अवसर पैदा किए हैं।
बेड़ो के गंदरू उरांव कहते हैं कि पड़हा के माध्यम से सिमोन ने सिर्फ बेड़ो प्रखंड ही नहीं बल्कि कर्रा, लापुंग और रातु प्रखंड के कई गांवों में शांति बहाल करने, गांव के झगड़े गांव में ही पड़हा के माध्यम से सुलझाने तथा दूसरों की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वे कहते हैं कि देश-विदेश से अनेक सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी पदाधिकारी भी सिमोन के कार्यो को देखने यहां आते हैं।
पूरे झारखंड में जल संरक्षण के विषय में सिमोन कहते हैं, “सभी को इस क्षेत्र में मिलकर काम करना होगा।”
पद्मश्री सम्मान मिलने के संबंध में पूछे जाने पर सिमोन कहते हैं, “यह मेरे और झारखंड के लिए गौरव की बात है। यह सम्मान उन तमाम किसानों को समर्पित है, जिनके सहयोग से मुझे यह मुकाम हासिल हुआ है।”